एक शांतझील केकिनारे बैठासुभाष अपनी मंगेतर तान्या काइंतज़ार कर रहा था।उनदोनों कारिश्ता घरवालों कीमर्ज़ी से जुड़ाथा।दोनों ने इसरिश्ते को मंजूरी दी औरधीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे केप्यार केरंग में ऐसे डूबे की, खुदघरवालेभी ताज्जुब करते किकहीं येदोनों एक-दूसरे को पहले से तोनहीं जानते।तान्या एक सामान्य परिवार से थी और सुभाष केपापाकाअच्छा खासा बिजनेस था।हालांकि , सुभाष अपनाखुद काबिजनेस खड़ा करना चाहता था औरइसलिए उसने इससगाई कोदोसाल तकटालेरखा।अबउसकाबिजनेस सेटहो चुका था, तोपरिवार वालों नेसोचा कि इससे पहले कि सुभाष कोई औरबहाना बनाएं उससे पहले ही शादी कीतैयारियां शुरू करदेनीचाहिए।ऐसा ही हुआ, दोनों केघरों में जोरों-शोरों से तैयारियांहोने लगींथीं।इसीबीच सुभाष ने तान्या को अचानक इसझील के किनारेमिलने बुलाया था।
“धप्पा! हाहाडरगयेन! शक्ल तोदेखोअपनी।” तान्या ने झीलके किनारे बैठे सुभाष को पीछे से डराते हुए कहा।
“अरेयारतुमयेबचपना कबछोड़ोगी? अबतो तुम्हारी शादी भी होने वाली है।” सुभाष ने थोड़ातुनककर कहा।
“तुम्हारी नहीं हमारी।हमारी शादी होने वाली है मिस्टर सुभाष दुबेऔररही बात बचपने कीतोऐसा कौन-सी बुकमें लिखाहै कि शादी होजाने केबादमस्ती-मजाक नहीं करसकते?” तान्या ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“मेरी किताब में।देखो मुझे येसबपसंद नहीं।मैं अपनी ज़िंदगी में एक समझदार लड़की चाहताहूं, ऐसीबचकानी हरकतें करने वाली नहीं।” सुषाभकेमुंहसे अचानक ऐसीतीखी बातें सुनकर तान्या केचेहरे कारंग उड़ गया।येअचानक सुभाष को क्या हो गया था? तान्या तो हमेशा से मस्ती-मजाक वाली थी फिर आजयूं अचानक सुभाष को उसके बचपने से परेशानीकैसे होने लगी?
“तुम ठीक तो हो न? क्या हुआ है? तुममुझे कुछ बदलेहुए से लग रहेहो…बोलो?
तान्या ने परेशान होकर कहा तो सुभाष एकदम से खड़ा हो गया और उसने जो कहा उसे सुनकर तान्या कीआंखेंभर आईं।
“मैं तो हमेशा से ही ऐसा था।बदलना तुम्हें हैऔरनहीं बदलसकती तो जाओमनाकरदोशादी केलिए क्योंकि मुझे अभी येशादी नहीं करनी है।”
“क्या!” सुभाष कीबात सुनकर तान्या बसइतना ही कहपायीथी कि तभी सुभाष अचानक वहां से चला गया और तान्या वहीं बैठी रहगई।सुभाष कायेरूप देखकर तान्या बुरी तरह टूट गई।कुछ देर वहीं बैठकररोने केबाद जबवोघरगई, तो उसने सीधाअपनी मां से कहा, “मां मुझे येशादी नहीं करनी।मुझे सुभाष पसंद नहीं।”
“क्या बकतीहै।तेरादिमाग तो ठीक है।यहां तेरीशादी केलिए तेरेपापा येघरगिरवी रखने चले थे औरतूयेशादीकरनेसे मना कर रही है?” तान्या कीमां ने अचानक से कहा तो तान्या औरपरेशान हो गयी।
“क्या! घरगिरवी परक्यों?” तान्या केपूछने पर उसकीमां ने बताया, “क्योंकि सुभाष केघरवाले चाहते हैं शादी में उन्हें दहेज दिया जाए।”
“क्याबकवास है ये? वोलोग ऐसीघटिया डिमांड कैसे करसकते हैं? अच्छाहुआ जो मेरे सामने सुभाष और उसकीफैमिली कायेघिनौनीचेहरा पहले ही आगया।अबतो येशादी बिल्कुल नहीं होगी।” तान्या ने सीनाचौड़ा करते हुए कहा कि तभी उसकीमां बोली, “पागल हो गई है? सुभाष जैसाअच्छा लड़का तो तुझे ढूंढने सेभी नहीं मिलेगा।उसीने तो येघरगिरवीरखने से हमें रोका है, उसने अपनेपरिवार को ऐसीबेकार मांगकरने केलिए खूब समझाने कीकोशिश कीपर…
“पर वो लोग नहीं माने और इसलिए आजसुभाष ने मेरे साथ ऐसा बर्ताव किया ताकि मैं इसशादी केलिए खुद हीमना कर दूं।” तान्या ने अपनी मां कीबात बीच में ही काटते हुए कहा क्योंकि तान्या को अबसबकुछ समझ आगया था।वोसमझ चुकी थी कि सुभाष बुरानहीं है वोतो बुरा बनने कानाटक कर रहा था ताकि तान्या उससे चिढ़ कर शादी केलिए खुद मनाकर दे।
तान्या येसब बातें सोचहीरही थी कि तभी तान्या केपापावहां आएऔरबोले, “सुभाषकापरिवार मानगया है।उन्होंने अपनी बेकारकीमांगें हटादीहैं।अबहमजैसीचाहेवैसीशादी करसकते हैं।”
येसुनकर तान्या कीमां नेअपनी बेटी को गले लगा लिया।तान्या अपने मनमें सोचने लगी कि सुभाष सचमें उसके लिए एक अच्छा जीवनसाथी है।एक ऐसा जीवनसाथी जिसने बिना अपनी भावनाओं कीपरवाह किए, तान्या केपरिवार को मुसीबतमें पड़ने से बचाने की कोशिश की।