बचपन की पुरानी यादें, जो आजकल कम ही देखने को मिलती है

मुझे तो लगता है कि बचपन ही एक ऐसा समय है, जिसे याद करके मन तरोताजा हो जाता है। बचपन में जिसने भी चोरी से आम नहीं खाए और गन्ना नहीं चूसा है, उसने क्या ही बचपन जीया है।

हर किसी का अपना बचपन होता है और उस बचपन की यादें भी होती हैं। ऐसी ही कई यादें मेरी भी हैं और आपकी भी। हम सबने बचपन को जीया है। इन मधुर यादों में मम्मी-पापा, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर चोरी से आम तोड़ना शामिल हैं। बचपन में हमने बहुत सारे कारनामें किए हैं। मुझे तो लगता है कि बचपन ही एक ऐसा समय है, जिसे याद करके मन तरोताजा हो जाता है। बचपन में जिसने भी चोरी से आम नहीं खाए और गन्ना नहीं चूसा है, उसने क्या ही बचपन जीया है। हमने कागज की नाव तो खूब बनाई है, जब बारिश होती थी, तो कागज के उस नाव को पानी में चलाया करते थे। बारिश के मौसम में कॉपी के आधे पन्ने नाव बनाने में चले जाते थे। तो चलिए मैं आपको इस लेख के ज़रिए बचपन में लेकर चलता हूं, जिसमें कई सारी खट्टी-मीठी यादें बसी हुई हैं, जो आजकल कम ही देखने को मिलती हैं।

गिल्ली-डंडा खेलना

ये खेल हम सभी लोगों ने बचपन में कभी न कभी तो ज़रूर खेला है। मिट्टी खोदने के बाद उसमें गिल्ली रखकर उसे डंडे से मारने का एक अलग ही मज़ा था। आज इसे बताने में ही काफी मज़ा आ रहा है, तो सोचिए इसको खेलने में कितना मज़ा आता होगा। लेकिन, आज के डिजिटल ज़माने में ये खेल कहीं गुम हो गया है। आज के बच्चे इस खेल से अनभिग होते जा रहे हैं। इन खेलों की जगह कंप्यूटर गेम, वीडियो गेम और मोबाइल ने ले लिया है।

पापा की साइकिल और स्कूटर पर घूमना

बचपन में पापा की साइकिल और स्कूटर पर घूमाने की यादों को हम कभी नहीं भुला सकते। पापा के ऑफिस से आते ही हम उन्हें घुमाने का ज़िद करने लगते थे। पापा परेशान होते हुए भी हमें साइकिल के कैरियर पर बैठाकर आसपास घुमाते थे। इस दौरान टॉफी के लिए ज़िद करने पर पापा हमें खरीदकर देते थे। वो दिन हमारी ज़िंदगी के खुशनुमा दिनों में से एक थे।

दादादादी के किस्से कहानी

जब हम बच्चे थे, तो संयुक्त परिवार होता था। दादा-दादी साथ रहते थे। वे रात को हमें किस्से-कहानियां सुनाया करते थे। ये कहानियां भूतों की भी होती थी और भारतीय वीरों की भी। इन कहानियों से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता था। जो कि हमारे सफल ज़िंदगी में हमें अभी तक मदद कर रहे हैं। लेकिन, आज के समय में किस्से-कहानियों का दौर खत्म होते जा रहा है। इन किस्से-कहानियों की जगह टीवी और मोबाइल ने ले ली है।

बारिश में भींगना

बचपन में जब भी बारिश होती थी, तो हमारा दो ही काम होता था पहला कागज़ का नाव बनाकर उसे पानी में चलाना और दूसरा जब भी मौका मिले बारिश में भींगना। बारिश में भींगने का हम हमेशा इंतजार करते रहते थे और जैसे ही मौका मिलता हम बारिश में कूद पड़ते थे। बारिश में भींगने की वजह से कई बार तबीयत भी खराब हो जाती थी, जिसके कारण मम्मी-पापा से डांट भी सुननी पड़ती थी, लेकिन फिर पापा दवा लाकर खिलाते और तबीयत फिर ठीक हो जाती थी। लेकिन, आज ये बहुत कम ही देखने को मिलता है।

गली क्रिकेट

जब हम थोड़े बड़े हुए तो अपने सीनियर के साथ खेलना शुरू कर दिया। यहां खेलने के लिए जो सबसे फेमस स्पोर्ट्स था, वो था क्रिकेट। ये क्रिकेट गली में खेला जाता था। इसमें बैट और बॉल जिसका होता था, उसके हिसाब से बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग डिसाइड करते थे। जिसका बैट और बॉल होता था, वो सबसे पहले बैटिंग करता था और वो फील्डिंग नहीं करता था। इस तरह से क्रिकेट खेलने के दौरान कई बाद बॉल पड़ोसियों के यहां चली जाती, कई पड़ोसी ऐसे होते जो बॉल वापस नहीं लौटाते, लेकिन कई ऐसे जो खुद बॉल लेकर हमारे बीच पहुंच जाते और खुद भी हमारे साथ खेलने लग जाते थे।

लुकाछिपी

बचपन में इस खेल को खेलने का अपना ही आनंद था। हम बच्चों की टोली एक जगह इकट्ठा होकर इस खेल को खेलते थे। टोली के सभी सदस्य छिप जाते थे और एक सदस्य सभी को ढूंढता था। कभी हम बहुत आसानी से मिल जाते थे, तो कभी कबार अपने साथी को खूब छकाते भी थे।

जब हम थोड़ बड़े हो गए, तो अपने उम्र के बच्चों के साथ साइकिल सीखने का प्रयास करने लगे। कैरियर को दो-तीन बच्चे पकड़ते थे और सीट पर बैठा सवार हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकिल सीखने का प्रयास करते थे। इस दौरान कैरियर पकड़े बच्चे के कैरियर छोड़ देने पर सवार नीचे गिर जाता था, ऐसे में बच्चा धीरे-धीरे ही सही लेकिन साइकिल चलाना ज़रूर सीख जाता था।

तोता उड़ से जुड़ी हैं यादें

बचपन में यह खेल हमारे लिए सबसे प्यारा खेल था। इस खेल में अगर कोई गलती से गधे को उड़ा देता था, तो उसकी जमकर पिटाई होती थी। अब ऑफिस से फुर्सत मिले तब तो हम चिड़िया और तोता उड़ाएं। काम से फुर्सत मिलती भी है, तो थकान रहती है और बिस्तर पर जाते ही नींद आ जाती है। लेकिन ये बचपन के बेहतरीन पल थे, जिन्हें हम कभी भी भुला नहीं पाते हैं।

कभी चेहरे पर मुस्कान, तो कभी आंखों में आ जाते हैं आंसू

जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है, तो कुछ बातों को याद करके हम आनंदित हो जाते हैं। वहीं, कुछ बातों को याद करके आंखों में आंसू आ जाते हैं। हम यादों के समंदर में खो जाते हैं। हम सभी का बचपन प्रेरणा से भरा है, क्योंकि हमने बचपन में गलतियां, नादानियां और शैतानियां की हैं, जो अब याद आते हैं तो मन उसमें कहीं खो सा जाता है। हम सोचते हैं कि बचपन में हमने ये ये गलतियां की थी, जिसे अब कभी नहीं दोहराएंगे। लेकिन, अब बचपन तो बीत चुका है और वो दिन भी बीत चुके हैं। फिर भी बचपन की वो यादें हमेशा दिलो-दिमाग में अपनी जगह बनाए हुए है। तो इस लेख को लिखते-लिखते मैं भी अपने बचपन में खो गया हूं और याद कर रहा हूं उन दिनों को, जब मैं गांव में पगडंडियों में गुल्ली-डंडा लिए दौड़ा करता था, वो भी बिना किसी फिक्र और चिंता के। वो पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ना अभी भी याद है। इस कहानी को पढ़कर आपको भी अपना बचपन याद आ गया होगा, हां एक चीज़ ज़रूर है कि हम सबका बचपन थोड़ा अलग-अलग ज़रूर होगा, लेकिन बचपन तो बचपन ही होता है।