मां का मानसिक स्वास्थ्य

कैसे कर सकते हैं हम मांओं के मानसिक स्वास्थ्य का बोझ हल्का?

आज की मॉडर्न मांओं पर दोहरी ज़िम्मेदारी है, बच्चों की परवरिश के साथ-साथ कामकाज, घर की देखभाल, रिश्तों को संभालना और खुद को साबित करना। लेकिन इन सबमें कहीं न कहीं वो खुद को भूल जाती है।

हमारे समाज में मां को हमेशा एक सुपरवुमन की तरह देखा जाता है, जो कभी थकती नहीं है, जो कभी दुखी नहीं होती है और हर हालात में सबकुछ संभाल लेती है। लेकिन हकीकत तो यह है कि मां भी इंसान होती है। उनकी भी भावनाएं हैं, थकावट है, अकेलापन है और सबसे ज़्यादा बिना कहे सह लेने की आदत। यही आदत धीरे-धीरे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ती है।

वहीं, आज की मॉडर्न माओं पर दोहरी ज़िम्मेदारी है, बच्चों की परवरिश के साथ-साथ कामकाज, घर की देखभाल, रिश्तों को संभालना और खुद को साबित करना। लेकिन इन सबमें कहीं न कहीं वो खुद को भूल जाती है। धीरे-धीरे तनाव, गुस्सा, थकावट और डिप्रेशन उनकी ज़िंदगी में घुलने लगता है। और जो सबसे ज़्यादा चिंता की बात ये है कि वो इसे ‘नॉर्मल’ मानने लगती है। इसलिए ज़रूरी है कि हम मांओं के मानसिक स्वास्थ्य (Mother’s Mental Health in Hindi) को लेकर खुलकर बात करें। उन्हें वो स्पेस दें जहां वो बिना जज हुए अपनी बात कह सकें।

तो चलिए इस मदर्स डे (Mother’s Day in Hindi) के अवसर पर हम आपको बताएंगे कि कैसे हम मांओं के मानसिक स्वास्थ्य का बोझ हल्का कर सकते हैं। साथ ही मदर्स डे (Mother’s Day) के बारे में भी बताएंगे।

मदर्स डे कब और क्यों मनाया जाता है? (Mother’s Day kab aur kyun manaya jata hai?)

हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। ये दिन खास तौर पर मां के त्याग, ममता और निस्वार्थ प्रेम को सलाम करने के लिए होता है। वैसे तो मां के लिए हर दिन खास होता है, लेकिन मदर्स डे एक ऐसा मौका देता है, जब हम खुलकर अपने जज़्बात मां के सामने रख सकते हैं। मां ही वो इंसान होती हैं जो बिना किसी उम्मीद के हमारी हर ज़रूरत का ख्याल रखती हैं। जब हम बीमार होते हैं, तो सबसे पहले मां ही दौड़ती हैं। जब हम दुखी होते हैं, तो मां की गोद ही सुकून देती है। उनकी ममता शब्दों में बयां नहीं की जा सकती।

मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका से हुई थी, जब अन्ना जार्विस नाम की महिला ने अपनी मां की याद में ये दिन मनाया। बाद में 1914 में इसे आधिकारिक रूप से एक खास दिन घोषित किया गया।

कैसे कर सकते हैं मांओं के मानसिक स्वास्थ्य का बोझ हल्का? (Kaise kar sakte hain maa ke mansik swasthya ka bojh halka?)

सुनना और समझना ज़रूरी है

अक्सर मां जब थक कर या दुखी होकर कुछ कहती हैं तो लोग बोल देते हैं, तू तो सुपरवुमन है, इतना क्या है, सब करती हैं। लेकिन सच ये है कि उन्हें भी एक आम इंसान समझना बहुत ज़रूरी है। मां भी थकती हैं, रोना चाहती हैं, कुछ देर चुप बैठना चाहती हैं। उन्हें बस किसी के सुनने की ज़रूरत होती है, बिना जज किए। अगर हम उन्हें सुन लें, तो उनका बोझ आधा वैसे ही हल्का हो जाएगा।

मदद मांगना और देना, दोनों ज़रूरी है

मांओं को ये सिखाना भी ज़रूरी है कि मदद मांगना कमजोरी नहीं है। घर के बाकी लोग, पति, बच्चे, सास-ससुर अगर थोड़ी-सी ज़िम्मेदारी ले लें, तो मां को थोड़ा सुकून मिलेगा। खाना बनाने से लेकर बच्चों के होमवर्क तक सब कुछ अकेले करना ज़रूरी नहीं है।

मी टाइम देना होगा

हर इंसान को अपनी ज़िंदगी में थोड़ी देर खुद के लिए जीने का हक है, मां को भी। चाहे वो एक घंटे की नींद हो, किताब पढ़ना हो, गाने सुनना हो या किसी दोस्त से बात करना, ये सब छोटे-छोटे पल मां की मानसिक सेहत के लिए बहुत ज़रूरी हैं।

समाज की सोच बदलनी होगी

हमें ये सोचना बंद करना होगा कि एक अच्छी मां वही होती है जो हमेशा त्याग करे। एक अच्छी मां वो भी हो सकती है जो अपने लिए खड़ी हो, अपने सपने देखे और खुश रहे। खुश मां ही खुश बच्चे और खुश परिवार बना सकती है। तो चलिए इस मदर्स डे पर मां के चेहरे पर मुस्कान लाएं

इस आर्टिकल में हमने मदर्स डे के बारे में बताया। साथ ही हम मांओं के मानसिक स्वास्थ्य का बोझ हल्का कैसे कर सकते हैं, इसके बारे में भी बताया। इस जानकारी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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