करण, रूची के पापा का करीबी दोस्त था, और पड़ोस में ही रहता था। जिस वजह से उसका घर में आना-जाना लगा रहता।
एक दिन रुची कमरे में अकेली बैठकर होमवर्क कर रही थी। उसी समय करण उसे चॉकलेट देने के बहाने उसके कमरे में आया। रुची तब महज़ आठ साल की थी, और अच्छे-बुरे से अंजान थी। वो करण अंकल का उसके गालों को सहलाते हुए, पीठ पर हाथ फेरने का मतलब नहीं समझ पाई थी। पर फ्रॉक में खुली टांगो पर बार-बार करण का हाथ रखना उसे अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए वो उठ कर अपनी मम्मी के पास चली गई।
इसके कुछ दिनों बाद ही रुचि के स्कूल में सभी बच्चों को Good Touch और bad touch के बारे में बताया गया। और तब रुची भांप गई कि करण अंकल अच्छे इंसान नहीं है।
फिर जब भी करण घर आता, रुची उससे दूर-दूर और डरी-डरी ही रहती। हमेशा की तरह उस दिन भी करण ने रुचि के मम्मी-पापा के सामने ही उसे अपने पास बुलाया और उसके गालों को सहलाते हुए गोद में बैठाकर चॉकलेट्स देने लगा। लेकिन रुची ने चॉकलेट लेने से इनकार कर दिया।
“रुची करण अंकल से नाराज़ हैं? अच्छा चलो मैं तुम्हारे मम्मी पापा के सामने तुमसे सॉरी कहता हूं, अब तो ले लो।” करण सबके सामने अक्सर ऐसे ही नाटक करता, और सबको लगता करण रुची को बहुत प्यार करता है, क्योंकि उसका अभी खुदका कोई बच्चा नहीं है।
एक बार रुची ने अपनी मां से कहा कि, उसे करण अंकल अच्छे नहीं लगते… वो उसे गलत ढंग से छूते हैं। इसपर उसकी मां ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया, और कहा, “कहां से सीख रही है ये फालतू बातें? वो कितने अच्छे इंसान हैं, तुझे प्यार करते हैं, तेरे लिए चॉकलेट्स और खिलौने लाते हैं। फिर भी तू उनके लिए ऐसा सोच रही है?”
उस दिन रुची बुरी तरह टूट गई। उसकी मां ने भी उसकी बात नहीं समझी, उसे लगा पापा से कहेगी तो, वो तो उसे छोड़ेंगे ही नहीं। इसलिए सबकुछ चुपचाप सहने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया। रुची पंद्रह साल की हो गई। करण की हरकतें और बढ़ गई, वो जानता था, रुची डर के मारे किसी से कुछ नहीं कहती और इसी का नाजायज फायदा उठा कर वो रुची को कभी भी कहीं भी छू लेता। एक दिन तो उसने सारी हदें पार करके रूची को बांहों में भर लिया। रुची चीख पड़ी। आवाज़ सुनकर उसकी मां वहां आ गयी। करण चुपचाप कमरे से निकल गया।
रूची की मां ने उसे रोते हुए गले लगा लिया और कहा, “बेटा किसी से कहना मत… वो तेरे पापा के दोस्त हैं, मैं समझाऊंगी उन्हें।“
पर इसके बाद भी करण का घर आना बंद नहीं हुआ।
एक दिन रूची के छोटे भाई का जन्मदिन था। घर में पापा मम्मी के करीबी दोस्त आए हुए थे। उनमें करण और उसकी पत्नी भी शामिल थे। सब लोग बैठक में बैठे थे। रुची सबके लिए पानी लेने किचन में गई तो उसकी मदद करने के बहाने करण भी उसके पीछे हो लिया।
किचन बैठक के सामने ही था। पर फिर भी करण ने रुची के कंधे पर हाथ रख लिया, और हाथ सरकाते हुए उसकी गर्दन पर फेरने लगा। रुची असहज हो गयी।
वो कुछ देर तक कांपती रही, और फिर उसने करण को एक जोरदार चांटा जड़ दिया।
चांटा इतना तेज था कि, बाहर बैठे सब लोग चौंककर किचन की तरफ़ देखने लगे।
करण शर्मिंदा होकर किचन से बाहर आने को हुआ कि, तभी रुची बोली, “अरे रुकिए करण अंकल!… श्शश… किसी से कहना मत कि मैंने आपको एक जोरदार चांटा मारा है। जानते हो क्यों? क्योंकि तुम मुझे पिछले सात सालों से छूते आए हो… कमर, गर्दन, पैर…हर जगह…” कहते-कहते रुची जोर-जोर से रोने लगी।
सबने सब सुन लिया था। करण की असलियत सबके सामने थी, क्योंकि रुची खुद अपने लिए आवाज उठा चुकी थी।