करन और शीतल दो साल से रिलेशनशिप में थे। दोनों हॉस्टल में रहते थे, और एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।
करन शीतल से बहुत प्यार करता था, और शीतल को लेकर बहुत ज़्यादा सीरियस रहता था। वो कहां जा रही है, किससे बात कर रही है, या कौन उससे बात कर रहा है, उसके दोस्त कौन-कौन हैं, करन हमेशा इन्हीं चीज़ों पर ध्यान देता रहता था।
उसे शीतल का अपने दोस्तों के साथ घूमना और बातें करना, बिल्कुल पसंद नहीं था। करन शीतल को लेकर हर इंसान पर शक करने लगा था।
“यहां मत जाओ। उससे बात मत करो।” जैसी बातें वो अक्सर ही शीतल से कहता रहता था।
शीतल आज़ाद ख्यालों वाली लड़की होने के बावजूद उससे इतना प्यार करती थी कि करन की हर बात चुपचाप मान लेती थी।
करन के कहने पर उसने अपने सारे मेल फ्रेंड्स से बात करना भी बंद कर दिया और अपने दोस्तों के साथ बाहर घूमने भी नहीं जाती थी। जिसके चलते उसके बहुत सारे दोस्त उससे नाराज़ हो गये थे।
एक दिन कॉलेज में जब शीतल और करन साथ बैठे थे, तब शीतल के चचेरे भाई का फोन आया। दोनों इकलौते बच्चे थे, और घर भी आस-पास था, तो साथ ही बड़े हुए थे। दोनों बिल्कुल सगे भाई-बहन की तरह रहते थे। शीतल उससे बात करने के लिए करन से थोड़ा दूर जाकर खड़ी हो गई।
उसका भाई उससे एक साल बड़ा था और किसी दूसरे शहर में पढ़ता था। शीतल अपने भाई से पिछले सात महीनों से नहीं मिली थी, और अब वो घर आ रहा था। वो चाहता था कि शीतल भी जल्दी से घर आ जाए और दोनों भाई बहन मिलकर खूब मस्ती करें।
शीतल अपने भाई के आने की खबर पर बहुत खुश हो रही थी। वो अपने भाई से बहुत हंसी मज़ाक भी कर रही थी।
करन उसे देख रहा था। शीतल जब बात खत्म करके आई, तो करन बहुत चुप था। शीतल उसे बताए जा रही थी कि उसका भाई घर आ रहा है, और वो भी कुछ दिन की छुट्टियां लेकर घर जाएगी। इसपर भी करन ने कुछ नहीं बोला और चुपचाप उठकर क्लास में चला गया।
शीतल को कुछ समझ नहीं आया। वो भी उसके पीछे-पीछे क्लास में चली गई। क्लास खत्म होते ही शीतल करन के पास गई।
“क्या हुआ तुम ऐसे बिना कुछ बोले क्यों उठ आए?” शीतल के पूछने पर भी करन कुछ नहीं बोला और चुपचाप क्लास के बाहर निकल आया।
करन के ऐसे बर्ताव से शीतल डर गई और उससे बार-बार पूछने लगी, “क्या हुआ?… बताओगे? बोल क्यों नहीं रहे कुछ?”
तभी करन ने कहा, “तुम अपने भाई से बात मत किया करो।” करन की बात सुनकर शीतल चौंक गयी। वो कुछ कहती उससे पहले ही करन ने फिर से कहा, “हां…मत किया करो। मुझे उसकी नीयत ठीक नहीं लगती। और तुम उसके घर भी मत जाना… ठीक है…” करन अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि शीतल ने गुस्से में आकर उसे एक चांटा जड़ दिया।
“तुम्हारी सोच इतनी घटिया कैसे हो सकती है?” शीतल की आंखों में आंसू आ गये और वो भाग कर अपने हॉस्टल चली गई। करन कुछ देर तक अपने गाल पर हाथ रख कर वहीं खड़ा रहा और फिर वो भी अपने हॉस्टल चला गया।
करन का शक इतना ज़्यादा बढ़ जाएगा कि वो शीतल के भाई के बारे में ऐसा बोलेगा, ये शीतल ने कभी नहीं सोचा था। शीतल को इससे बहुत चोट पहुंची और वो करन को बिना बताए ही उसी दिन अपने चचेरे भाई के घर चली गई।
शीतल प्यार और पागलपन में फर्क समझ चुकी थी। वो जान चुकी थी कि करन के साथ रहना उसके लिए बिल्कुल ठीक नहीं है। उसने घर जाकर भी करन से कोई बात नहीं की, और उससे अपने सारे रिश्ते तोड़ लिये।
ऐसा करने में शीतल को बहुत तकलीफ हुई, पर वो समझ चुकी थी कि कभी-कभी हमें खुद की भलाई के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ को अलविदा कहकर, उससे मूव ऑन करना ही पड़ता है।