झप्पी, गले मिलना

वो आखिरी झप्पी

उसकी मां के गुस्सैल स्वभाव ने बचपन में ही उसके दिलो-दिमाग में अपनी जगह बना ली थी। लेकिन अब, मां को रोता देखकर मालिनी अंतत: उनकी मनोदशा को समझ रही थी।

मालिनी ने कमरे में पानी का ग्लास लेकर कदम रखा और उसे अपनी मां के होठों से लगा दिया। मां धीरे-धीरे पानी पीने लगी। पानी का हर घूंट उन्हें पीड़ा दे रहा था। कैंसर ने उसकी मां को बहुत कमजोर कर दिया था। उनका संघर्ष देखना भी पीड़ादायक था। इसके बावजूद मालिनी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

मां ने उससे पूछा, ‘क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?’।

मालिनी यह सुनकर स्तब्ध हो गई। वह इस सवाल को समझने के लिए वक्त लेती हुई, अपनी मां से बोली, ‘माफी? किस बात की?’ उसकी मां ने कहा, ‘मेरे मजबूर होने की माफी।’

मालिनी के दिल में उथल-पुथल मची हुई थी। उसकी मां के गुस्सैल स्वभाव (Angry temper) ने बचपन में ही उसके दिलो-दिमाग में अपनी जगह बना ली थी। न जाने कितनी बार उसने खुद को इस वजह से मज़बूर पाया था और टेबल के नीचे छुपकर अपनी मां द्वारा फेंके गए बर्तन व अन्य चीज़ों से बचती हुई वह घर से बाहर भागी थी।

उसने कभी सोचा नहीं था कि उसकी मां भी इतना ही मज़बूर हो जाएगी। मामूली आमदनी से चार-चार बच्चों को पालना-पोसना कठिन था। लेकिन क्या वह सारा गुस्सा इस मज़बूरी की वजह से था।

एक गहरी सांस लेते हुए मालिनी ने वर्षों तक ली गई काउंसिलिंग और ट्रेनिंग को याद करते हुए अपने विचारों को भावनाओं से अलग किया।

उसने कहा, “क्या आप खुद को माफ कर सकती हो, मां”?

बेतहाशा रोते हुए उसकी मां ने कहा, “नहीं, मालिनी मैं खुद को माफ नहीं कर सकती। मुझे पता है मैंने तुम्हें काफी दर्द दिया है।”

मालिनी ने अपनी रोती हुई मां की ओर देखा, तो उसे एक असुरक्षित, कमजोर महिला दिखाई दी, जिसने गुस्से का मुखौटा पहन रखा था। वह एक कदम आगे बढ़ी और उसने रोती, टूटी और दर्द से कराहती हुई मां को अपने गले से लगा लिया और एक प्यार भरी झप्पी दी।

माफ कर देने से शायद दोनों में से एक का तो घाव भर ही गया होगा।

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