राघवेंद्र बड़े ही शिद्दत से एक कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहा था। उसके लिए एक हफ्ते का समय महीनों जैसे लग रहा था। वह दिनभर अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर सिर्फ अपनी नज़रें टिकाए रखता था। एक शब्द भी लिखने में खुद को पूरी तरह असहाय महसूस कर रहा था। दरअसल, कहानी लिखने के लिए उसे किसी इंस्परेशन की तलाश थी, पर उसे नहीं पता कि आखिर यह कहां मिलेगी।
एक दिन दोपहर के समय इन सबसे ऊब कर राघवेंद्र घर के पास पार्क में चला गया और वहां जाकर चुपचाप बैठ गया। अपनी आंखें बंद कर कुछ सोच ही रहा था कि अचानक उसे कुछ हलचल-सी लगी। उसने देखा कि एक कुत्ते का बच्चा उसके दाएं पैर को सूंघ रहा है। उसने अपने आस-पास अपनी नज़रें दौड़ाई, कहीं कोई इस बेजुबान जानवर का पीछा तो नहीं कर रहा है न। लेकिन, आसपास में कोई भी इंसान नहीं दिखा।
राघवेंद्र ने बड़े ही प्यार से उस छोटे डॉगी को अपनी गोद में उठाया। इसके बाद प्यार भरे मुस्कारन के साथ उस पर अपने प्रेम की बारिश शुरू कर दी। जवाब में नन्हा-सा झबरीला डॉग भी अपनी पूंछ को हिलाते हुए अपनी खुशी जता रहा था। राघवेंद्र के लिए लंबे अर्से बाद आज पहला ऐसा दिन था जब वह अपनी किताब (Book) से हटकर कुछ अलग सोच रहा था। उसे काफी खुशी भी मिल रही थी। अब उसे अच्छी तरह पता चल गया था कि आगे क्या काम करना है। सबसे पहले इस बेजुबान को अपने घर ले चलना है।
कुछ देर बाद राघवेंद्र की नींद (Sleep) खुल गई और उठकर बैठ गया। जब उसे पता चला कि अरे यह तो सपना था, तब वह दुखी और नाराज़ हो गया। वह सोचने लगा, काश! यह सपना हकीकत बन जाता। लेकिन, इस सपने से उसे एक अच्छी सबक मिल गई। अब उसे मालूम पड़ गया कि उसे कैसी कहानी लिखनी है। एक ऐसी कहानी, जिसमें ख्वाब हकीकत बन जाए।
राघवेंद्र एक पल भी अपने घर वापस जाने के लिए इंतजार कर नहीं पाया और अपनी कहानी लिखनी शुरू कर दी। घर आने से पहले वह सिर्फ एक डॉग शेल्टर के पास थोड़ी देर के लिए रुका था।