एक समय की बात है जब एक जंगल में खरगोश और कछुआ (Hare And Tortoise) रहते थे। खरगोश और कछुआ जिगरी दोस्त नहीं थे, तो दुश्मन भी नहीं थे। जहां सारा जंगल कछुए के शांत व्यवहार और असाधारण बुद्धि के लिए इज्ज़त करता था, वहीं खरगोश (khargosh) सबसे तेज़ होने के लिए पहचाना जाता था।
एक दिन जब खरगोश अपने दोस्तों के बीच शेखी मार रहा था, तब भेड़िए ने खिसियानी हंसी के साथ दावा किया कि खरगोश चाहे जितना तेज़ दौड़ ले लेकिन वह कछुए (kachhue) की बुद्धि को मात नहीं दे सकता।
अपने अपमान को खरगोश बर्दाश्त नहीं कर पाया और सीधे कछुए के पास जाकर उसे दौड़ की चुनौती दे डाली।
कछुआ, एक पेड़ के नीचे बैठकर पुस्तक पढ़ रहा था। उसने खरगोश की ओर देखते हुए अपना चश्मा ठीक किया और एक प्यारी-सी मुस्कान बिखेरते हुए खरगोश को बैठने के लिए कहा।
परेशान खरगोश कछुए के पास बैठ गया। कछुए ने कहा, ‘प्रिय मित्र मैं तुम्हारे साथ दौड़ का मुकाबला नहीं करूंगा। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हार से डरता हूं, बल्कि इसलिए कि गति मेरा गुण नहीं है, बल्कि बुद्धिमत्ता मेरा गुण है। जब हमारे गुण ही अलग हैं, तो हमारे बीच मुकाबला कैसा। गलत इरादे लेकर जो लोग सलाह देते हैं, उनकी बात मत सुनो। वे अपने मनोरंजन के लिए हमें आपस में टकराने के लिए उकसा रहे हैं। तुम इसे स्वीकार मत करो।’
कछुए की यह बात सुनकर खरगोश मुस्कुराया क्योंकि यह तर्कसंगत बात थी। उसने कछुए को धन्यवाद दिया और फुदककर चला गया। दौड़ का मुकाबला कभी नहीं हुआ और बाद में खरगोश और कछुआ और बाकी पशु सब आपस में मिलजुलकर खुशी से रहने लगे।