विश्व हास्य दिवस

वो अंजान लड़की

मैले और जगह-जगह से फटे हुए कपड़े, जिनको सुई से सिलने की नाकाम कोशिश की गई थी। चेहरे पर झलकती बेबसी और आंखों में एक अजीब-सी चमक लिए, लड़की मंथन को लगातार घूर रही थी।

मंथन को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बड़ा शौक था। बड़े होते-होते ये शौक और भी बढ़ गया। उसके घर में एक कमरा सिर्फ किताबों के लिए था, पर वो सारी किताबें तो मंथन पहले ही पढ़ चुका था। इसलिए नयी किताबों की तलाश में हर शाम लाइब्रेरी जाया करता था। ये लाइब्रेरी और रेस्तरां दोनों था। जहां लोग चाय-कॉफी की चुस्कियों के साथ किताबें पढ़ना पसंद करते थे।

एक दिन जब मंथन लाइब्रेरी के एक कोने में बैठ कर, चाय और थोड़े स्नैक्स के साथ किताब में पूरी तरह डूबा हुआ था, तब उसकी नज़र उसे कांच की दीवार से घूरती, उन दो नज़रों पर गयी। ये मासूम नज़रें 14 साल की एक मलिन लड़की की थी। मैले और जगह-जगह से फटे हुए कपड़े, जिनको सुई से सिलने की नाकाम कोशिश की गई थी। चेहरे पर झलकती बेबसी और आंखों में एक अजीब-सी चमक लिए, लड़की मंथन को लगातार घूर रही थी। पहले तो मंथन ने उसे अनदेखा कर दिया और फिर से किताब पढ़ने लगा। पर जब उस लड़की की नज़र मंथन से और मंथन का ध्यान उस लड़की पर से नहीं उठा तो मंथन ने किताब टेबल पर रख दी, पर तभी वो लड़की वहां से चली गई।

अगले दिन जब मंथन फिर से उसी तरह अपनी किताब में मशगूल था, तो वो लड़की फिर से उसी तरह मंथन को देखने लगी। अब मंथन से रहा नहीं गया। उसने किताब टेबल पर रख दी, और उस लड़की से हाथ के इशारे से पूछा, “क्या है?”

मंथन के पूछने पर लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। तो मंथन को लगा कि शायद वो लड़की मंथन को उसके सामने रखे चाय और नाश्ते के लिए घूर रही है। मंथन ने नाश्ते की प्लेट हाथ में ली, और शीशे की आड़ से ही उसकी तरफ प्लेट बढ़ा दी। पर लड़की ने गर्दन हिला कर इनकार कर दिया और वहां से चली गई। इस बात से मंथन को बड़ी हैरानी हुई।

अगले दिन फिर मंथन लाइब्रेरी में किताब पढ़ रहा था। लेकिन आज मंथन का ध्यान किताब पर नहीं, उस लड़की पर था। जो आज शीशे पर नहीं खड़ी थी। थोड़ी देर बाद वो लड़की आ गई और मंथन को उसी तरह देखने लगी। पर आज मंथन सोच कर बैठा था कि आज उससे पूछकर ही रहेगा कि उस लड़की को क्या चाहिए? मंथन ने किताब बंद कर दी और उस लड़की से बात करने के लिए बाहर निकल गया। मंथन को अपनी तरफ आता देख, लड़की डर गई। वो जैसे ही जाने को हुई मंथन उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

“क्या बात है? क्या चाहिए तुम्हें?” मंथन ने बड़ी नर्मी से पूछा।

इस पर वो लड़की थोड़ा और घबरा गई और जाने लगी। तब मंथन ने कहा, “देखो! तुम मुझे रोज़ यहां बैठा हुआ देखती हो! बताओं क्यूं? मुझसे क्या चाहिए तुम्हें?”

मंथन के जोर देने पर लड़की के मुंह से अचानक ही निकल गया, “किताबें!”

मंथन हैरानी से उसे देखने लगा। तब उस लड़की ने बताया कि उसने एक दिन मंथन और उसके किसी दोस्त को ये बातें करते हुए सुना था कि मंथन पर बहुत सारी किताबें हैं।

“मुझे अपनी किताबें दे दो भईया जी! मुझे पढ़ना अच्छा लगता है। गांव के सरकारी स्कूल में पांचवीं तक पढ़ी हूं। उसके बाद बापू शहर ले आया और मेरा पढ़ना छूट गया।” लड़की ने बड़ी बेबसी से अपनी कहानी सुनाई।

मंथन ने लड़की की बात सुनी और उससे पूछा, “अगर में तुम्हें किताबें दूं और साथ में पढ़ाऊं भी तो क्या तुम मुझसे पढ़ना पसंद करोगी?”

मंथन की बात सुनकर लड़की की आंखें चमक गईं और उसने ज़ोर से “हां” में गर्दन हिला दी।

सच में, पढ़ाई के लिए उस लड़की की आंखों में वो चमक देखने लायक थी।

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