रमन 17 साल का था। बचपन में ही उसकी मां एक बीमारी से गुज़र गयी थी। पिता ने उसे अकेले ही पालाऔर बड़ा किया।
रमन को पढ़ना अच्छा लगता था, पर उसके पिता चाहते थे कि वो पढ़ाई छोड़कर उनके साथ उनकी मिठाई की दुकान पर बैठे। अपनी बात मनवाने के लिए उसके पिता ने उसके स्कूल की फीस देना बंद कर दिया था।
लेकिन, रमन ने फिर भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। उसने एक बीच का रास्ता निकाला। स्कूल की फीस भरने के लिए उसने सुबह-सुबह उठ कर अखबार डालना शुरू कर दिया। अखबार डालने के बाद वो स्कूल चला जाता और स्कूल से आने के बाद रात तक पढ़ाई करता रहता था।
अखबार डालते-डालते उसे लिखने का शौक भी लग गया था। पढ़ाई करते वक्त वो हमेशा ही कुछ ना कुछ लिखने की कोशिश करता रहता था। पर कुछ ढंग का ना लिख पाने की वजह से वो उदास हो जाता था।
एक दिन स्कूल में राइटिंगकॉम्पिटिशनथा। जिसमें रमन ने भी अपना नाम लिखवा दिया। नाम तो लिखवा दिया, पर रमन को यह समझ नहीं आ रहा था किवो ऐसी कौनसी कविता लिखे? जो सभी को पसंद आए। बहुत सोचने विचारने पर रमन ने एक कविता लिखी और राइटिंग कॉम्पिटिशनके लिए दे दी।
विजेता का नाम 26 जनवरी के दिन बताया जाना था। फिर 26 जनवरी का दिन आ गया। सभी बच्चे स्कूल के मैदान में इकट्ठे हो गए। एक के बाद एक कार्यक्रम के बाद राइटिंग कॉम्पिटिशनके विजेता का नाम बताया गया। रमन राइटिंग कॉम्पिटिशनमें फर्स्ट आया था। रमन को इनाम देने के लिए स्टेज पर बुलाया गया, और उससे उसकी ही लिखी कविता को पढ़कर सुनाने के लिए कहा।
रमन की हलवाई की दुकान उस जगह की मशहूर दुकानों में से थी, इसलिए स्कूल में 26 जनवरी पर बांटने के लिए मिठाई का आर्डर रमन के पिता को मिला था।
उसी वक्त रमन के पिता मिठाई का आर्डर पहुंचाने स्कूल आये हुए थे। वो रमन को स्टेज पर खड़ा देखकर रुक गये।
रमन ने सबके सामने अपनी लिखी कविता पढ़ना शुरू किया। कविता का शीर्षक का मेरे पापा….।
पूरी कविता पापा के प्यार और दुलार से भरी हुई थी। रमन ने कविता में मां के बिना पापा ने उसे कैसे पाला? ये भी लिखा था।
पीछे खड़े होकर रमन के पिता उसकी कविता सुन रहे थे। कविता सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गये।
रमन को फर्स्ट प्राइज मिलने से उनकी छाती और भी चौड़ी हो गई। रमन के पिता आगे चलकर आए और स्टेज पर चढ़कर, उसे गले लगा लिया। उन्होंने सबके सामने रमन से माफी मांगी और कहा कि, “तुझे अब से अखबार डालने की कोई ज़रूरत नहीं है और ना ही दुकान पर आकर काम करने की ज़रूरत है। तू पढ़ना चाहता है ना, तो पढ़ और ऐसे ही मेरा नाम रौशन करते रहना।
रमन ने मुस्करा कर अपने पिता को दोबारा गले से लगा लिया। स्कूल का मैदान तालियों की गरगराहट से गूंज उठा।