योगाभ्यास

दिलों-दिमाग को तंदुरुस्त रखने का राज़ है योगाभ्यास

योग का अध्यात्म से बेजोड़ मेल का एक ठोस कारण यह है कि योगाभ्यास करने से ना केवल शारिरिक तौर पर व्यक्ति स्वस्थ रहरता है बल्कि मन की तंदुरुस्त रहता है। कुल मिलाकर कहें तो योगाभ्यास करने से दिलों-दिमाग को तंदुरुस्त रखा जा सकता है।

योग चटाई पर लेटकर और बैठकर विभिन्न मुद्राओं को करने या बिल्ली की तरह शरीर को इधर-उधर तान कर या फिर मोटापा घटाने के लिए किया जाना शारीरिक व्यायाम भर नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास की एक पूरी क्रिया है। इसका अभ्यास कर मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखा जा सकता है। भारतीय लोग योगाभ्यास (Yoga Practice) से होने वाले शारीरिक लाभ से परिचित हैं लेकिन इस प्राचीन पद्धति से मन-मस्तिष्क को होने वाले फायदों को पूरी तरह समझने के लिए हम खुद को तैयार नहीं कर पाए हैं। योग मन-मस्तिष्क दोनों को नियंत्रित करता है और इसीलिए आध्यात्मिकता के साथ गहन रूप से जुड़ा है। श्रीमद् भगवत गीता में योग की अवधारणा के बारे में बताया गया है। उसमें कई ऐसे दृष्टांत हैं, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि किस तरह योग व्यक्ति को शरीर, आत्मा तथा मन मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने में सक्षम बनाता है।

हमारे शरीर और मन में संबंध होना कोई नई बात नहीं है। संस्कृत की बात करें तो योगी शब्द का तात्पर्य उनसे है जो योगाभ्यास (Yogabhyas) करते हैं और ध्यान लगाते हैं। यह बात हम लोगों को पता है कि ध्यान लगाने से मन को नियंत्रित किया जा सकता है। योगी का मूल अर्थ एक दूसरे से जुड़े रहना है। जैसा कि योग का नाम है उसके अनुसार इसका संबंध मके जुड़ा हुआ है। इसका संबंध ना केवल फिजिकली है बल्कि साइकोलॉजिकली भी यह जुड़ा हुआ है। योग के एक्सपर्ट इन तमाम बातों को अच्छे से जानते हैं, वहीं इसका इस्तेमाल वो मानसिक व शारिरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए करते हैं।

योगाभ्यास करने वालों ने पाया है कि योग (Yog) की पीछे की ओर झुकने वाली मुद्राएं जहां मस्तिष्क को अधिक जागृत बनाती हैं, वहीं आगे की ओर झुकने वाली मुद्राएं उसे अधिक बर्हिमुखी बनाती हैं, जबकि भीतर की ओर झुकने वाली मुद्राएं अंतर्मुखी और आत्म-निरीक्षण की अवस्था को जगाती हैं।

आज भले ही योग शारीरिक स्वास्थ्य के रूप में लोकप्रिय हो, लेकिन पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार वास्तव में यह मन मस्तिष्क के व्यायाम का तरीका रहा है। इस प्राचीन ग्रंथ में कहा गया है ‘योगश चित्त वृत्ति निरोधाह’ अर्थात ‘योग मन की विभिन्न अवस्थाओं का नियमन है’। योग के फायदों के बारे में केवल इस प्राचीन ग्रंथ में ही नहीं बताया गया है बल्कि हाल के अध्ययनों से भी यह प्रमाणित हुआ है कि योग मानसिक रोगों और मानसिक विकारों के उपचार में भी काफी मददगार रहता है

2005 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर के एक मनोरोग चिकित्सा अस्पताल में अवसाद और विस्मृति रोग सिज़ोफ्रेनिया के मरीजों से योगाभ्यास कराया गया। इसके बाद रोगियों में तनाव, चिंता, अवसाद, क्रोध, आक्रामकता और थकान का स्तर काफी कम पाया गया।

2013 में बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस-निम्हांस ने अवसाद तथा सिज़ोफ्रेनिया के मरीजों के उपचार के लिए एक प्रयोग के तौर पर योग का परीक्षण किया, जिसके परिणाम मानसिक रोगियों के लिए काफी पॉजिटिव रहे।

हालांकि यह काफी उम्मीदों भरी बात है कि योग मेंटल हेल्थ के लिए लाभदायक है लेकिन इस बारे में अभी तक पूरी स्पष्टता के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता कि योग की कौन सी क्रिया मेंटल हेल्थ के लिए फायदेमंद है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निम्हांस) के डायरेक्टर बीएन गंगाधर का मानना है, “नैदानिक रूप से इसके कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं कि योग में बताई गई श्वास लेने की विभिन्न क्रियाएं या शारीरिक मुद्राएं मेंटल हेल्थ के लिए लाभकारी होती हैं।”

योगाभ्यास करने वाले लंबे समय से यह कहते आए हैं कि योग फिजिकल के साथ मेंटल और स्पिरिचुअल विकास में मददगार है। चाहे कुछ भी हो यह तो कहा जा सकता है कि यह शरीर के विभिन्न अंगों का अलग-अलग तरीके से उपचार नहीं करता, बल्कि संपूर्ण रूप में एक चक्र की भांति अपना प्रभाव डालता है। इसका यही गुण शरीर, मन व आत्मा के बीच के असंतुलन को दूर करने में मदद करता है। योग को उपचार पद्धति के रूप में प्रयोग करने वाले शुभनंदा श्रीनिवास पूरी तरह से ऐसा मानते हैं। उनके अनुसार, “तैत्रिय उपनिषद् एक व्यक्ति को 5 स्तरों – शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक संरचना के रूप में देखता है। योग हमें इन सभी स्तरों से अवगत कराता है व इनके बीच यदि कोई असंतुलन हो, तो उसे दूर करने में मदद करता है।” श्रीनिवास का मानना है कि मेंटल पेशेंट में मानसिक स्तर पर ज़्यादा क्रियाशीलता होती है जबकि शारीरिक स्तर पर शिथिलता देखी जाती है। ऐसे लोगों में योग के माध्यम से शारीरिक क्रियाशीलता को बढ़ाकर उन्हें गहरे मानसिक प्रभाव से बाहर निकाला जा सकता है।

कोई व्यक्ति किसी प्रकार की मानसिक बीमारी से ग्रसित होता है, तो हमारे शरीर में कुछ बदलाव होते हैं। जैसे कुछ हार्मोन उत्तेजित हो जाते हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ, हृदय गति का तेज़ होना व बैचेनी जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। यही कारण है कि वो लोग जो डिप्रेशन, चिंता, ओसीडी, बाइपोलर डिसऑर्डर और सिज़ोफ्रेनिया जैसी बीमारियों से ग्रसित होते हैं, उन्हें ऐसी स्थिति में मेडिसिन देकर डॉक्टरों का परामर्श लेकर इलाज करवाने की सलाह दी जाती है। योग चिकित्सक राजेश जैन के अनुसार, चिकित्सा के रूप में योग का इस्तेमाल करने के बावजूद दवाएं देना ज़रूरी हैं। उनके अनुसार मानसिक विकारों से ग्रस्त लोगों के लिए प्राणायाम बेहद उपयोगी है। योग क्रिया के दौरान तेज़ी से सांस लेना हमारे शरीर को सेरोटिनिन, डोपामाइन व एसिटालकोलाइन जैसे हार्मोन को बनाने में मदद करता है, जो चित्त को शांत व खुशहाल रखने का काम करते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश योग विशेषज्ञ मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों को ध्यान योग की सलाह नहीं देते हैं, उनका मानना है कि इसका उनपर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि ऐसा करने के दौरान वह रोगी की मानसिक गतिविधियों को और बढ़ा देगा, जो उसके लिए ठीक नहीं होगा। जहां तक ऐसे रोगियों के इलाज की बात है, तो  इनके लिए श्वास क्रिया और शरीर को तानने जैसी योग क्रियाएं ज्यादा फायदेमंद रहेंगी।

जब जीना कठिन हो जाता है, मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं। यह वह स्थिति होती है जब मन को नियंत्रित कर शरीर को सही तरीके से काम करने लायक बनाना होता है। यहीं योग काम आता है। इसलिए लोगों को योगाभ्यास करते रहना चाहिए

 

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