ज़िंदगी वैसे ही आसान नहीं होती, और जब कोई दिव्यांग हो तो हर छोटा काम भी बड़ा लगने लगता है। ऐसे में लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ चलना-फिरना या हर दिन का काम संभालना नहीं होता, बल्कि वो अदृश्य बोझ भी होता है जिसे हम डिप्रेशन कहते हैं। कई रिसर्च के अनुसार डिसेबिलिटी वाले लोगों में डिप्रेशन की संभावना दोगुनी होती है। लेकिन असली बात सिर्फ ये नहीं कि खतरा ज़्यादा है, बल्कि ये कि ये खतरा अक्सर चुपचाप आता है। धीरे-धीरे दिल की थकान बढ़ने लगती है, मन खाली-सा लगने लगता है और इंसान खुद को दुनिया से कटता हुआ महसूस करता है। कई बार लोग इसे सामान्य थकान समझकर नज़रअंदाज़ करते रहते हैं, जबकि अंदर ही अंदर मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा होता है।
सबसे बड़ी मुश्किल ये होती है कि डिसेबल लोग अक्सर दूसरों पर बोझ बन जाने का डर महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें अपनी बात नहीं रखनी चाहिए, अपनी परेशानियां किसी से कहनी नहीं चाहिए। इसी वजह से डिप्रेशन और गहराता जाता है। तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम डिसेबिलिटी में डिप्रेशन की दोगुनी संभावना क्यों होती है, इसपर बात करेंगे। साथ ही डिप्रेशन से कैसे बाहर निकलें इसके बारे में भी बताएंगे।
ज़्यादा जोखिम और स्वास्थ्य असमानताएं
डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार डिसेबल लोग में डिप्रेशन का जोखिम लगभग दो गुना होता है। इसके कारण लोग सिर्फ शारीरिक चुनौतियों का सामना नहीं करते, बल्कि सामाजिक बैरियर्स, भेदभाव, गरीबी और स्वास्थ्य प्रणाली तक पहुंच की दिक्कतों से भी जूझते हैं। ये सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य पर भारी दबाव डालते हैं।
दिव्यांगता से आत्मविश्वास हो जाता है कम
डिसेबिलिटी का मतलब सिर्फ शारीरिक परेशानी ही नहीं है, बल्कि ये रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भाग लेने की क्षमता, सामाजिक जुड़ाव और आत्मनिर्भरता को भी प्रभावित करती है। जैसे-जैसे ये दिक्कत बढ़ती है, अकेलापन और आत्मविश्वास कम होने लगता है, जिससे डिप्रेशन का खतरा और बढ़ जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों की पहचान होती है मुश्किल
बहुत बार डिसेबिलिटी के कारण मानसिक बीमारियों के लक्षणों की पहचान मुश्किल होती है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच न होना, डॉक्टरों में नॉलेज की कमी और सूचनाओं के अभाव के कारण डिसेबल लोगों के लिए सही इलाज मुश्किल हो जाता है।
डिप्रेशन से कैसे बाहर निकलें? (Depression se kaise bahar nikalein?)
खुद से पूछें सवाल
खुद से हर दिन सवाल पूछें कि मैं कैसा महसूस कर रहा हूं? क्या मुझे ज़्यादा चिंता और उदासी महसूस हो रही है? अगर आप लगातार दो सप्ताह तक उदासी महसूस कर रहे हैं तो डॉक्टर या काउंसलर से मदद लें।
सामाजिक सपोर्ट बनाएं
ज़िंदगी में अकेलापन डिप्रेशन को बढ़ाता है। इसलिए दोस्त-परिवार से जुड़ें, ऑनलाइन कम्युनिटी से बातचीत करें। ये सिर्फ भावनात्मक सहारा नहीं देते, बल्कि आपको यह एहसास भी कराते हैं कि आप अकेले नहीं हैं।
स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच आसान बनाएं
परेशानियों से बचने के लिए हो सके तो ऐसे डॉक्टर, क्लीनिक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ खोजें जो दिव्यांग लोगों को लेकर संवेदनशील हों। ज़रूरत होने पर एनजीओ से मदद लें और परिवार के लोगों से मदद लें।
खुद की देखभाल स्वयं से करें
हर दिन एक्सरसाइज करें। यह मूड बेहतर करने में मदद कर सकता है। नींद और खाने का रूटीन बनाएं, क्योंकि अनियमित नींद और भूख दोनों डिप्रेशन को बढ़ा सकते हैं। साथ ही रिलैक्सेशन टेक्निक्स अपनाएं, जैसे गहरी सांस लेना, मेडिटेशन, म्यूजिक थेरेपी—ये तनाव को कम करते हैं और मन को शांत रखने में मदद करते हैं।
इस आर्टिकल में हमने डिसेबिलिटी में डिप्रेशन की क्यों दोगुनी संभावना होती है इसके बारे में बताया और डिसेबल लोग अपना ख्याल रख सकते हैं इसके बारे में बताया। यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।
