सेंट थॉमस हाई स्कूल का री-यूनियन समारोह इससे अधिक अनुमानित (Estimated) नहीं हो सकता था। सब कुछ वैसा ही था। स्कूल की इमारत पर लाल झड़ता हुआ पेंट, बगीचे में विशाल बरगद का पेड़ और यहां तक कि यहां का चौकीदार भी वैसा का वैसा ही था।
जैसे ही पूर्व छात्र असेंबली हॉल में पहुंचे वे वहां बज रहे संगीत को सुनकर एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए, संगीत जो उनके स्कूल के वर्षों की याद ताज़ा कर रहा था। सजी धजी हालांकि घबराई हुई लीला नाश्ते की मेज़ के अंत में खड़ी थी। जब वह वहां रखे हुए हुए कप केक को देख रही थी, वह नहीं जानती थी कि शाम को क्या होने वाला है। वह केवल इतना जानती थी कि वह उसे देखना चाहती थी।
वह अपने आपको ‘कप केक चोर’ के बारे में सोचने से रोक नहीं सकी। कितने साल बीत गए थे? उसने हिचकिचाते हुए पुरानी बातों को याद किया। दो शरारती किशोर आखिरी कप केक पर नज़र गड़ाए हुए कैंटीन के काउंटर पर खड़े थे। सुबोध ने वह केक हथिया लिया। इस प्रकार लीला और सुबोध के बीच भयंकर प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। वे एक ही पड़ोस में रहते थे इसलिए दोनों का एक दूसरे से बचना लगभग असंभव था। वहीं उनका एक दूसरे को बर्दाश्त करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था।
तीन साल बीत गए और वह हाई स्कूल का अंतिम वर्ष था। लीला और सुबोध को छोड़कर हर कोई बोर्ड परीक्षा के बारे में सोच रहा था। सिर्फ उन्होंने एक दूसरे के बारे में सोचा। उन्हें तब समझ में आया था कि जिस एक चीज़ का उन्होंने भरपूर आनंद लिया, वह था एक-दूसरे को जी-भरकर परेशान करना, लेकिन जल्द ही वह भी अप्रासंगिक हो जाने वाली थी। हाई स्कूल में स्नातक होने और वास्तविक जीवन में बढ़ने यानि कॉलेज की ओर पहला कदम उठाने का समय आ गया था।
वे अलग-अलग कॉलेजों में चले गए और उनके बीच की बातचीत ‘पड़ोस में रहते हुए एक दूसरे को नफरत और गुस्से से घूरते हुए’ से ‘हर बार मिलने पर विनम्र हैलो’ तक पहुंच गई। चीज़ें बदलने लगी और उन्होंने पाया कि एक-दूसरे के आसपास होना इतना बुरा भी नहीं था। यहीं से उनकी दोस्ती की शुरुआत हुई जो समय के साथ-साथ प्यार में बदल गई। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इससे पहले कि उन्हें एक-दूसरे के लिए अपने प्यार का एहसास हो पाता, लीला और सुबोध की शादी अलग-अलग लोगों से हो गई। जैसे-जैसे उनके बच्चे बड़े होते गए उनका जीवन भी वैसे ही बदलता चला गया, सपनों को पूरा करने की भाग दौड़ हुई और टूटे हुए दिलों को फिर जोड़ा गया। लेकिन फिर भी दिल के किसी कोने में एक कसक बाकी रह गई।
फिर एक दिन 50वें हाई स्कूल के री-यूनियन का निमंत्रण आया। उसे देखकर उसे घबराहट होने लगी। क्या मुझे जाना चाहिए? क्या वह आएगा?
मेज़ पर होने वाली एक तेज़ आवाज़ सुनकर लीला अपनी यादों से बाहर आ गई। उसने घबराकर अपने चारों ओर देखा। भीड़ के बीच उसने उसे देखा। फुर्ती से उसने कुर्सी पर खुद को संभालते हुए देखा कि सुबोध उसकी तरफ ही बढ़ा चला आ रहा था। गलती से वह एक मेज़ से टकरा गया, सुबोध ने लज्जित होते हुए लीला की तरफ देखा जो उसी को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी और लीला ने उसे थाली में रखे आखिरी चॉकलेट कप केक की ओर इशारा किया। सुबोध ने थाली की तरफ छलांग लगाई लेकिन लीला ने झट से उसे छीन लिया तो उनकी मंद मुस्कराहट तेज़ हंसी में बदल गई। वह एक बच्चे की तरह मुस्कुराई, “इस बार यह मुझे मिल गया!” सुबोध और लीला ठहाके लगाकर हंसने लगे।
उस एक क्षण ने बहुत कुछ कह दिया था।