क्या भावनाओं को मन में दबाने से हो सकता है कैंसर का ताल्लुक?

कुछ रिसर्च में ये बताया गया है कि लंबे समय तक स्ट्रेस, डिप्रेशन या अंदर दबे हुए गुस्से से इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। जब शरीर की नेचुरल डिफेंस कमजोर पड़ती है, तो बीमारियों का रिस्क बढ़ना लाज़मी है।

जब हम अपनी भावनाओं, जैसे उदासी, गहरी निराशा, क्रोध या भारी दर्द को लगातार मन में दबा कर रखते हैं, तो सवाल उठता है कि क्या इसका सच में कैंसर जैसी बीमारी का रिश्ता हो सकता है? इसका अभी तक कोई सीधा जवाब नहीं मिला है, लेकिन कई एक्सपर्ट्स और हीलिंग थैरेपीज इस कनेक्शन को नज़रअंदाज़ नहीं करते हैं।

कुछ रिसर्च में ये बताया गया है कि लंबे समय तक स्ट्रेस, डिप्रेशन या अंदर दबे हुए गुस्से से इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। जब शरीर की नेचुरल डिफेंस सिस्टम कमजोर पड़ती है, तो बीमारियों का रिस्क बढ़ना लाज़मी है।

पबमेड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार साइको-सोशल स्ट्रेस का कुछ कैंसर टाइप्स से अप्रत्यक्ष रिश्ता देखा गया, हालांकि ये साबित नहीं हुआ कि स्ट्रेस ही उसका सीधा कारण है। वहीं, योग और अल्टरनेटिव हीलिंग थेरेपीज के एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जब इंसान अपनी फीलिंग्स को दबा देता है, तो वो एनर्जी शरीर के किसी हिस्से में ब्लॉक हो जाती है।

लूईस हेए जैसी मोटिवेशनल हीलर्स कहती हैं कि ये ब्लॉक्ड इमोशंस लंबे वक्त में गंभीर बीमारी का रूप ले सकती हैं, क्योंकि शरीर और मन, दोनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। योग, मेडिटेशन और प्राणायाम जैसी प्रैक्टिसेस इसीलिए कहती हैं कि अपनी भावनाओं को पहचानो, उन्हें बाहर निकालो, उन्हें दबाओ मत। क्योंकि जब इमोशंस अंदर ज़्यादा दबे रहते हैं, तो वो धीरे-धीरे मन और शरीर दोनों को थका देते हैं।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम इन्हीं चीज़ों पर बात करेंगे और बताएंगे कि क्या भावनाओं को मन में दबाने से कैंसर का ताल्लुक है या नहीं।

अंदर की बातें, अंदर ही रह जाती हैं (Andar ki baatein andar hi rah jati hain)

हम में से ज़्यादातर लोग अपनी तकलीफो को ‘मैं ठीक हूं’ के पीछे छिपा देते हैं, अक्सर अपने मानसिक स्वास्थ्य को अनदेखा करते हैं। कभी परिवार के डर से, कभी समाज के डर से और कभी खुद से हारकर। लेकिन जब कोई बात बहुत लंबे समय तक दिल में रह जाती है, तो वो स्ट्रेस का रूप ले लेती है। साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि ये दबा हुआ तनाव शरीर के इम्यून सिस्टम यानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है। जब शरीर की ये सुरक्षा-दीवार कमजोर पड़ती है, तो बीमारियों को रास्ता मिल जाता है। इसलिए कहते हैं, जब तक बात अंदर है, वो ज़हर बनती रहेगी, बाहर आएगी तो राहत बन जाएगी।

साइंस क्या कहता है? (Science kya kahta hai?)

अब ये मान लेना कि भावनाओं को दबाने से कैंसर हो जाता है, ये बात वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं हुई है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार अभी तक ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है कि सिर्फ इमोशनल स्ट्रेस या दबे हुए जज़्बात कैंसर का सीधा कारण हों। फिर भी कुछ शोध ये बताते हैं कि जो लोग सालों तक तनाव में रहते हैं या अपनी भावनाओं को दबाकर रखते हैं, उनमें हार्मोनल बदलाव और सेल डैमेज की संभावना बढ़ सकती है। मतलब ये ट्रिगर या सपोर्टिंग फैक्टर हो सकता है, पर मुख्य कारण नहीं।

योग और हीलिंग की नज़र से (Yog aur healing ki nazar se)

योग और अल्टरनेट थेरेपी की सोच थोड़ी अलग है। प्रसिद्ध हीलिंग लेखिका लूईस हेए के अनुसार कैंसर उस वक्त जड़ पकड़ता है जब इंसान बहुत समय तक भीतर के गम, नाराज़गी या दर्द में रहता है। उनके अनुसार जब इंसान खुद को व्यक्त करना छोड़ देता है, जब वो हर बात दिल में दबा लेता है, तो शरीर उस अनकही कहानी को बीमारी के रूप में दिखाने लगता है। इसीलिए योग, प्राणायाम और ध्यान को सिर्फ शरीर के लिए नहीं, बल्कि मन की सफाई के लिए भी ज़रूरी बताया गया है। गहरी सांसें, ध्यान या किसी भरोसेमंद इंसान से बात करना, ये वो छोटे कदम हैं जो भीतर का बोझ हल्का करते हैं।

भावनात्मक हेल्थ को नहीं किया जा सकता है नाराज़ (Bhavnatmak health ko nahi kiya ja sakta hai naraz)

कैंसर जैसी बीमारी कई कारणों से होती है, जेनेटिक्स, लाइफस्टाइल, एनवायरनमेंट, डाइट सबका रोल है। पर ये भी उतना ही सच है कि भावनात्मक हेल्थ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अगर हम अपने जज़्बातों को दबाकर रखते हैं, तो वो किसी न किसी रूप में बाहर आने की कोशिश करेंगे, कभी सिरदर्द बनकर, कभी थकान बनकर और कभी किसी बड़ी बीमारी के रूप में।

सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हमने ’क्या भावनाओं को मन में दबाने से कैंसर का ताल्लुक है’ इसके बारे में बताया। यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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