घूमना-फिरना कैसे बन सकता है माइंड, बॉडी ओर सोल को हील करने का ज़रिया?

जब आप अपने शहर से बाहर निकलते हैं, नई जगह देखते हैं, नई हवा में सांस लेते हैं, तो सबसे पहले दिमाग हल्का होता है।

हर–दिन की भागदौड़, काम का दबाव, सोशल मीडिया कंटेंट, ये सब मिलकर हमारे दिमाग को थका देते हैं। लगातार स्ट्रेस में रहने से नींद खराब, ऊर्जा कम और हेल्थ पर असर पड़ता है। और जो सबसे बड़ी बात है, वो ये कि इस सबके बीच हम खुद को कहीं भूल जाते हैं। ऐसे में घूमना-फिरना सिर्फ टाइम पास या लग्जरी नहीं, बल्कि खुद को पाने की खोज की तरह है। जब आप अपने शहर से बाहर निकलते हैं, नई जगह देखते हैं, नई हवा में सांस लेते हैं, तो सबसे पहले दिमाग हल्का होता है।

दफ्तर के ईमेल्स और घर के टेंशन से हटकर अचानक सब कुछ नया और फ्रेश लगता है। यही ब्रेक आपके माइंड को रीसेट करने का काम करता है। फिर आती है शरीर की बात। लगातार कुर्सी पर बैठे रहने की बजाय जब आप पहाड़ चढ़ते हैं, समुद्र किनारे चलते हैं या किसी नए शहर की गलियों में घूमते हैं, तो शरीर एक्टिव होता है। मूवमेंट अपने आप में थेरेपी है और इससे हेल्थ भी सुधरती है। और जहां तक आत्मा की बात है, तो यही असली जादू है।

किसी मंदिर की घंटी की गूंज, किसी झील के किनारे की शांति या किसी लोकल गांव के लोगों की मुस्कुराहट, ये सब आपको अंदर से जोड़ते हैं। घूमना-फिरना आपको याद दिलाता है कि ज़िंदगी सिर्फ काम और ज़िम्मेदारियों का नाम नहीं है, बल्कि अनुभवों का सफर है।

घूमना क्यों ज़रूरी है? (Ghoomana kyun zaroori hai?)

दिमाग को मिलती है ताज़गी

जब हम नए शहर, नई जगह या नेचर के बीच जाते हैं, तो हमारा दिमाग उस रूटीन से बाहर निकल आता है, जिसमें वो फंसा हुआ था। सोचिए, रोज़ वही ट्रैफिक, वही ऑफिस, वही टेंशन और अचानक आप खुद को किसी पहाड़, समुंदर या जंगल के बीच पाते हैं। दिमाग खुद-ब-खुद रिफ्रेश हो जाता है। नई जगहें नए आइडियाज देती हैं, दिमाग खुलता है और नेगेटिव थॉट्स की जगह हम में पॉजिटिव एनर्जी भर जाती है। कई बार तो घूमने के बाद वही मुश्किलें छोटी लगने लगती हैं, जो पहले पहाड़ जैसी लग रही थीं।

शरीर को मिलता है फिटनेस डोज

आजकल लोग जिम, योगा, डाइटिंग काफी ध्यान देते हैं, जो कि ज़रूरी भी है। लेकिन ज़रा ट्रेकिंग, वॉकिंग टूर या किसी पहाड़ी गांव की सैर करके देखिए, बिना महसूस किए ही आपका शरीर एक्टिव हो जाएगा। घूमने-फिरने से न सिर्फ कैलोरी बर्न होती है, बल्कि ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है और नींद गहरी आती है। कई रिसर्च कहती हैं कि ट्रैवल करने वाले लोग नॉन-ट्रैवलर्स की तुलना में ज़्यादा हेल्दी रहते हैं। यानी घूमना सिर्फ मन की बात नहीं, बॉडी को फिट रखने का नेचुरल तरीका है।

आत्मा को मिलती है शांति

शायद यही सबसे बड़ा फायदा है। आत्मा को सुकून तभी मिलता है जब आप खुद से जुड़ पाते हैं। नेचर के बीच बिताए हुए पल, सूरज का डूबना देखना, किसी पहाड़ की चोटी पर खड़े होकर बादलों को छूना, ये सब इंसान को अंदर से बदल देता है। घूमते वक्त हम खुद को रोज़ की दिखावे वाली दुनिया से दूर ले जाते हैं। वहां न कोई रेस होती है, न कोई कम्पटीशन।

रिश्तों को मिलता है नया रंग

घूमना सिर्फ अकेले का सफर नहीं, ये अपने रिश्तों को गहरा करने का भी ज़रिया है। फैमिली ट्रिप हो या दोस्तों के साथ एडवेंचर, सफर में बिताए गए पल ऐसे यादगार बन जाते हैं, जो सालों तक रिश्तों को मजबूत रखते हैं। हंसी-मज़ाक, नई जगहों की खोज और साथ में चुनौतियों का सामना करना, ये सब बंधन को और गहरा बना देता है।

स्ट्रेस का बेस्ट इलाज

डॉक्टर भी मानते हैं कि घूमना-फिरना डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जायटी जैसी समस्याओं का नेचुरल ट्रीटमेंट है। जब आप सफर में होते हैं तो आपके दिमाग में हैप्पी हार्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं, डोपामिन, सेरोटोनिन। यानी घूमना-फिरना, हंसना और सुकून पाना एक ही पैकेज में मिल जाता है।

सीखने और समझने का मौका

घूमना-फिरना सिर्फ फन नहीं, ये एजुकेशन भी है। नई जगहों की कल्चर, लोग, खाना, भाषा सब कुछ आपको और ओपन-माइंडेड बनाता है। जब आप अलग-अलग दुनिया देखते हैं, तो आपकी सोच बड़ी होती है। यही चीज़ माइंड को और स्ट्रॉन्ग और फ्लेक्सिबल बनाती है।

इस आर्टिकल में हमने बताने की कोशिश की कि घूमना-फिरना कैसे दिमाग, शरीर और आत्मा के लिए थेरेपी का काम करती है। यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।