अनुभा से जुदा हुए अजय को लगभग एक साल हो गए थे। कम से कम उसकी छोड़ी हुई चिट्ठी से तो यही लगता था। अजय का दिल टूट गया क्योंकि उसका मानना था कि वे एक-दूसरे के लिए एकदम सही थे, स्वर्ग में बना एक जोड़ा, जैसा कि एक कहावत भी है। लेकिन उस लिखे हुए संदेश के साथ ही उनके बीच सब कुछ बिखर गया। तभी से अजय इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया। अपनी प्रेमिका को भूलने की लाख कोशिशों (A million attempts) के बाद भी वह अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
4 साल बीत गए थे। एक दोपहर जब अजय ऑफिस से घर वापस जा रहा था तो किसी चीज़ ने या यूं कहें कि किसी ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा। पार्क की एक बेंच पर अनुभा बैठी हुई थी। अजय उसे वहां देखकर अवाक रह गया था। उसने उसे फिर कभी देखने की उम्मीद नहीं की थी। उसे वहां देखकर उसके मन में मिश्रित भावनाएं आ जा रही थी।
एक तरफ वह उसे देखने के लिए उत्साहित था तो दूसरी तरफ उससे लड़ना भी चाहता था। अजय पार्क में घुस गया और अनुभा के कंधे पर थपथपाया। अपने कंधे पर किसी के स्पर्श को पाकर वह चौंक गई, इससे उसने अपना संतुलन खो दिया और सिर के बल गिर गई। अनुभा ने खुद पर लगी धूल को झाड़ा लेकिन अपने आप खड़ी नहीं हो सकी।
अजय ने अभी जो देखा, उसकी कल्पना उसने अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं की थी, अनुभा का बायां पैर कटा हुआ था। एक कृत्रिम पैर पहने हुए अब वह एक दिव्यांग थी। अजय को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, अनुभा को इस हाल में देखकर उसके होंठ कांपने लगे और उसके गालों से आंसू बहने लगे। नीचे गिरने के कारण घायल हुई अनुभा मुस्कुराई और बोली, “दुर्घटना ने मेरी ज़िंदगी बदल दी थी। मैंने तुम्हे इसीलिए छोड़ दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि तुम भी मेरे साथ ये सब सहन करो। मैं चाहती थी कि तुम एक सुखी जीवन व्यतीत करो।” अजय यह सुनकर फूट-फूट कर रोने लगा।
4 साल तक वह अनुभा को उसे छोड़कर जाने के लिए कोसता रहा जबकि वह तो उसके लिए बोझ भरा जीवन नहीं चाहती थी। उस दिन जब वे फिर से मिले तो उसे एहसास हुआ कि वास्तव में प्यार (Pyaar) क्या होता है।