अर्जुन जब बच्चा था, तभी से कहानियां पढ़ने का उसे काफी शौक था।
ऐसी कहानियां, जिसमें कोई जासूस अपनी सूझबूझ और अपने स्वभाव का इस्तेमाल कर एक-एक दिन को सहेजकर रखता है। जैसे- 221B बेकर स्ट्रीट में जासूस होता है। ऐसी कहानियां, जिसमें उसका नायक नए ग्रहों और जीवन को खोजने के लिए पूरे ब्रह्मांड की यात्रा करता है। अर्जुन को ऐसी कहानियां पढ़ना पसंद था, जिसमें उसके पात्रों के पास सुपरपावर हो। पत्थर से तलवार निकाले और तुरंत ड्रैगन पर हमला कर दे। खुद से दूर दुश्मन के कब्जे से राजकुमारी को बचा ले। ऐसी कहानियां, जिसमें वास्तविक दुनिया से अलग कुछ भी संभव हो।
अर्जुन को वास्तविकता सिर्फ और सिर्फ बेजान और उबाऊ लगती थी। वह अक्सर खुद से कहता था कि इसमें तो कुछ भी ऐसा नहीं होता है, जिससे की शरीर के अंदर किसी तरह का उत्साह जगे। वहीं, उसके लिए कहानियों के मायने ऐसे थे, जिसमें जीवन के कई रंग (Many cuolors of life) देखने को मिले। इन रंगों के बिना कहानियां बिल्कुल ही ब्लैक एंड ग्रे की तरह लगती थी।
अर्जुन जब करीब 28 साल का था, तब से ही उसने कहानियां लिखना शुरू कर दी थी। पहले तो उसे लिखना बहुत ही मुश्किल काम लग रहा था, लेकिन कहानियों के प्रति लगाव ने उसे लैपटॉप से चिपके रहने के लिए मजबूर कर दिया। धीर-धीरे उसने छोटी कहानियां लिखने की तरफ अपना ध्यान लगाया। इन कहानियों को लेकर कुछ लोगों ने काफी तारीफ भी की, तो कुछ ने आलोचना भी की। बाहरी दुनिया के लोगों की आलोचनाएं उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं। उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण उसकी खुद की कल्पना की आवाज़ थी, जिसकी वास्तव में कोई सीमा नहीं थी। इस तरह अर्जुन ने करीब 20 साल तक उत्साहपूर्वक निरंतर कहानी लेखन की अपनी आदत जारी रखी, जब तक कि उसके सामने यह दुर्भाग्य भरा दिन नहीं आया।
दरअसल, अर्जुन की जब 45 साल की उम्र रही होगी, तब वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया। इस हादसे में उसकी रीढ़ टूट गई। इसके साथ ही लिखने की क्षमता भी खो गई। अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए वह अक्सर सोचता रहता कि वास्तविकता इतनी क्रूर कब हो गई? उसके लिए जीवन में सिर्फ एक ही चीज़ मायने रखती थी, वह थी कहानियां लिखना। पर, दुर्भाग्य देखिए ज़िंदगी ने ये भी उससे छीन लिया। इससे अर्जुन के मन में एक डर और निराशा का भाव आ गया, जिसे वह आसानी से महसूस कर सकता था। वह अक्सर अपने भाग्य को कोसने लगा और अस्पताल के बिस्तर पर पड़े-पड़े शायद ही ऐसा कोई दिन हो जब वह खुद से नाराज़ नहीं रहता था।
एक सुबह अर्जुन के दिमाग में अचानक से कुछ ख्याल आया और काफी महीनों बाद पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह खुद से सवाल करने लगा, अगर ये सब एक कहानी है और मैं इस कहानी का पात्र हूं, तो क्या होता? अगर ये सच होता, तो मैं क्या रूख रहता? अपने सपनों को छोड़ देता या उनसे जूझता?
अर्जुन का जवाब लैपटॉप पर टाइपिंग के दौरान मिल गया। इसके बाद ये शब्द ही उसके साथी बन गए और इन शब्दों ने उसे प्रोत्साहित किया। इसके बाद उसने इतनी कहानियां लिख डाली, जितने उसने हादसे से पहले नहीं लिखे थे। हालांकि, अर्जुन की शारीरिक रूप से काम करने की सीमा कम हो गई थी। इसके बावजूद उसे लग रहा था कि वह दूसरों की तुलना में अधिक ऊंची उड़ान भर सकता है और दूर तक जा सकता है। अर्जुन ने जीवन के ऐसे गुर सीख लिए जो उसकी कल्पनाशक्ति को और अधिक पंख दे सकते थे। इसके बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
ज़िंदगी एक कहानी की तरह है। इसके पात्र और लेखक दोनों आप ही हैं। जब आप अपना भाग्य लिखने के लिए हाथों में कलम थामते हैं, ऐसी स्थिति में कुछ भी संभव है, जब तक आप खुद पर विश्वास करते हैं।
अर्जुन ने विपरीत परिस्थितियों से भली-भांति जीवन जीने के तरीके सीख लिए थे। लेकिन इस कठिन दौर को पराजित कर वह काफी खुश था।