साहित्यकार की लोकप्रियता उनकी भाषा और क्षेत्र पर निर्भर करती है। हालांकि, कुछ ऐसे भी साहित्यकार हुए हैं, जिनकी रचानाओं ने क्षेत्र या फिर भाषा की सीमाओं को तोड़ते हुए पूरी दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। उनकी रचनाओं की कहानी से लेकर पात्र तक ऐसे होते हैं कि किसी भी भाषा के पाठक उनकी रचना को पढ़ते हैं, तो उन्हें या तो अपने जीवन की कहानी लगती है या फिर अपने आस-पास चल रही घटनाओं की जीवंतता नज़र आती है। ऐसे ही एक साहित्यकार थे शरत चंद्र चट्टोपाध्याय।
यूं तो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के साहित्यकार थे, लेकिन उनकी रचनाओं ने अपनी उपस्थिति पूरे विश्व में दर्ज़ करवाई। उन्होंने अपनी रचानाओं से बांग्ला साहित्य को एक नई दिशा दी। देवदास, परिणीता जैसी सुपरहिट फिल्में शरतचंद्र के उपन्यासों पर ही आधारित थीं। उन्होंने अपनी रचनाओं से बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे भारत के सामने महिलाओं के जीवन को सही पहचान दिलाई।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम पढ़ेंगे देवदास उपन्यास के लेखक शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं की एक झलक। साथ ही हम उनके जीवन के बारे में भी जानेंगे।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म बंगाल के हुगली जिले के देवनंपुर गांव में 15 सितंबर 1878 को हुआ था। उनका ज़्यादतर जीवन अपने ननिहाल बिहार के भागलपुर में गुज़रा। यहीं, उन्होंने पढ़ाई भी की। उन्होंने भागलुपर की साहित्य सभा की स्थापना की। हालांकि, आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। लेकिन वो साहित्य लिखते रहे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बिहार के बनेली एस्टेट बंदोबस्त अधिकारी के रूप में की थी।
युवाओं के चहेते लेखक थे शरत चंद्र चट्टोपाध्याय (Yuvaon ke chahete lekhak the Sarat Chandra Chattopadhyay)
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की लेखनी में वो जादू था, जिसको पढ़ते ही पाठक उसमें डूब जाता था। उनकी लेखनी ने युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया। उनका सबसे ज़्यादा लोकप्रिय उपन्यास ‘देवदास’ युवाओं को इतना पसंद आया कि वे इसके चरित्र में डूब गए। वहीं, उन्होंने भारतीय सहित्य में महिलाओं के जीवन और उनके अधिकारों के मुद्दे को मुखरता से उठाया। उनका मानना था कि महिलाओं को हमने जो केवल औरत बनाकर ही रखा है, इंसान नही बनने दिया है, उसका प्रायश्चित हमें स्वतंत्रता मिलने से पहले करना चाहिए। उन्होंने महिलाओं के जीवन को लेकर जो साहित्य लिखा, वो बहुत ही प्रगतिशील है। उन्होंने महिलाओं को केवल महिला बने रहने से अलग इंसान बनने के लिए प्रेरित किया। उनकी लेखनी का मकसद था समाज को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाना और महिलाओं को सफलता की ओर जाने के लिए जागरूक करना।
‘चरित्रहीन’ को पढ़कर रो पड़ती थीं लड़कियां (‘Charitrhin’ ko padhkar ro padti thin ladkiyan)
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का देवदास के बाद अगर कोई और नोबेल सर्वाधिक पसंद किया गया, तो वो है चरित्रहीन। इसमें उन्होंने महिलाओं के मन को बहुत ही अच्छे से समझते हुए उसे शब्द दिया है। आलोचक भी मानते हैं कि ‘चरित्रहीन’ नारी वादी परंपराओं की छवि को एक सफल प्रयास था। यह उपन्यास उस समय लड़कियों के दिल में बस गया। इसमें वो उस समय के समाज को रूपांतरण करते हुए महिलाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है।
अमर हो गए देवदास के तीन पात्र (Amar ho gaye Devdas ke teen patra)
देवदास उपन्यास शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का सबसे ज़्यादा लोकप्रिय उपन्यास है। इसमें बांग्ला संस्कृति का जादुई चित्रण किया गया है। इसके मुख्य तीन पात्र देवदास, पारो और चंद्रमुखी को उन्होंने शब्दों से इस तरह बांधा की ये पात्र अमर हो गए। पात्रों की तरह इस उपन्यास की प्रेम कहानी भी अमर हो गई। इस उपन्यास को लेकर आलोचकों का मानना है कि इसमें प्रेम को अविस्मरणीय ऊंचाई पर पहुंचा दिया। इसका नायक हमेशा इंसान के दिल में किसी-न-किसी कोने में अपना स्थान बनाए रखेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि देवदास एक पात्र ही नहीं बल्कि भाव है, एक विचार है, जो कभी भी किसी भी परिस्थिति में मिट नहीं सकता है।
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