हर इंसान बुरा नहीं होता

हर इंसान बुरा नहीं होता

नताशा घर से पहली बार एक अंजान शहर लखनऊ में नौकरी करने आई थी।‌ जहां उसने पहले कभी एक रात भी अकेले नहीं गुज़ारी, वहीं उसे इस अंजान शहर में अकेले ही अपनी पूरी दुनिया बसानी थी।

घर से स्टेशन तक का सफर आज तक उसने अपने पापा के स्कूटर के पीछे बैठ कर तय किया था। पर स्टेशन से ट्रेन और फिर नये शहर की गलियों तक का सफर उसे खुद तय करना था।

“एड्रेस तो यहीं का था। पर ये मुन्सी चौक है किधर?” नताशा ने फोन में से एक एड्रेस पढ़ते हुए कहा। दरअसल मुन्सी चौक में तनाशा के एक दूर के रिश्तेदार रहते थे, उनका फोन नम्बर तो उसपर नहीं था। पर पापा ने कहा था उनका नाम लेने से वो लोग नताशा को तुरंत पहचान लेंगे, और उसके रहने खाने का इंतेजाम भी करवा देंगे।

बहुत ढूंढने के बाद भी जब उसे पता नहीं मिला तो उसने एक ऑटो वाले से पूछा, “भईया! ये विजय निवास मकान नं 3 मुन्सी चौक इधर ही है?”

“अरे यहां कहां मुन्सी चौक ढूंढ रही हो मैडम। ये तो पुराना मौहल्ला है। चलिए मैं पहुंचा देता हूं।”

“पापा ने जो एड्रेस बताया था। इस आदमी की बात मानूं या यहीं भटकते रहूं? नताशा ने खुद से ही सवाल किया और फिर मन में बहुत-सी फिक्र और झिझक लिए ऑटो में बैठ गई।

नताशा ने घड़ी में देखा तो साढ़े छह बज रहे थे और अंधेरा भी बहुत हो चुका था। अंजान शहर का डर तो पहले से ही उसके मन में था, पर इस ऑटो में बैठ कर, उसे किसी अनहोनी का डर भी सताने लगा था।

ऊपर से ऑटो के शीशे से झांकती ऑटो वाले की वो अजीब-सी नज़रें नताशा की बेचैनी बढ़ा रही थीं।

“और कितनी दूर है भईया?” नताशा ने ऑटो वाले से पूछा, जिसका उसने कोई जवाब नहीं दिया।

नताशा पर भारी पड़ता एक-एक पल का ये सफ़र करीब 15 मिनट के बाद खत्म हुआ, और ऑटो एक सुनसान जगह पर जाकर रुक गया।

“चलिए मैडम। आपका मुन्सी चौक आ गया।” ऑटो वाले ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।

“ये?..ये यहां? यहां तो बिल्कुल अंधेरा….ये मुन्सी चौक है?” नताशा ने झिझकते हुए पूछा ही था कि तभी ऑटो वाला बोला,

“चलिए। मेरे पीछे आइए।”

नताशा कुछ समझ पाती उससे पहले ही ऑटो वाले ने एक पतली सुकड़ी गली की तरफ अपने पैर बढ़ाने शुरू कर दिए थे।

“अरे! चलिए मैडम!” नताशा को अपनी जगह पर ही खड़ी देख कर ऑटो वाले ने कुछ कड़क मिजाज़ी में कहा, तो नताशा थोड़ा सहम गई और न चाहते हुए भी चुपचाप उसके पीछे चलने लगी।

नताशा उसके पीछे चल तो रही थी पर उसका मन बहुत घबरा रहा था। उसने धीरे से अपना फोन निकाला और उसपर एमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर डायल कर दिया और फिर जैसे ही नताशा फोन लगाने को हुई कि तभी उसकी नज़र रौशनी और लोगों से भरे हुए मोहल्ले पर पड़ी।

“ये लो मैडम! मुन्सी चौक आ गया और वो रहा आपका विजय निवास।” ऑटो वाले ने एक घर की तरह इशारा किया।

यह सुनकर नताशा ने एक चैन की सांस ली, कहा, “थैंक्यू भईया! आज आप नहीं होते तो मैं तो यहां भटकती ही रहती।”

“कोई बात नहीं मैडम! ये तो हमारा काम है। ज़माना बहुत खराब है मैडम! पर हर इंसान बुरा नहीं होता!” नताशा को उसकी मंज़िल तक पहुंचा कर, ऑटो वाला वहां से चला गया।

नताशा एक और गहरी सांस ली और ऑटो वाले की कही बात अपने मन में दोहरा दिया, “हर इंसान बुरा नहीं होता!”

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