जापान के शहर टोक्यो में कदम रखते ही आदित्य का मन मिश्रित भावनाओं से घिर गया। वह अपने घर से बहुत दूर था। हालांकि आदित्य जिस आईटी कंपनी के लिए काम करता था, उसके मुख्य कार्यालय में काम करने को लेकर बहुत उत्साहित था। लेकिन उसे एक नए देश, नए भोजन, वहां के लोगों, उनकी भाषा और समाज को लेकर एक अनजान सा डर भी सता रहा था।
आदित्य को वहां काम करते हुए कुछ महीने बीत चुके थे। लेकिन उस वक्त भी वह जापानी भाषा के केवल कुछ शब्द ही सीख पाया था। इन शब्दों का महत्व उसे उस वक्त समझ में आया जब उसके यहां आने के कुछ सप्ताह बाद नई सहयोगी निको से उसकी मुलाकात हुई। आदित्य पहले दिन से ही निको को पसंद करने लगा था। वह उससे बात करना चाहता था, लेकिन उसमें हिम्मत का अभाव था। जब भी वह हिम्मत जुटाता तो जापानी भाषा की बाधा उसकी राह रोक देती।
निको एक छोटे से गांव से थी। लेकिन उसके बड़े सपने उसे टोक्यो ले आए थे। वह अंग्रेजी नहीं बोलती थी। अगर वह बोलती भी तो ऐसे विदेशियों से बात करना पसंद करती जो हमेशा उसकी ओर देखकर मुस्कुराते रहते, लेकिन बोलते कभी नहीं। उसे तो यह भी पता नहीं था कि उसका नाम आदित्य है। फिर उसकी भावनाओं को समझने की बात तो दूर ही रही। लेकिन हर सुबह जब वह मुस्कुराता तो जवाब में वह भी मुस्कुरा देती।
एक शाम ऑफिस ब्रेक में जब वह ऑफिस गार्डन में टहल रहा था तो आदित्य ने देखा कि निको पार्क की एक बेंच पर बैठी है।
शुरुआती हिचकिचाहट के बावजूद वह उसके पास गया और बगल में बैठ गया। उसने अपना फोन निकाला और गूगल ट्रांसलेट पर ‘हाय, आई एम आदित्य’ टाइप किया।
फिर वह अभिवादन करने के लिए झुक गया। पहले तो निको ने हैरानी भरी निगाहों से उसे देखा। लेकिन अनुवाद सुनने के बाद निको मुस्कुराई। उसने भी उसका झुककर अभिवादन करते हुए अपना नाम बता दिया।
इसके बाद तो कई दिनों से अटकी बातचीत ऐसी चली कि बस पूछो मत। इसमें काम, पसंद, नापसंद, पसंदीदा भोजन, फिल्म और अन्य विषय शामिल हो गए। टेक्नॉलॉजी ने एक ऐसा रास्ता निकाल दिया था, जिसमें ऐसे दो लोग जो एक-दूसरे की भाषा तक नहीं जानते थे अब आपस में कनेक्ट कर रहे थे।
दोनों का यह कनेक्ट कुछ ऐसा हुआ कि अब कभी-कभार होने वाली बातचीत जल्द ही डिनर डेट और फिर दर्शनीय स्थल की तक जा पहुंची।
इसी तरह एक वर्ष गुजर गया। अब तक वह प्यार में पड़ चुका था। यहां के कल्चर, भोजन और लोग, खासकर निको। उसकी जापानी भी अच्छी हो गई थी। चीज़ें इतनी तेज़ी से हुई कि आदित्य को यह भी पता नहीं चला कि कब उसके घर वापस जाने का वक्त आ गया, क्योंकि उसका प्रोजेक्ट समाप्त हो गया था।
जैसे ही आदित्य एयरपोर्ट जाने के लिए निकला तो निको उसे गुडबाय कहने पहुंची। उसे यह नहीं पता था कि अब उनकी मुलाकात कब होगी। सुबह के 4 बज रहे थे। उसने एक शब्द भी नहीं कहा। केवल वह आदित्य को उदास चेहरे के साथ देखती रही। निको को इस तरह अपनी ओर देखता देखकर आदित्य ने पूछा कि क्या वह उसके नाम ‘निको’ का मतलब समझती है। उसने सिर हिलाते हुए कहा, ‘जापानी में ‘डेलाइट’ (सूरज की रोशनी)। इसके बाद आदित्य ने पूछा क्या उसे ‘आदित्य’ का अर्थ पता है। उसे नहीं पता था।
आदित्य ने जापानी में कहा, ‘निको, कुछ चीज़ें एक दूसरे से जुदा नहीं होती। चिंता मत करो, हम फिर मिलेंगे’। उसने उसे गले से लगाया और गुडबाय कहते हुए एयरपोर्ट में प्रवेश करने लगा।
एक कैब लेकर निको घर लौट गई। उसके दिल में आदित्य की यादें गूंज रही थीं। जब वह अपने विचारों में खोई हुई थी, तो उसे अचानक याद आया कि आदित्य ने उससे अपने नाम का अर्थ पूछा था। उसे हैरानी हुई, ‘उसके नाम का अर्थ’। उसने तुरंत गूगल किया, ‘आदित्य’ और उसके चेहरे पर एक मुस्कान लौट आई।
वह फुसफुसाई, ‘सूरज की रोशनी’।
उसने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो पाया कि सूर्य की रोशनी (Sunlight) पहाड़ों के बीच से निकल रही थी और आसमान को उजाले से भर रही थी। यह एक नए दिन की शुरुआत थी।
उसी क्षण निको की समझ में आया कि आदित्य ने क्यों कहा था कि कुछ चीज़ें कभी जुदा (इनसेपरेबल) नहीं होती।