आदिल सोच रहा था कि क्या प्रदर्शनी देख रहे लोग जानते थे कि वे इसमें कैनवास पर केवल रंगों और ब्रशस्ट्रोक को ही नहीं देख रहे थे। दरअसल, वह तो उसकी आत्मा में झांक रहे थे।
उसके विचारों की श्रृंखला को आर्ट डीलर इमरान ने तोड़ा। उन्होंने आदिल को एक मैग्जीन पकड़ाते हुए कहा इस पर एक नजर डालो।
ओमर रशीद ने उसकी तस्वीरों की जो समीक्षा की थी। उसमें लिखा था ‘आदिल एक असाधारण प्रतिभा है। उसका आर्ट तो मानो रंगों की कविता कह रहा हो’।
इमरान ने कहा ओमर (उमर) रशीद एक प्रभावशाली कला समीक्षक हैं, जिनके बारे में मैंने तुम्हें बताया था। वह तुमसे मिलना चाहते हैं।
शायद यही वह क्षण है। मेरा लॉन्चपैड। आदिल ने कहा इंशाअल्लाह। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है, मैं कल उनसे मिलूंगा।
अगले ही कुछ दिनों में आदिल सेलिब्रिटी बन गया था। रशीद के साथ लंच लेते हुए आदिल की फोटो के बाद मीडिया ने उसे ‘डार्क हॉर्स’ अर्थात छुपा रुस्तम करार दे दिया था। वह दुनिया जो हमेशा उसकी कठोर परीक्षा लेती रही, आज अचानक उसकी सहयोगी बन गई थी। उसके समकालीन आर्टिस्ट जो उसे हमेशा कम आंका करते थे। अब उसकी खुशामद करने लगे थे। गुमनाम रहने का आदि आदिल अचानक मिली ख्याति (स्पॉटलाइट) में खो गया था।
उसे अब केवल नूर की ही कंपनी की सबसे ज्यादा जरूरत थी। उसके पास नूर के लिए कुछ करने का मौका जो आ गया था। उस शाम आदिल ने एक पॉन शॉप (गिरवी रखने वाली दुकान) पर जाने का निर्णय लिया। पॉन शॉप के रास्ते में उसे अपने पुराने दिन याद आने लगे।
वह गिड़गिड़ा रहा था नूर उसे मत बेचो। मुझे पता है यह तुम्हारे लिए कितना महत्वपूर्ण है।
वह दृढ़ता के साथ जवाब दी आदिल तुम जो कर रहे हो, वह मेरे इस सामान से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।
एक स्ट्रगलिंग आर्टिस्ट होने की वजह से उसके पास अब तक कोई विकल्प नहीं था। वह सिर्फ दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता था। लेकिन नूर को उसकी मुश्किलों में शामिल होने की जरूरत नहीं थी। लेकिन वह इसमें शामिल थी।
वह बुदबुदाया, ‘नौ साल का लंबा अरसा ..’।
एक मखमल का डिब्बा अपनी जेब के हवाले करते हुए वह पॉन शॉप से बाहर निकला। ड्राइव करता हुआ सीधे घर पहुंचा।
नूर ने पूछा, ‘आप जल्दी वापस आ गए, प्रदर्शनी कैसी रही?’
आदिल ने बेफिक्रि के साथ जवाब दिया प्रदर्शनी बहुत सफल रही। मैंने वहां तुम्हें बहुत मिस किया।
वह खुशी से चहकती हुए बोली मैंने पत्रिका में रशीद की समीक्षा पढ़ी। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।
उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ओमर रशीद ने आज मेरी एक पेंटिंग खरीदी। तुम यहां मेरे पास आओ। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं। उसने अपनी जेब से एक छोटा नीला मखमल का डिब्बा निकाला और उसे खोला।
खुशी के मारे नूर का गला भर आया क्या यह वही मेरी दादी की अंगूठी है? आज इतने वर्षों के बाद यह अंगूठी यहां पर? कैसे?।
आदिल ने जवाब दिया हां। यह वही है, जिसे तुमने नौ साल पहले मेरी कला में निवेश करने के लिए गिरवी रख दिया था।
यह सुनकर नूर ने उसे गले से लगा लिया। उसी क्षण उसे एहसास हो गया कि उसने बिल्कुल सही किया है।
आदिल उस पेंटिंग को बेचना नहीं चाहता था। वह पेंटिंग उसने नूर के लिए ही बनाई थी। लेकिन जब प्रसिद्ध और सम्मानित कला समीक्षक ओमर रशीद ने उसी पेंटिंग का मूल्य लगाने को कहा तो वह मना नहीं कर सका। नूर के लिए इतना तो करना बनता ही था। वह नूर का आभारी था। उसे अब नूर की त्याग की कीमत (Price of sacrifice) का पता चल गया था।