बच्ची की नियति

बच्ची की नियति

स्मिता ने बच्ची को उठाया और एक पल के लिए उसे ऐसा लगा मानों उसने किसी अपने को उठाया हो। उसे अंदर ही अंदर बच्चे की देखभाल करने के अलावा जीवन भर उसके साथ बिताने की मन कर रहा था।।

बच्ची चीख-चीख कर रो रही थी। उसकी चीखों को सुनकर स्मिता घर से बाहर निकल कर सड़क पर पहुंची। वह सही समय पर पहुंची थी। उसने देखा, एक कुत्ता बच्ची के नन्हे-नन्हे हाथों से रोटी का टुकड़ा छीनने की कोशिश कर रहा था, जबकि बच्ची रोटी के उस टुकड़े को कुत्ते से बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। स्मिता सड़क पार कर उस बच्ची के पास पहुंची। उसका दिल मानो उसके कानों में धड़क रहा था। उसने झपट कर एक हाथ से बच्ची को गोद में उठाया और कुत्ते को मार कर भगा दिया। धूल से सना हुआ और आंसुओं से भरे चेहरे से बच्ची ने स्मिता की ओर देखा। अभी भी उसने रोटी के टुकड़े को कसकर पकड़ा हुआ था।

स्मिता बच्ची को उठाकर वापस अपने घर आ गई। उसने अपने घर का दरवाज़ा खोला और बच्ची को बरामदे में बैठा दिया। यहां चलने-फिरने की आज़ादी पाकर बच्ची बहुत खुश थी। वह ठुमक-ठुमक कर बरामदे में घूम रही थी। अभी भी चपाती उसने हाथों में पकड़ी हुई थी। पर अब उसका इरादा बरामदे का कोना-कोना खंगालने का अधिक था और रोटी की रखवाली का कम। तभी दरवाज़े पर हरकत की आवाज़ हुई तो स्मिता ने नज़र ऊपर उठाकर देखा। सामने प्रेस करने वाला खड़ा था।

“आगे से अगर तुमने बच्ची को अकेला छोड़ा तो कुत्ता इसे काट लेगा और मैं वहां इसे बचाने के लिए मौजूद नहीं रहूंगी,” स्मिता ने लगभग चिल्लाते हुए यह बात कही।

“मेरी बीवी मुझे छोड़ गई है। मुझे कपड़े देने थे। मेरे पास कोई ऐसा न था जिसके पास मैं इस बच्ची को छोड़ देता,” उसने चुपचाप जवाब दिया।

“मैं इसका ध्यान रखा करूंगी, इसे मेरे पास छोड़ दिया करो,” स्मिता ने आवेगपूर्वक आग्रह किया।

तभी बच्ची लड़खड़ाती हुई स्मिता के पास आई और रोटी का टुकड़ा उसे थमा दिया। स्मिता ने नज़र झुका कर पहले तो बच्ची की बंद मुट्ठी को देखा और फिर उसके भोले-भाले चेहरे को। उसने सोचा कि कैसे कभी-कभी भगवान बड़े ही असामान्य तरीके से प्रार्थनाएं सुनकर मन्नतें पूरी कर देते हैं। यह सोचते हुए वह अपने बांझपन एवं संतानहीनता से संघर्ष के वर्षों को याद कर रही थी।

उसने सहज एवं स्वाभाविक आत्मीयता से बच्ची को गोद में उठाया। निकट संबंध के इस क्षण से वह बड़ी रोमांचित थी। क्या किसी दूसरे के बच्चे का लालन-पालन करके मुझे शांति मिल सकती है? अंदर से कोई चीज़ उसे सिर्फ लालन-पालन करने से कुछ ज़्यादा करने को कह रही थी।

क्यों न इस बच्ची को मैं अपने जीवन में एक स्थायी जगह दे दूं? यह सोचते हुए वह बच्ची को उसकी नियति बदलने का अवसर देने का निर्णय कर चुकी थी।

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