सात साल का रमन गुब्बारे वाले की आवाज़ सुनकर बालकनी की तरफ दौड़ते हुए बोला, “मम्मी गुब्बारे वाला। मुझे भी गुब्बारा चाहिए।”

“ना कोई गुब्बारा नहीं। जाकर पढ़ाई करो चुपचाप।” मम्मी ने किचन से ही डांटते हुए कहा तो रमन उदास होकर अपने कमरे की तरफ जाने लगा, तभी गुब्बारे वाले की आवाज़ से रमन रुक गया और मम्मी से नज़रें बचाते हुए, बालकनी में जाकर खड़ा हो गया।

घर के सामने सड़क के दूसरी ओर गुब्बारे वाला खड़ा था। बच्चे उसके पास आकर उससे गुब्बारे ले रहे थे पर रमन प्यासी निगाहों से दूर से ही रंग-बिरंगे सुंदर गुब्बारों को निहारता रहा। एक दो बार गुब्बारे वाले से रमन की आंखे भी टकराईं। गुब्बारे वाले ने इशारे से पूछा, “लेना है?” और रमन ने “नहीं” में गर्दन हिला दी। रमन जब दूर से गुब्बारे देखते-देखते थक गया तो फिर अपने कमरे में चला गया, और गुब्बारे वाला थोड़ी देर और वहीं गुब्बारे बेचकर निकल गया।

दूसरे दिन फिर गुब्बारे की आवाज़ से रमन बालकनी की तरफ दौड़ा। मम्मी ने आज भी गुब्बारे के लिए पैसे नहीं दिए थे। लाल-पीले, नीले-हरे गुब्बारे रमन को ललचा रहे थे। गुब्बारे वाले ने रमन की तरफ देखते हुए फिर से इशारे में पूछा, “लेना है?” पर रमन ने गर्दन हिला कर इनकार कर दिया। गुब्बारे वाले ने गुब्बारे के ढेर से एक गुब्बारा निकाला और रमन की तरफ बढ़ा दिया।

रमन खुश तो हुआ पर फिर उदास होकर बोला मेरे पास पैसे नहीं हैं। मम्मी गुब्बारे के लिए नहीं देतीं।” इस पर गुब्बारे वाला हंसा और बोला, “मालूम है। फ्री में दे रहा हूं। नीचे आकर ले लो।”

रमन दौड़ता हुआ नीचे गया और गुब्बारे वाले को “थैक्यू अंकल” कहते हुए गुब्बारा ले आया।”

अब इस तरह रोज़ गुब्बारे वाला आता और रमन को बिना पैसे के ही एक गुब्बारा दे जाता। मम्मी पूछती कि तेरे पास गुब्बारे के लिए पैसे कहां से आए तो रमन कहता,  “मैंने उधार लिया है बाद में दे दूंगा।” मम्मी ने भी यही सोचकर कुछ नहीं कहा कि एक बार में पैसे दे दिए जाएंगे।

ऐसे ही मौसम बदलते गये और सर्दियों का मौसम आ गया। सर्दियों में भी गुब्बारे वाला आया करता। पर मम्मी रमन को तब तक कमरे से बाहर नहीं निकलने देतीं, जब तक गुब्बारे वाला बाहर होता।

एक दिन मम्मी सो रही थीं। और बाहर गुब्बारे वाले की आवाज़ आ रही थी। मौका अच्छा देखकर रमन दौड़ कर बालकनी में गया। बाहर बहुत ठंड थी और हल्का कोहरा भी था। ऐसे में गुब्बारे वाला एक पतली सी पुरानी कमीज पहने हुए, सर्दी से ठिठुरते हुए गुब्बारे बेच रहा था। रमन से देखा नहीं गया। वो जल्दी से अपने कमरे में गया और अलमारी में से अपना सबसे मोटा स्वेटर निकाल आया। फिर नीचे जाकर गुब्बारे वाले अंकल से बोला, “ये पहन लो ठंड नहीं लगेगी।”

ये देखकर गुब्बारे वाला बहुत भावुक हो गया। “बेटा मैं ये नहीं ले सकता।” उसने कहा।

“फ्री में थोड़े ही दे रहा हूं। अपना उधार चुका रहा हूं।” रमन ने कहा। तभी पीछे से मम्मी भी आ गई। ये सब देखकर मम्मी को रमन पर बहुत गर्व महसूस हुआ और उन्होंने कहा, “ये तेरा स्वेटर थोड़े ही आएगा अंकल को। रुक अभी पापा का स्वेटर लाती हूं।”

मम्मी बड़ा स्वेटर ले आईं। रमन ने अपने सामने ही गुब्बारे वाले को वो स्वेटर पहनाया। इससे गुब्बारे वाले के आंखों में आंसू आ गये और उसने खुश होकर, रमन को दो गुब्बारे पकड़ा दिये। “फ्री में थोड़े ही ले रहा हूं। मम्मी पैसे दो अंकल को।” रमन ने गुब्बारे पकड़ते हुए कहा तो मम्मी और गुब्बारे वाले अंकल हंसने लगे।