किसी ने कहा है कि किताब के आवरण को देखकर धारणा मत बनाओ। लेकिन किसी ने यह नहीं कहा है कि किताब के शीर्षक का नाम देखकर अनुमान लगा लो। ‘वेरोनिका डिसाइड्स टू डाई’ अजीब शीर्षक है, जो आपको किताब उठाकर पढ़ने के लिए मजबूर कर देगा।
जब आप पाउलो कोएल्हो (Paulo Coelho) की लिखी किताब उठाते हैं, तो आपकी उम्मीद काफी बढ़ जाती है। ‘वेरोनिका डिसाइड्स टू डाई’ आपको उस समय से बांध कर रखती है, जब से आपकी नज़र पहली बार किताब पर जाती है। हालांकि, पाउलो कोएल्हो की किताब के अंदर जो है, वह भी आपको निराश नहीं करता।
‘ऐल्कमी’ से लेकर ‘अडल्ट्री’ तक, लेखक के पास संवेदनशील विषयों पर लिखने का विशेष कौशल है। इस बार वह एक तीर से दो शिकार करते हैं।
वह कहानी की नायिका वेरोनिका की दृष्टि से पाठकों को एक पागलखाने और उन कथित पागलों के मन में ले जाते हैं। यह किताब नाटकीय रूप से शुरू होती है, जब वेरोनिका ‘चार पैकेट नींद की गोलियों’ के साथ बैठी होती है। पाउलो कोएल्हो की किताब का 10वां पन्ना पूरे होते-होते वेरोनिका खुदकुशी की कोशिश करती है। यह पाठकों को एक बड़ा झटका देता है। बहुत कम लेखक इसके बाद किताब की गति क्रम को कायम रख पाएंगे। लेकिन कोएल्हो ने इसे शानदार ढंग से रखा है। लेखक पाठकों को सहज तरीके से सूफीवाद, यात्रा, मन:चिकित्सा, तत्व विज्ञान और एक ऐसी कहानी, जो इन चीज़ों को जोड़ती है, उसे दुनिया में ले जाते हैं।
आप वेरोनिका से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। वह 21वीं सदी की पीढ़ी की सभी खूबियों और कमियों को आत्मसात करती है। होशियार, खूबसूरत, शिक्षित पर अपनी नीरस ज़िंदगी से भयानक रूप से ऊबी हुई है। वेरोनिका के पास खुद के बारे में अंतर्दृष्टि कम है। अपने अंदर झांकने की बजाए उसने अपने चारों ओर एक दीवार सी बना रखी है। इसमें वह एक फर्ज़ी व्यक्तित्व का निर्माण करती है, ताकि उसे समाज की सहमति मिल सके। ज़ाहिर है, वह यकीन करती है कि उसकी उम्र के बढ़ने के साथ उसकी ज़िंदगी बदतर होती जाएगी।
उपान्यास में पागलपन और सामान्य व्यवहार के बीच की पतली लाइन है। शब्द और उसके अर्थ दोनों का बार-बार अदल बदल कर उपयोग किया गया है। जो दूसरे पात्र हैं, जिनका और भी ज़्यादा इस्तेमाल किया जा सकता था, जब कोइल्हो मानव उदासीनता और बेबसी की प्रवृत्ति को कैद करने की कोशिश करते हैं, तब वह कथा में कुछ नया जोड़ते हैं। इसका प्रस्तुतिकरण काफी प्रभावशाली है। इसके कारण पाठक यह प्रश्न पूछ सकता है कि ‘सामान्य व्यवहार वास्तव में है क्या’। किताब पढ़ने पर पाठक कभी-कभी पागलपन की वकालत करते भी नज़र आएंगे।
यह किताब, जिसकी दुखद शुरुआत हुई थी, उसका अंत खुश करने वाला है। जो इतना संवेदनशील है कि वह लगभग आप तक पहुंच ही जाता है।
‘वेरोनिका डिसाइड्स टू डाई’ काफी उम्मीद जगाती है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह व्याख्या बहुत अच्छी करती है जो आपके दिल तक पहुंचती है।