कैंसर की बाद की ज़िंदगी को कैंसर सर्वाइवर के लिए कैसे बना सकते हैं हम आसान?

बहुत लोग सोचते हैं कि अब तो मरीज़ ठीक हो गया है, अब सब नॉर्मल हो जाएगा। लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग होती है।

कैंसर से जंग जीतना कोई छोटी बात नहीं है। कैंसर को हराना, सिर्फ एक बीमारी से बाहर आना नहीं होता, बल्कि शरीर, मन और आत्मा तीनों को खत्म कर देने वाले असुर से जीत कर लौटना होता है। लेकिन यह भी सच है कि असली लड़ाई तो तब शुरू होती है, जब अस्पताल के दरवाज़े पार करके कैंसर सर्वाइवर वापस घर आता है।

बहुत लोग सोचते हैं कि अब तो मरीज़ ठीक हो गया है, अब सब नॉर्मल हो जाएगा। लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग होती है। शरीर में कमजोरी रहती है, थकावट जल्दी हो जाती है। दवाओं के साइड इफेक्ट्स लंबे वक्त तक परेशान करते हैं। बाल दोबारा आ भी जाएं, तो आत्मविश्वास लौटने में वक्त लगता है। और जो सबसे बड़ी बात है, वो ये है कि मन में हमेशा एक डर रहता है कि कहीं कैंसर दोबारा लौट न आए। ऐसे में परिवार, दोस्त और समाज की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। आपका एक प्यार-भरा शब्द, छोटी-सी मदद या सिर्फ उनकी बात सुन लेना भी, कैंसर सर्वाइवर के लिए एक नई उम्मीद की तरह हो सकता है।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको कैंसर की बाद की ज़िंदगी को कैंसर सर्वाइवर के लिए आसान बनाने के तरीकों के बारे में बताते हैं।

कैंसर सर्वाइवर का जीवन इन तरीकों से बनाएं आसान (Cancer Survivor ka jeevan in tareekon se banayein aasan)

सहारा देने की होती है ज़रूरत

इलाज के बाद भी थकान, कमजोरी, दर्द या डर बना रह सकता है। ऐसे में लोगों को ये समझना होगा कि “अब तो ठीक हो गया है, सब नॉर्मल है” कह देना काफी नहीं होता। ज़रूरत है धैर्य और सहारे की। परिवार, दोस्त, ऑफिस वाले सबको ये बात समझनी होगी कि कैंसर सर्वाइवर को समय चाहिए खुद को पटरी पर वापस लाने के लिए।

मेंटल सपोर्ट बहुत बड़ा रोल निभाता है

कई कैंसर सर्वाइवर डिप्रेशन, एंग्जाइटी या बार-बार कैंसर होने के डर से जूझते हैं। ऐसे में एक अच्छा काउंसलर या फिर सपोर्ट ग्रुप बहुत मदद कर सकता है। एक ऐसा माहौल जहां सर्वाइवर्स खुलकर अपने डर, भावनाओं और सवाल को रख सकें।

रेगुलर मेडिकल फॉलो-अप है ज़रूरी

सर्वाइवर को रेगुलर चेकअप की ज़रूरत होती है, लेकिन ये प्रक्रिया डरावनी न लगे, इसके लिए डॉक्टर्स और परिवार के लोगों को भी संवेदनशील होना होगा। मरीज़ को सही जानकारी, भरोसा और पॉजिटिव अप्रोच देना ज़रूरी होता है।

समाज में बराबरी का व्यवहार मिले

कई लोग इलाज के बाद नौकरी पर लौटते हैं, लेकिन उन्हें शक की नज़र से देखा जाता है कि क्या अब ये काम कर पाएंगे? ये रवैया बदलना बहुत ज़रूरी है। कैंसर का मतलब ये नहीं कि इंसान कमजोर हो गया है, बल्कि उसने ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग लड़ी है, उसे और सम्मान मिलना चाहिए।

हेल्दी लाइफस्टाइल को बढ़ावा देना

अच्छा खाना, थोड़ी एक्सरसाइज, योग और ध्यान, ये सब न सिर्फ शरीर को बल्कि मन को भी मजबूत बनाते हैं। अगर परिवार मिलकर इस पर ध्यान दे, तो कैंसर सर्वाइवर अकेला महसूस नहीं करता।

प्यार, आत्म-सम्मान और पहचान

सबसे ज़रूरी बात ये है कि कैंसर सर्वाइवर को बीते हुए दर्द की पहचान से बाहर निकालकर एक योद्धा की तरह देखा जाए। उन्हें बार-बार ये एहसास दिलाना ज़रूरी है कि उन्होंने बहुत बड़ी लड़ाई जीती है और अब उनके पास एक नई और बेहतर ज़िंदगी है।

कैंसर का निदान कैसे करें? (Cancer ka nidan kaise karein?)

कैंसर का नाम सुनते ही मन घबरा जाता है, लेकिन सही समय पर कैंसर के लक्षणों की पहचान हो जाए तो इसका इलाज मुमकिन है। कैंसर के निदान का मतलब है बीमारी को वक्त रहते पहचान लेना, ताकि इलाज सही दिशा में शुरू हो सके। अगर किसी को लंबे समय से थकान, वजन कम होना, लगातार खांसी, किसी गांठ का बनना या खून आना जैसे लक्षण दिखें, तो इन्हें नज़रअंदाज़ न करें। ये शरीर के संकेत हो सकते हैं कि अंदर से कुछ सही नहीं है। निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले शारीरिक जांच करते हैं। फिर ज़रूरत हो तो खून की जांच, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई या बायोप्सी जैसी जांचें होती हैं। बायोप्सी में एक छोटा सा सैंपल लेकर देखा जाता है कि कोशिकाएं कैंसर वाली तो नहीं। कैंसर जितनी जल्दी पकड़ में आए, उतनी ज्यादा संभावना होती है कि इलाज सफल होगा।

आर्टिकल पर अपना फीडबैक ज़रूर दें। इसी तरह की ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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