रविवार का दिन था। बाहर धूप खिली थी। रिचमंड पार्क लोगों से भरा हुआ था। कुछ लोग रनिंग कर रहे थे, तो कुछ अपने कुत्तों को टहला रहे थे। कोई बातें कर रहा था, तो कोई अकेले धूप का लुत्फ उठा रहा था।
अपनी नम आंखों से मधु ने चारों ओर अपनी नज़र दौड़ाई और देखा कि लोग खूब मस्ती कर रहे थे। लेकिन इन चीज़ों से भी उसे खुशी नहीं मिली। वह बार-बार प्रमोद के साथ बिताए पलों को याद कर खुद से बातें कर रही थी। ‘अब सब कुछ खत्म हो गया है मधु। हम दोनों अब कभी साथ-साथ नहीं रह सकते हैं। मैं अब तुमसे प्यार नहीं करता’।
कुछ इस तरह ही उन दोनों के बीच रिश्ता खत्म हो गया। न कोई जवाब-तलब और न कोई माफी।
बुरी तरह दिल टूटने की पीड़ा से परेशान होकर वह वहां अकेली बैठी थी। उसने सिसकियों से भरे अपने चेहरे को अपनी हथेलियों के पीछे छिपा रखी थी। थोड़ी देर बाद ही उसे एक हमदर्द भरी आवाज़ सुनाई दी। ‘सब ठीक है न?’ चश्मा पहने एक अधेड़ उम्र की महिला उसके पास आई। ‘हां… मैं हूं… मैं ठीक हूं’ मधु ने अपने चेहरे से आंसू पोंछते हुए सवाल को टाल दिया।
अजनबी महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, मेरा नाम दिव्या है। क्या मैं आपके बगल में बैठ सकती हूं। आपको कोई दिक्कत तो नहीं होगी न? दरअसल, मेरे पैर वहां टकरा रहे हैं।
‘प्लीज’, मधु ने जगह देते हुए जवाब दिया।
‘तो क्या सच में सब ठीक है?’ दिव्या ने अपनी नरम आवाज़ में फिर से पूछा।
दिव्या की आवाज़ में कुछ ऐसा था, जिससे मधु को काफी राहत मिली।
‘मैं अभी अपने जीवन के सबसे बुरे दिन से गुजर रही हूं। मेरे पार्टनर ने मुझसे ब्रेकअप कर लिया है। 8 साल से हम साथ थे और उसने मुझे 8 शब्द भी नहीं बोले’, न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आ गई।
‘मुझे पता है कि यह काफी कठिन समय है, लेकिन तुम ठीक हो जाओगी’, दिव्या ने कहा। ‘जीवन बहुत छोटा है उन चीज़ों पर रोने के लिए जिसका कोई मतलब ही नहीं बनता है’।
‘लेकिन, मेरी ज़िंदगी के लिए बहुत मायने रखते हैं। इस रिलेशनशिप के लिए उसने 8 साल यूं ही गवां दिए’, मधु ने जवाब दिया।
‘मेरे पति शादी के 14 साल बाद ही मुझे छोड़कर चले गए। फिर भी मैं काफी मजबूती और खुशी से रह रही हूं, दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘खुश रहने के लिए आपको रिश्ते में होने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप खुशी चाहते हैं, तो अपने साथ रिश्ते में रहें।’
‘शुक्रिया। आपकी बातों से मुझे काफी साहस मिला है। मुझे उम्मीद है कि आगे भी हम दोनों की बातें हों। लेकिन मुझे कुछ ज़रूरी काम के चलते अब जाना पड़ेगा’, मधु ने कहा।
बिल्कुल। आप चाहें तो ये किताब अपने साथ ले जा सकती हैं। मैं चाहती हूं आप भी इसे पढ़ें। मुझे पूरा यकीन है कि यह आपकी काफी मदद करेगी, दिव्या ने अपने बैग से एक किताब निकाली और उसे दे दी। मधु ने खुशी-खुशी इसे स्वीकार कर लिया और वहां से अलविदा कहकर चल दी।
इस बातचीत के बाद से मधु काफी अच्छा फील कर रही थी। मुझे उनके साथ संपर्क में रहना चाहिए था। मैंने तो उनका नंबर तक नहीं लिया, अपनी कैब की ओर बढ़ते हुए उसने सोचा। उसने पुस्तक की कवर को देखा और टाइटल को पढ़ा-अपने भीतर खुशी तलाशें। उसके ठीक नीचे उसने लेखक का नाम देखा जो मोटे अक्षरों में लिखा था… दिव्या प्रकाश।