लत क्या है

जानें क्या है लत; इससे छुटकारा पाना आसान है या मुश्किल

वैसे तो लत कई प्रकार के होते हैं, लेकिन जब भी हमारे दिमाग में ये शब्द आता है तो हमारा ध्यान शराब पीने, सिगरेट पीने, ड्रग्स लेने की तरफ जाता है। लेकिन लत सिर्फ बुरी चीजों व बड़ी बातों की ही नहीं होती, कई बार लोगों को छोटी-छोटी चीजों की भी लत लग जाती है।

बुद्धिस्ट के जीवन चक्र में 6 मुख्य बातों पर फोकस किया गया है, जो इंसानों का धरती पर जीवन के अस्तित्व को बयां करते हैं। उन्हीं में से एक है भूत लोक, जो ऐसी आत्माओं की कैद में हैं जिनकी इच्छाएं पूरी नहीं हुई। वो भूखे पेट, पतली गर्दन और अंग के साथ छोटे मुंह वाले लोगों के रूप में बताया गया है। यही वजह भी है कि वे चाहकर भी अपना भूख नहीं मिटा पाते। लत (Addiction) से जुड़ी इन्हीं बातों को न्यूरोलॉजिस्ट डॉ गाबोर मेट ने अपनी किताब इन रिल्म ऑफ हंग्री गोस्ट्स: क्लोज एनकाउंटर विद एडिक्शन में बताया है।

हमारे जेहन में जब भी लत की याद आती है, तो हमारा ध्यान शराब की लत, चेन स्मोकर्स और ड्रग्स की लत की तरफ ही जाता है। इसके बाद ऐसे लोगों की तरफ ध्यान जाता है जो या तो जुआ खेलते हैं या किसी के साथ शारिरिक तौर पर गलत काम करते हैं। लेकिन हर मामले में लत इतनी आसान भी नहीं होती कि उसे तुरंत पहचान लिया जाए। कई मामलों में लत छोटी से छोटी चीज़ की भी हो सकती है। उदाहरण की बात करें तो वैसे लोग जो लगातार मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, इसके अलावा वैसे लोग जिनका खुद पर कंट्रोल नहीं होता और ज्यादा खाते जाते हैं या फिर शॉपिंग पर निकलें तो पैसों की परवाह किए बगैर सामान खरीदते जाते हैं। इतना ही नहीं वैसे लोग जो सिर्फ व सिर्फ काम पर ही ध्यान देते हैं, जिन्हें हम वर्ककॉहलिक करते हैं वे भी लत के शिकार हैं।

डॉ. मेट लिखते हैं कि लत को कई प्रकार के दर्शाया जा सकता है, खासतौर पर लक्षणों के ज़रिए इसे बयां किया जा सकता है। इसे आसान शब्दों में कहें तो किसी भी चीज़ को पाने के लिए यदि आपको मोटिवेशन (Motivation) मिले और खुशी जैसा एहसास हो, तो हमारा दिमाग भी उसी प्रकार रिएक्ट करता है जिस प्रकार लत का शिकार व्यक्ति किसी चीज़ को पाने के लिए करता है। उदाहरण के तौर पर अगर हमें चॉकलेट केक खाना पसंद है, तो हमारा दिमाग चॉकलेट खाकर हमें जो खुशी (Khushi) हुई उस यादाश्त को स्टोर कर लेता है। बाद में चलकर यदि यादाश्त हमें याद दिलाता है कि केक खाकर हमें कितनी खुशी हुई।

न्यूरोसाइंटिस्ट केट फेहलेहबेर ने अपने लेख द रिवॉर्ड पाथवे रिनफोर्सेस बिहेवियर में इस प्रकार के व्यवहार के बारे में बताया है। वे बताते हैं कि रिवॉर्ड पाथवे का उद्गम स्थल दिमाग के बीचोबीच होता है। वहीं पर खास तरह के न्योरॉन रिलीज होते हैं, जिन्हें न्योरोट्रांसमीटर डोपामाइन व प्लेजर कैमिकल्स कहते हैं। हमें क्या पसंद है व उसे हासिल करें या नहीं इसलिए डोपामाइन ही जिम्मेवार है। बार-बार उस खास प्रकार के व्यवहार को दोहराएं इसके लिए रिवॉर्ड पाथवे दिमाग के अन्य हिस्सों को भी कंट्रोल करता है, जिससे हमारा दिमाग हमारी यादाश्त और व्यवहार में बदलाव लाता है।

यदि आपको लत की पहचान करनी है, तो उसमें पाथवे खास रोल अदा करता है। अमेरिकन सोसायटी ऑफ एडिक्शन मेडिसिन के अनुसार लत एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी है, जो ब्रेन रिवॉर्ड पाथवे में है। यह किसी चीज़ को पाने की चाहत के समान है। यही आगे चलकर बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल समस्याओं (Biological aur Psychological issue) का कारण बनती है।

बता दें कि कई प्रकार की लत को कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन, सबस्टेंस डिपेंडेसी यानी किसी सामान को पाने की लत को कंट्रोल कर पाना मुश्किल होता है। इसलिए इस समस्या से जूझ रहे व्यक्ति को खासतौर पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आर्ट ऑफ लिविंग डी एडिक्शन सेंटर की डायरेक्टर डॉ निशा मणिकांतन बतातीं हैं कि तत्व जैसे कि शराब और ड्रग्स इंसानों के दिमाग में कुछ इस प्रकार का परिवर्तन लाते हैं कि वो सबस्टेंस डिपेंडेंसी की श्रेणी आ जाते हैं। इन तत्वों के घातक परिणामों को जानने के भी बावजूद वे उस लत का शिकार होते हैं व उन तत्वों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उनका दिमाग काफी मात्रा में डोपेमाइन रिलीज करता है।

म्यूजिशियन हेलरी रॉजर्स बताते हैं कि कोकीन का इस्तेमाल करना शुरुआती दिनों में सामान आदत में से एक थी। मेरा बचपन सामान्य लोगों के बचपन जैसा नहीं था, बचपन में इनकी कई बुरी यादें थी। जो जवान होने के बाद कोकीन का इस्तेमाल करने के बाद इन्हें उन यादों से बाहर निकलने में मदद मिली। शुरुआत में तो इन्हें अच्छा लगा कि ड्रग्स के कारण ये अपनी बचपन की बुरी यादों से बाहर निकल पा रहे हैं। लेकिन इस बुरी लत का शिकार होने के बाद इनको अस्पताल का भी मुंह देखना पड़ा। कोकीन की लत ने इन्हे मार ही डाला था, हेनरी अभी भी इस बुरी लत से बाहर निकल नहीं पाए हैं, ये कंपकपाते हुए हाथ और धंसी हुई आंख जैसी समस्या का अभी भी सामना कर रहे हैं। इसी लत के कारण नीरस ज़िंदगी जी रहे थे, मानो वो नशे की गिरफ्त में कैद हो गए थे।

फेहलेहबेर अपने लेख में बताते हैं कि बाहरी कारणों से डोपामाइन रिलीज होने से दिमाग में सामान्य रूप से रिलीज हो रहे रिसेप्टर्स की मात्रा में कमी आ जाती है। ऐसा होने की वजह से दिमाग से डोपामाइन की रिलीज करने की क्षमता में कमी आती है। जिसकी वजह से लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे वे असहज हो जाते हैं, डिप्रेशन और थकावट जैसी समस्या का सामना करते हैं। यही कारण है कि व्यक्ति पहले जैसे फील का एहसास करने के लिए ज्यादा डोज लेने लगता है।

सिर्फ ड्रग्स की मदद से ही नहीं बल्कि हमारा दिमाग सामान्य रूप से भी डोपामाइन रिलीज करता है। लेकिन, जब कोई किसी प्रकार का पदार्थ का इस्तेमाल कर डोपामाइन को रिलीज करवाता है तो हमारा दिमाग भी इसका आदि बन जाता है। ब्रुकहेवेन्स नेशनल लेबोरेटरी ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के एक शोध के अनुसार पता चलता है कि कोकीन का सेवन करने वाले मस्तिष्क को स्कैन करने पर पचा चला कि उनके दिमाग में सफेद व ग्रे के तत्व सामान्य लोगों की तुलना में कम थे। इन तत्वों की कमी के कारण ही इस प्रकार की लत का शिकार व्यक्ति न तो ठीक से सोच पाता है, न तो किसी भी चीज़ को सीख पाता है, वहीं नई स्थितियों में भी खुद को नहीं ढाल पाता है। ऐसे लोग न केवल अपने इमोशंस को सामान्य लोगों की तरह कंट्रोल कर पाते हैं, बल्कि जीवन से जुड़े अहम निर्णय भी नहीं ले पाते हैं। शोध से पता चलता है कि ऐसे लक्षण लंबे समय तक रहते हैं। वहीं कुछ मामलों में तो ये लक्षण ठीक भी नहीं होते हैं।

शुरुआती दौत में किसी प्रकार की लत को न्यूरोलॉजिकल समस्या माना जाता है, वहीं कई मेडिकल प्रोफेशनल भी इस समस्या को आध्यात्मिक समस्या से जोड़कर देखते हैं। डॉ मेट लिखते हैं कि कई प्रकार से कोई भी लत की गिरफ्त में आता है, इसके जिम्मेदार कारकों की बात करें तो सामाजिक, राजनीतिक, इकोनॉमिक स्टेटस, पर्सनल और पारिवारिक इतिहास के साथ मानसिक व अनुवांशिक कारणों से इसकी चपेट में आ सकता है। वैसे व्यक्ति जिनके जीवन में आध्यात्मिकता का स्थान नहीं होता, वैसे लोग इसकी चपेट में आने की संभावना भी काफी होती है।

प्राचीन कला योग भी हमारे अंदर की शून्यता को ही बताता है। पतंजलि योगा सूत्र हमें मदद करता है कि किस प्रकार खुद खुशी को हासिल करें बिना किसी बाहरी तत्व के। जॉन एफ केनेडी इंस्टीट्यूट और दानिश एपिलेप्सी हॉस्पिटल ने संयुक्त रूप से दिमाग पर रिसर्च किया और पता लगा कि सामान्य लोगों की तुलना में योगा निद्रा करने वाले व्यक्तियों का दिमाग करीब 65 फीसदी डोपामाइन का ज्यादा फ्लो करता है। योगा निद्रा, जागने और सोने के बीच की अवस्था है।

किसी भी प्रकार की लत से छुटकारा पाने में योग हमारी मदद कर सकता है। इस बात से किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वर्तमान में कई डि एडिक्शन सेंटर और रिहेब्लिटेशन सेंटर ने अपने इलाज की पद्दिति में योग को भी शामिल किया है। वहीं लत से छुटकारा पाने वाले लोगों को क्रिया, प्राणायाम और आसन की प्रैक्टिस करवाते हैं। डॉ निशा बताती हैं कि इस प्रकार की प्रैक्टिस को करके लत का शिकार व्यक्ति न केवल अपने लत से छुटकारा पाता है, बल्कि वो जीवन को किस प्रकार कंट्रोल किया जाए उसपर भी विजय हासिल कर लेता है।

हेनरी की बात करें तो उन्होंने भी रिलेब्लिटेशन सेंटर में अपनी लत से छुटकारा पाने के लिए काफी संघर्ष किया। हेनरी से खुद को काफी मज़बूत रखा ताकि लत से छुटकारा पा सकें। विशेषज्ञों की सलाह पर अमल करते हुए अपने उद्देश्य में भी कामयाब हो रहे हैं। हेनरी इस बात के उदाहरण हैं कि किसी प्रकार का लत का शिकार व्यक्ति लत के चक्कर में फंसने की बजाय उससे बाहर निकलने की कोशिश कर सकता है।

एक्सपर्ट की सलाह लेकर व सही विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लेकर व्यक्ति लत से छुटकारा पा सकता है।

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