पाताल के नीचे मज़दूरी

ज़रा सोचिए, ऐसे इंसान के बारे में जो रोज़ाना ऑफिस जाता है, जहां उसे कैब लेने आती है व ड्यूटी के बाद घर छोड़कर जाती है। ऑफिस में आरामदायक चेयर, एसी, कॉफी व टी मशीन सहित कई सुविधाएं हैं। लेकिन, ये कहानी है ऐसे शख्स की जो रोजाना ज़मीन से दो हजार फीट नीचे काम करने जाता है। जहां ऑक्सीजन लेवल (oxygen level) कम होने के साथ, चमड़ी को जला देने वाली गर्मी है, घुटन है और दहशत ऐसी की चाल कब धंस जाए पता नहीं... पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ें।

धनबाद के डिगवाडीह (Dhanbad dighwadih) में रंजीत सिंह अपनी बेटी व पत्नी के साथ खुशी-खुशी रह रहे थे। जैसे हर किसी का परिवार खुशहाली में रहता है, ठीक उसी प्रकार इनकी ज़िंदगी भी चल रही थी। लेकिन, एक दिन रंजीत की बेटी आरती के एक सवाल ने उसकी ज़िंदगी जीने का नजरिया ही बदल दिया।

पास के स्कूल में आरती पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी। अक्सर उसे कभी उसके पिता, तो कभी मां उसे स्कूल छोड़ने जाया करती थी। स्कूल जाते समय तो सब अच्छा रहता था, लेकिन छुट्टी के समय जब भी उसके पिता उसे लेने आते थे, तो उसे ज़रा भी रास न आता था। आरती के दोस्तों के मां-पिता साफ-सुथरे कपड़े पहनकर अपने बच्चों को लेने आते थे। जैसे हर आम आदमी आता है। आरती अपने पिता से प्यार तो करती थी, लेकिन वो ये नहीं चाहती थी कि उसके पिता स्कूल की छुट्टी होने पर उसे लेने आएं। हो भी क्यों न… दिन में साफ-सुथरे कपड़े पहनकर ड्यूटी जाने वाले रंजीत के कपड़े ड्यूटी के बाद इस कदर गंदे हो जाते थे कि बेटी नहीं चाहती थी कि वे छुट्टी के समय स्कूल आएं।

एक दिन छुट्टी के बाद रंजीत स्कूल के गेट के बाहर गंदे कपड़ों में अपनी प्यारी बिटिया का इंतजार कर रहे थे। आरती अपने दोस्तों के साथ हंसते-मुस्कुराते बाहर आ रही थी। लेकिन, जैसे ही उसने अपने पिता को देखा, गुस्से से उसका मुंह लाल हो गया। गुस्सा भी ऐसा कि पिता को देख उनकी पास जाने की बजाय पैदल ही घर की ओर जाने लगी। पिता साइकिल लिए बेटी के पीछे चल दिए। कहा… आरती बैठो, नीरस मन से आरती भी साइकिल के कैरियर पर बैठ गई। पिता थे, जो चंद मिनटों में ही न जाने कितने ही सवाल पूछ बैठे, कैसा रहा आज का दिन…?, और स्कूल में मन लग भी रहा है या नहीं…? चलो बताओ क्या खाना है? वही खरीद लेते हैं… इधर, आरती एकदम चुप। मानो उसे अपने पिता से बात ही नहीं करनी है। खैर, घर आया और साइकिल से उतरते ही आरती बैग फेंकते हुए और बड़बड़ाते हुए अपने कमरे में चली गई और रोने लगी। इधर, उसकी मां राधा ने ये सुना तो पीछे-पीछे चली आई और पूछा… क्या हुआ आरती? आरती ने कहा, मां तुम क्यों नहीं आती मुझे स्कूल लेने। मां बोली, क्यों तुम्हारे पापा उसी रास्ते से आते हैं, इसमें गलत क्या है। आरती बोली, उनके कपड़े देखे हैं… सुबह तो सब ठीक, लेकिन शाम होते-होते कितना गंदा हो जाता है। मेरे सभी दोस्तों के पापा साफ-सुथरे कपड़े में आते हैं। कई बार तो मेरे दोस्त पापा को देखकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं, मां… तुम ही आया करो ना मुझे स्कूल से लेने। राधा ने कहा… तो मेरी बिटिया रानी इससे परेशान है। अच्छा आरती, तुम ही पापा को ये क्यों नहीं कह देती।

कुछ दिनों के बाद.. आरती पापा के पास गई और कहा… पापा, मुझे आपकी एक चीज़ नहीं पसंद है। रंजीत बोले, क्यों क्या नहीं पसंद… ज़रा बोल के तो देखो, तुम्हें खिलौने चाहिए क्या। आरती ने कहा… नहीं पापा, मुझे आपके वो गंदे कपड़े नहीं पसंद। सुबह तो आप घर से साफ कपड़ों में ही निकलते हैं, लेकिन दोपहर होते-होते आपके कपड़े इस कदर गंदे हो जाते हैं कि मेरे दोस्त आपको देख मुझे चिढ़ाते हैं। … रंजीत बोले… अरे बेटी, तो ये बात है। क्या कहूं मेरा काम ही कुछ ऐसा है। आरती बोली, पापा आप ऐसा क्या करते हैं कि शाम होते-होते आपके कपड़े गंदे हो जाते हैं। रंजीत… तुम्हारी उम्र बहुत छोटी है, मैंने सोचा थोड़ी और बड़ी हो जाओ तब बताऊंगा। लेकिन, नहीं। अब बता ही देना चाहिए। बिटिया रानी… मैं किसी कॉरपोरेट ऑफिस में काम नहीं करता, बल्कि एक मज़दूर हूं। जिसे रोज़ाना जमीन से दो हजार फीट नीचे पाताल में जाना पड़ता है। पिछले दिनों तुमने अखबार में खबर पढ़ी थी ना, चाल धंसने से 60 लोगों की मौत। वो मेरे साथी ही थे। मैं खुशकिस्मत था, क्योंकि मेरी सुबह की शिफ्ट थी, तुमको स्कूल से लेने जो आना था। आरती की आंखों में आंसू थे…. पापा आप मेरे लिए इतनी मेहनत करते हैं। मैं कितनी गलत थी। रंजीत बोले, क्या करुं बेटी, तुम्हारी खुशी के लिए ये काम भी मैं हंसते-हंसते करता हूं।

इतने में पीछे खड़ी-खड़ी बाप-बेटी की बातें सुन रही राधा बोली। आरती तुम्हे पता भी है… तुम्हारे पापा घर से निकलते तो हैं, लेकिन उन्हें ये पता भी नहीं होता कि घर लौटेंगे भी या नहीं। मैं जानती हूं कि कितनी मुश्किल से वो हमारे लिए पैसे कमा रहे हैं। जमीन की गहराई में जाकर वो कोयला निकालते हैं। यही वजह है कि तुम्हारे पापा के कपड़े गंदे हो जाते हैं। वहां गर्मी भी इतनी है कि हम लोग एक पल भी वहां ना रह पाएं, डर इस बात का बना रहता है कि चाल कभी भी धंस सकती है, लोग डर के साए में काम करते हैं।

अगले दिन छुट्टी के वक्त, पापा रोजाना की तरह स्कूल के गेट के बाहर गंदे कपड़े में खड़े थे। लेकिन इस बार आरती उनसे नज़रे चुराने की बजाय जाकर उनके गले से लिपट गई।