बस की रफ्तार की तरह राघव के मन में चल रहे ख्याल भी वैसे ही तेज़ी से दौड़ रहे थे। अपने पुराने दोस्त और बिजनेस पार्टनर महेश के साथ हुए विवाद की घटना अभी भी उसके मन-मस्तिष्क में इधर-उधर घूम रही थी। मैं उसे अपने सगे भाई से बढ़कर मानता था और उसने मेरे साथ धोखेबाजी की। इस घटना के बाद से राघव बहुत ही आहत था।
उसका सारा कारोबार बर्बाद हो गया और विश्वास के टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे। राघव अब नए शहर में अपनी ज़िंदगी नए तरीके से जीना चाहता था। पर, अपने दोस्तों से मिले धोखे और पीड़ा के कारण अब उसे फ्रेंडशिप से भरोसा उठा गया था।
“एक्सक्यूज मी… क्या इस सीट पर कोई बैठा है”? यह आवाज़ सुनते ही अपने ख्यालों में डूबे राघव की नींद खुल गई। होश आया तो राघव ने देखा कि एक अजनबी बुजुर्ग व्यक्ति उसकी सीट के पास में खड़ा है। “नहीं, यहां कोई नहीं बैठा है। आइए बैठिए,” राघव ने जवाब दिया।
“क्या आपको भी पुणे जाना है,” बुजुर्ग व्यक्ति ने राघव से पूछा। “हां, मुझे भी पुणे जाना है। क्या आप भी जा रहे हैं ?” राघव ने पूछा।
“जी, दरअसल, मेरा पुणे में एक छोटा-सा कारोबार है। आप क्या करते हैं?” अजनबी बुजुर्ग ने राघव से पूछा।
“मैं भी कभी बिजनेस करता था, पर अब सब कुछ खत्म हो चुका है। अब पुणे में ही कुछ नया शुरू करने की सोच रहा हूं”, राघव ने जवाब दिया।
“पुणे बहुत ही सुंदर शहर है। वहां कोई आपके दोस्त या रिश्तेदार रहते हैं क्या?” अजनबी बुजुर्ग (Stranger old man) ने अपनी बात जारी रखी।
“नहीं, मेरा वहां कोई नहीं रहता है। देखते हैं मेरा भाग्य मुझे किधर लेकर जाएगा”, राघव ने कहा। जब राघव की उस अजनबी व्यक्ति पर नज़र पड़ी, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,”मेरा नाम सुरेंद्र है।”
दोनों के बीच अपनी निजी ज़िंदगी, परिवार और अपने फ्यूचर प्लान के बारे में इतनी लंबी बात हो गई कि कब घंटों बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला। जैसे एक लंबे अरसे के बाद दो दोस्त मिले हैं और बातों का यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
जैसे ही बस पुणे पहुंची, तो दोनों लोगों ने हाथ मिलाया। “आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा सुरेंद्र। यहां पर मैं अपना बिजनेस कैसे शुरू कर सकता हूं, यह बताने के लिए आपका बहुत ही शुक्रगुजार रहूंगा और आपकी सलाह बहुत ही प्रशंसनीय है “, राघव ने कहा।
“राघव आपको जब कभी भी ज़रूरत हो, तो ये मेरा कार्ड है। मुझे याद कर सकते हो। ये मत सोचना कि आप इस शहर में अकेले हैं”, सुरेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
सुरेंद्र के एक-एक शब्द ऐसे लग रहे थे, जैसे कि कोई दोस्त बोल रहा हो। राघव ने सुरेंद्र को गुडबाय कहा। यह सोचकर राघव को खुशी का कोई ठिकाना नहीं था कि बस में ऐसे एक नेक इंसान से उसकी मुलाकात हो गई।