समुद्र के किनारे गुज़रा एक दिन

रवि ने अपने जूतों को उतारा और सनग्लासेस पहनकर समुद्र के किनारे गर्म रेत पर दौड़ पड़ा। ज्यों ही समुद्र की लहरों ने उसके पैरों को स्पर्श किया, तो वह उछल पड़ा।

मासूम-सा दिखने वाला रवि अपने घर के दरवाज़े से चिपककर कंधे पर बैग लेकर और सिर पर टोपी लगाए खड़ा था। उसे अपने घर से बाहर जाने का थोड़ा-सा भी मन नहीं कर रहा था। “मम्मी.. क्या हम लोगों को जाना ज़रूरी है?”

“हां.. रवि हमें जाना बहुत ही ज़रूरी है,” सरिता ने कार की चाबी उठाते हुए रवि के सवालों का जवाब दिया।

रवि को पानी से तब से डर लगने लगा, जब एक बार वह अपनी स्विमिंग की क्लास के दौरान लगभग डूबने की स्थिति में पहुंच गया था। उस दिन के बाद से उसे गहरे पानी में जाने से काफी डर लगता था। स्विमिंग पूल, वाटर पार्क, समुद्र तट सभी उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे।

सरिता को मालूम था कि उसके बेटे को इस डर से किसी भी कीमत पर बाहर निकालना है। अगर इस समय ये डर नहीं निकला, तो आगे उसके लिए काफी स्थिति काफी बदतर हो सकती है। जैसे ही वे लोग समुद्र किनारे (Sea ​​shore) जाने के लिए कार से निकले, तो रवि वहां नहीं जाने के लिए बहाने बनाना शुरू कर दिया। रवि ने अपना बैग खोला और कुछ ढ़ूंढने का नाटक करने लगा। “मम्मी.. लगता है कि मैंने अपना चश्मा घर पर ही छोड़ दिया है। क्या हम लोग उसे लाने के लिए वापस जा सकते हैं”?

“ठीक से खोजो,” सरिता ने बैग के अगले चेन की ओर की तरफ इशारा करते हुए बोली।

“हां, मिल गया”, इसके बाद रवि के चेहरे पर एक तरह से उदासी छा गई।

जब मां-बेटे दोनों समुद्र तट के किनारे पहुंचे तो सरिता को अच्छी जगह मिल गई। उसने अपना छाता खोला और उसकी छाए के नीचे लेट गई। समुद्र में उठ रहीं लहरों की आवाज़ सुनकर सरिता बहुत सुकून महसूस हो रहा था। “तुम खेलने क्यों नहीं जा रहे हो, मैं यही बैठी तुम्हें देख रही हूं,” सरिता ने रवि से कहा।

रवि ने अपनी मां सरिता की ओर से मिन्नत भरी निगाहों से देखा। “मम्मी… क्या मुझे जाना पड़ेगा”?

हां.. रवि जाओ, उसने मुस्कुरा कर बोला।

रवि ने अपना जूता उतारा और चेहरे पर सनग्लासेस लगाकर समुद्र तट के किनारे (Samudra tat ke kinare) गर्म रेत पर दौड़ लगाने लगा। ज्यों ही पानी की लहरें उसके पैर तक पहुंची वह उछल पड़ा। रवि ने पीछे मुड़कर देखा और अपनी मम्मी को हाथ हिलाकर इशारा किया, जो धूप में खड़ी होकर तप रही थी। जवाब में उसकी मम्मी ने भी अपने हाथ हिला दिए। उस दौरान समुद्र की लहरें थोड़ी शांत हो गई थीं और रवि कुछ दूर अंदर तक पहुंच चुका था।

अचानक से समुद्र में एक बड़ी लहर उठी और रवि के पैरों को छूकर वापस लौट गई। इसे देखकर डर के मारे रवि ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब तक वह पानी के कुछ घूंट को पी चुका था। वह थोड़ी देर के लिए घबरा गया और अपने हाथ-पैर को तेज़ी से मारकर तैरने की कोशिश करने लगा। जब उसके हाथ पानी के अंदर बालू तक पहुंचे, तब जाकर उसे अहसास हुआ कि वह तो डूब ही नहीं रहा था। रवि इस कदर सहमा था कि उसे थोड़ा-सा भी महसूस ही नहीं हुआ कि पानी तो उसके घुटने से नीचे है।

ज्यों ही समुद्र की लहरें कम हुईं तो रवि उठा और अपनी आंखें मलते हुए पीछे मुड़कर देखा। उस दौरान उसकी मम्मी खड़ी होकर उसे देख रही थीं। उनके चेहरे पर थोड़ी-बहुत चिंता साफ तौर पर थी।

पानी से निकलकर रवि खुशी के मारे अपनी मम्मी की तरफ दौड़ा। उसने अपने ठंडे हाथों से अपनी मां के गर्म हाथों को पकड़ कर गीला कर दिया और बोला- मम्मी..चलो मेरे साथ पानी में। इसमें बहुत ही मज़ा आ रहा है। यह देखकर सरिता प्रफुल्लित हो गई। उस दिन उसके बेटे ने समुद्र तट के किनारे एक नई शुरुआत की थी। अब उसे पानी में जाने से डर नहीं लग रहा था।