मां का जन्मदिन

एक फूल का दर्द

नमन एक ग्यारह साल का लड़का था, जो मिसस्टर सक्सेना के इन खूबसूरत बगीचों को देखकर बहक गया था और एक सुंदर सफेद गुलाब तोड़ने की गुस्ताखी कर बैठा था।

मिस्टर सक्सेना बहुत ही खडूस और अड़ियल आदमी थे। उनके गुस्सैल और खडूस मिज़ाज की वजह से कोई भी पड़ोसी उनसे बात करना पसंद नहीं करता था। यहां तक कि उनके घर में काम करने के लिए भी कोई तैयार नहीं होता था, जिसकी वजह से 55 की उम्र में भी वो अपने बड़े से घर और चार खूबसूरत बगीचों का काम खुद किया करते थे। उनके बारे में लोग बताते थे कि उनकी पत्नी बहुत साल पहले एक सड़क दुघर्टना में चल बसी है और उनका एक बेटा है जो उनके ऐसे व्यवहार की वजह से ही उनसे दूर रहता है और उनसे कभी मिलने भी नहीं आता। 

मिस्टर सक्सेना लोगों के लिए चाहे जितने भी गुस्सैल थे, पर वो अपने बगीचों से अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे। उन्होंने इन चार बगीचों में से एक में कुछ सब्जियां उगा रखी थीं, और एक में जड़ी-बूटियां, बाकी दो में उन्होंने फूलों की खेती कर रखी थी। एक बगीचे में डहेलिया और सूरजमुखी उगा रखे थे और एक बगीचे में गुलाब की बहुत सारी अलग-अलग प्रजातियां उस बगीचे की सुंदरता बढ़ा रही थीं। 

मिस्टर सक्सेना इन बगीचों का इस तरह ध्यान रखते थे कि कोई भी अगर उनके किसी फूल या सब्जी को छूने की कोशिश भी करता था, तो उसकी खैर नहीं थी।

पर ऐसी ही गुस्ताखी एक दिन नमन ने की। नमन एक ग्यारह साल का लड़का था, जो मिसस्टर सक्सेना के इन खूबसूरत बगीचों को देखकर बहक गया था और एक सुंदर सफेद गुलाब तोड़ने की गुस्ताखी कर बैठा था। इस गुस्ताखी का अंजाम यह हुआ कि जैसे ही नमन फूल लेकर जाने को हुआ, उसके सामने मिस्टर सक्सेना अपनी छड़ी लिए खड़े थे।

“ऐ! लड़के! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बगीचे में घुसने की? और मेरा फूल किससे पूछ कर तोड़ा?” मिस्टर सक्सेना ने नमन पर अपनी छड़ी चलाते हुए कहा, तो बेचारे नमन के हाथ से फूल जमीन पर गिर गया और मुंह से एक तेज कराहने की आवाज़ निकली।

“सॉरी! अंकल।” नमन के मुंह से बस इतना ही निकला कि उससे पहले सक्सेना ने एक और छड़ी मार दी। 

“मुझे छोड़ दो! अंकल।…मैं तो अपनी मां के लिए बस एक फूल लेने आया था। अब मुझे फूल नहीं चाहिए। मुझे जाने दो!” बेचारा नमन खडूस मिस्टर सक्सेना के सामने दोनों हाथ जोड़कर मिन्नतें करने लगा।

“कैसी मां है तेरी? उस औरत को शर्म नहीं आती, जो तुझसे चोरी करवाती है? तू रुक! तुझे तो मैं पुलिस के हवाले करूंगा!” गुस्से से तिलमिलाए सक्सेना ने नमन की बाजू कस कर पकड़ ली।

“नहीं अंकल! मुझे छोड़ दो! मेरी मां ने मुझे चोरी करने नहीं भेजा! मैं खुद आया हूं। आज मेरी मां का जन्मदिन है। उसे फूल देने के लिए मुझपर पैसे नहीं थे, बस इसलिए मैंने यहां से एक फूल ले लिया।” नमन अब भी गिड़गिड़ा रहा था।

“पैसे नहीं थे तो चोरी करेगा? तुझे तो मैं छोड़ूंगा नहीं। चल! तेरी मां के सामने ही तुझे खूब पीटूंगा और पुलिस के हवाले करूंगा। तेरी मां को भी तो पता चले कि उसने एक चोर को पैदा किया है!” 

इतना कहकर, मिस्टर सक्सेना नमन को खींचते हुए ले गए। नमन ने पूरे रास्ते उनसे खूब मिन्नतें कीं और माफी मांगी, पर मिस्टर सक्सेना पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वो नमन से ही उसकी मां का पता पूछते हुए उसे घसीटते हुए ले गए।

“अरे! तू मुझे बेवकूफ बना रहा है? कहां है तेरा घर? कहां है तेरी मां? ये तू मुझे कब्रिस्तान क्यों ले आया!” मिस्टर सक्सेना ने चिढ़ कर पूछा, तो नमन ने एक कब्र की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, वो रही मेरी मां।

ये सुनकर मिस्टर सक्सेना के हाथों से नमन का हाथ खुद ही छूट गया, और नमन दौड़ कर उस कब्र के पास चला गया।

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