परिवार का नया सदस्य

परिवार का नया सदस्य

एक शाम मां-पापा एक खरगोश का बच्चा लेकर आएं, जो वाकई में एक हफ्ते का मेहमान था। एक हफ्ते बाद उसे कहीं और चले जाना था, लेकिन नैंसी और सृष्टि का बढ़ता लगाव उनके लिए दुख का सबब बन जाता।

शाम के लगभग 5 बजे थे, अचानक से मोबाइल की घंटी बजी, सृष्टि ने फोन उठाया। नैंसी ने पूछा, “दीदी किसका कॉल था?” सृष्टि ने कहा, “मम्मी का, वह कह रहीं थीं कि अभी उन्हें घर आने में एक घंटा और लगेगा।” जौनपुर शहर के छोटे से कस्बे केराकत में लालचंद्र का परिवार रहता है। घर में पत्नी के साथ दो बेटियां हैं। सृष्टि ग्रेजुएशन तो वहीं नैंसी ग्यारहवीं में पढ़ाई कर रही है। आज मां, पापा के साथ कहीं बाहर गईं हैं और दोनों उनके लौटने का इंतज़ार कर रही हैं।

थोड़ी देर बाद डोरबेल बजी। नैंसी ने दरवाज़ा खोला तो मम्मी-पापा खड़े थें। मां के हाथ में एक पिंजरा था, जिसमें एक छोटा-सा खरगोश का बच्चा था। जिसकी सम्मोहित करने वाली जेली जैसी काली आंखे, छोटी-सी हिलती हुई नाक और खड़े कानों ने तो पहली नज़र में ही उन्हें आकर्षित कर लिया। एकदम सफेद रंग का, सिर्फ कहीं-कहीं भूरे रंग के चित्ते थे खरगोश के शरीर पर।

नैंसी जाकर मां के गले लग गई, “थैंक्यू मां, आखिर आप मान ही गईं।” इस परिवार में एक अरसे से कुत्ता या बिल्ली पालने की अरजियां मां के पास लगाई जा रही थीं। लेकिन वे हमेशा खारिज़ कर दी जातीं, क्योंकि मां को अपने हिस्से का काम नहीं बढ़ाना था। लेकिन आज मां का इतना बड़ा हृदय परिवर्तन देखकर बच्चों की खुशी का ठिकाना न था।

मां ने नैंसी को खुद से अलग करते हुए कहा, “ओ हैलो! ये मैं अपने घर के लिए नहीं लाई हूं। ये खरगोश तो बुआ का है। हम आज अपने जिस रिश्तेदार के घर पर गए थे, उनके यहां पर खरगोश के बच्चे थे। जिसमें से एक बुआ को चाहिए था। लेकिन अभी वो एक हफ्ते के लिए अहमदाबाद गईं हैं, इसलिए हम इसे घर पर लेकर आए हैं। यह इस घर में सिर्फ एक हफ्ते का मेहमान है।” मां की बातें सुनकर दोनों बहनों का मुंह उतर गया।

चाय-नाश्ते के बाद पापा पिंजरे के अंदर पालक की पत्तियां डालते हुए बोले, “क्या हुआ बच्चों, अगर यह एक हफ्ते के लिए हमारे पास है तो, इसे देखो, इससे प्यार करो, इसके साथ खेलो।” पापा की बातें सुन कर नैंसी पिंजरे के बाहर बैठकर खरगोश से बातें करने लगी, “अच्छा तो सबसे पहले तुम्हारा नाम रखते हैं, बनि? नहीं, ये तो कॉमन नाम है। मोमो? छी… ये तो मोमोज जैसा लग रहा है। जूजू? ये कैसा रहेगा?” सृष्टि बोली, “ये नाम अच्छा है।” नैंसी उसकी काली आंखों में देखते हुए बोली, “तो चलो आज से तुम हमारे जूजू हो।”

एक हफ्ते के लिए सही, लेकिन जूजू की देखभाल दोनों बहनें मन से कर रही थी। धीरे-धीरे जूजू के जाने का दिन आ गया। तभी फोन की घंटी बजी और पापा चहकते हुए कहते हैं, “जूजू अब कहीं नहीं जाएगा। वह यहीं रहेगा हमारे साथ।” उनके इतना कहने भर से ही सृष्टि और नैंसी की बांछे खिल गईं। तभी मां ने पूछा, “क्यों, क्या हो गया?” पापा ने जवाब दिया, “अरे दीदी (लालचंद्र की बहन) अहमदाबाद से ही एक खरगोश लेकर आ गईं हैं। तो फिर उन्होंने कहा, जूजू को हम अपने ही पास रखे।”

नैंसी ने जूजू को तुरंत पिंजरे से निकाला और मां की तरफ करते हुए कहा, “मां, ये है तुम्हारा तीसरा बच्चा, जूजू। हमारे परिवार का नया सदस्य।” मां ने मुंह बनाते हुए कहा, “हां जूजू, अब तू हमारा बेटा है। लेकिन नैंसी तुम ही इसका सब कुछ करना, मैं हाथ नहीं लगाऊंगी।” जूजू ने अपने कान हिलाकर घर का नया सदस्य बनने की खुशी ज़ाहिर की।

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