जब अवनि की नींद खुली, तो वह अपने कमरे में अकेली थी। अपने बीते दिनों को याद कर बरबस उसके होठों पर सिसकियां आ गई। अपने हालात को देख खुद को रोक नहीं पाई। वह सोचने लगी। उसकी चाह पेंटर बनने की थी। इससे पहले कि उसके सपने उड़ान भर पाते, घरवालों ने उसकी शादी करा दी। एक सख्त और रूढ़िवादी संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी अवनि के पास अपने माता-पिता द्वारा उसके लिए चुनी गई ज़िंदगी (Zindgi) जीने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
शादी (Shadi) के यही कोई एक महीने ही हुए होंगे कि अवनि को सुसराल काटने दौड़ता था। इतने कम समय में ही वह काफी घुटन महसूस करने लगी थी। वह अपने में इतनी खोई हुई रहती थी कि उसे अपने पति का प्रेम भी जरा-सा नहीं सुहाता था। उसे तो बस अपने पुराने दिन, आज़ाद ज़िंदगी जीने की चाह और अपने सपने को पूरा करने की ही ख्वाहिश थी।
सुबह जब वह उठी तो उसका पति कहीं नहीं दिखा। बीती रात पहली बार दोनों के बीच झगड़ा हुआ था। इसकी शुरुआत छोटे-मोटे बहस से हुई। इसके बाद तो अवनि ने अपने पति पर गुस्से भरे शब्दों, आरोपों और शिकायतों की बौछार कर दी। गुस्से में उसने अपना जीवन बर्बाद करने के लिए अपने पति को दोषी बताने लगी। इतने लंबे समय के बाद अब अवनि को अपनी गलती पर पछतावा हुआ। वह उस आदमी से अब माफी कैसे मांगे जिसने उसके साथ कुछ भी गलत किया ही नहीं था?
दरवाज़े पर किसी आहट की आवाज़ सुनकर ही बस अवनि के रूह कांपने लगे। दरवाज़ा खोलकर देखा, तो दहलीज़ पर उसका पति खड़ा था। उसके हाथों में फूलों का सुंदर गुलदस्ता और एक कैनवास बोर्ड था।
‘शादीशुदा हो जाने का मतलब यह नहीं है कि तुम अपने सपने देखना छोड़ दो। अब से यह सुनिश्चित करना मेरी जिम्मेदारी होगी कि तुम ऐसा न करो’। अवनि के पति ने मुस्कुराते हुए कहा।
इसके बाद अवनि को एहसास हुआ कि शादी सिर्फ संकल्प (Resolution) नहीं है, बल्कि हर कदम पर एक–दूसरे का साथ देने का वादा भी है।