राजीव एक पढ़ा लिखा और समझदार लड़का था। इसके बाबजूद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिल पा रही थी। उसने बहुत से इंटरव्यू दिए पर कहीं सैलरी कम थी, तो कहीं बात बनते बनते रह जाती।
राजीव के घर में सिर्फ एक बूढ़ी बीमार मां थी, और पापा कुछ साल पहले ही इस दुनिया से जा चुके थे। बीमार मां की दवाइयों के खर्चे से पिता की जमा की हुई सारी कमाई धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी। इसलिए राजीव को हर हाल में नौकरी चाहिए। पूरे दिन नौकरी ढूंढना और शाम को घर पहुंच कर बीमार मां को खांसते देखना राजीव को बुरी तरह तोड़ देता था। राजीव अपनी ज़िंदगी के दुखों से इतना तंग आ चुका था कि कभी कभी तो उसका मन करता कि वो घर वापस लौट कर ही न आये और कहीं जाकर खुदखुशी कर ले। पर अपनी बीमार मां का एकलौता सहारा होने की वजह से वो खुद को बड़ी मुश्किल से समझा लेता और घर वापस लौट आता।
राजीव की ज़िंदगी की ये परेशानियां तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। राजीव खुद को अपनी कहानी का एक हारा हुआ नायक मानता था, उसे लगता था कि कहानी का हीरो बनना उसकी किस्मत में ही नहीं है।
एक दिन एक दोस्त के रिफरेन्स से राजीव एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने पहुंचा और उसकी काबिलियत के बलबूते पर, उसे वो नौकरी भी मिल गई। पूरे तीन साल दर-दर भटकने के बाद, आज राजीव के सब्र का फल रंग लाया। नई नौकरी और बढ़िया सैलरी की वजह से वो बहुत खुश था। घर जाते वक्त उसने अपनी मां की पसंद की मिठाई ली और जाकर अपनी मां से लिपट गया। अपने बच्चे की खुशी जानकर उसकी बीमार मां के शरीर में भी जैसे नई जान आ गयी हो।
इंटरव्यू के दो दिन बात से ही राजीव की जॉइनिंग थी। नई नई नौकरी पर बनठन कर जाने के लिए उसने शॉपिंग की, और दो दिन बाद नौकरी पर जाने का दिन भी आ गया। राजीव ने सुबह उठकर खुद ही अपना लंच पैक किया और मां को खाना खिला कर नौकरी पर जाने लगा। तभी उसकी मां ने उसे पीछे से आवाज़ दी। राजीव ने पीछे मुड़ कर देखा तो सामने मां दही चीनी लेकर खड़ी थी। उसने मां के प्यार भरे हाथों से दही-चीनी खाया और जाने लगा, पर तभी अचानक उसकी मां बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई। ये देखकर राजीव बुरी तरह घबरा गया। वो जल्दी से मां को उठा कर हॉस्पिटल ले गया। वहां डॉक्टरों ने बताया कि घबराने की कोई बात नहीं बस एक दवाई के साइड इफेक्ट की वजह से मां बेहोश हुई थी, पर अगर उसे समय पर हॉस्पिटल न लाया जाता तो उसकी जान भी जा सकती थी। इन सब में आधा दिन गुज़र गया था और राजीव पहले दिन ही ऑफिस नहीं पहुंचा था।
राजीव के वक्त पर ऑफिस न आने की वजह से उसे लापरवाह समझ कर, उसकी जगह किसी और को रख लिया गया। मां को हॉस्पिटल से उसी शाम छुट्टी मिल गई थी, पर अपने बेटे की नौकरी छूटने का दोषी खुद को मान कर रोये जा रही थी। राजीव को अच्छी भली नौकरी चले जाने का हल्का दुख तो था पर उसे इस बात की तस्सली भी थी कि उसकी मां ठीक है। राजीव के मन में ये ख्याल चल रहा था कि अगर मां उसके जाने के बाद बेहोश हुई होती, और उनके साथ कोई हादसा हो जाता तो वो खुद को कभी माफ नहीं कर पाता।
ये पहली बार था जब राजीव का मन हल्का था और उसे कोई दुख नहीं था। उसने अपनी मां को समझाया और कहा, “भले ही मुझे इस वक्त नौकरी की ज़रूरत है, पर मां आप मेरे लिए उससे भी ज़रूरी हैं! मां ये ज़िंदगी सूरज जैसी है…जो कभी खुशी की तरह उगती है और कभी दुखों की तरह छिप जाती है…और चिंता मत कीजिये आपके बेटे में हुनर है जिसकी वजह से उसे फिर नौकरी मिल सकती है, और हमारी ज़िंदगी का सूरज फिर उग सकता था।” हमेशा उदास और दुखी रहने वाले बेटे के मुंह से ऐसी सकारात्मक बातें सुनकर राजीव की मां को बढ़ी खुशी हुई।
इस घटना ने राजीव की ज़िंदगी में एक बदलाव और किया और वो था राजीव का अब जगह-जगह जाकर नौकरी न ढूंढना। अब राजीव घर पर रहकर ही ऑनलाइन जॉब ढूंढ़ने लगा और जल्दी ही उसे एक बढ़िया नौकरी मिल गई थी।