शबाना घर की सबसे छोटी बेटी थी, पर छोटों जैसा लाड़ उसे कभी नसीब नहीं हुआ। चार बड़े भाई और दो बहनों के बाद जब वो पैदा हुई, तो उसकी मां की जान चली गई। उसके पिता एक नामी बिजनेसमैन थे, पर पत्नी के मर जाने के बाद, वो इस तरह अकेले हो गये कि उन्हें न बिजनेस की सुध रही और न अपने बच्चों की। दिन व दिन बिजनेस डूबता गया, जिससे अमीरी के दिन गुज़र गए और घर में खाने के लाले पड़ने लगे।
घर का माहौल देखते हुए, शबाना के दो बड़े भाइयों ने फूलों की दुकान खोल ली, जिससे घर का खर्चा चलने लगा। देखते ही देखते बिजनेस बड़ गया, चारों भाइयों की शादी हो गई और दो बड़ी बहनें भी अपने ससुराल पहुंच गईं। शबाना का परिवार बड़ा था, पर वो हमेशा अकेली रही, क्योंकि बचपन से लेकर आज तक, उसे मां के मरने और पिता के कारोबार के डूबने की वजह समझा गया। इतने सारे भाई-बहनों के बीच भी शबाना किसी की प्यारी नहीं रही। हालांकि, शबाना ने हमेशा सबको अपना ही समझा। वो छोटी सी उम्र में ही पूरे घर का काम अकेले संभालने लगी, यहां तक कि भाइयों की पत्नियां भी काम में उसकी ज़रा भी मदद नहीं करती थीं।
एक दिन शबाना के पिता को अचानक दिल का दौरा पड़ गया और अस्पताल से घर लौटने के बाद उन्होंने अपने लड़कों से कहा “मेरी ज़िंदगी का अब कोई भरोसा नहीं! तुम सब बड़े हो गए हो, और तुम्हारे घर भी बस गये हैं, पर मेरी बेटी शबाना तो बचपन से सिर्फ ताने ही झेल रही है। मैं चाहता हूं मेरे जीते-जी उसकी ज़िंदगी में भी कोई प्यार करने वाला आ जाए। तुम लोग कोई अच्छा सा लड़का देख कर उसकी शादी करा दो।”
अपने पिता को ज़िदंगी में पहली बार खुद की फिक्र करता देख शबाना को बड़ी राहत मिली। पर अब मुसीबत ये थी कि शबाना पहले से ही एक लड़के को बहुत पसंद करती थी। वो लड़का शबाना के तीसरे भाई का साला था, इसलिए उसका घर में आना-जाना लगा रहता था, प्यार दोनों तरफ से था, पर सबके सामने कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
उधर पिता के कहने पर उसके चारों भाई अपनी-अपनी पहचान में से एक-एक रिश्ता ले आए। अब घर में इस बात पर बहस होने लगी कि कौनसा रिश्ता ज़्यादा बेहतर है। बहस धीरे-धीरे मनमुटाव बनने लगी, भाइयों ने एक दूसरे से बात करना ही छोड़ दिया। हालात ये हुए कि शबाना को अब तक तो सिर्फ पैदा होने के ताने मिलते थे, पर अब उसकी शादी भी सभी के लिए बड़ी समस्या हो गई थी।
अपनी वजह से अपने भाइयों और परिवार में यूं झगड़ा होता देख, शबाना से रहा नहीं गया, उसने हिम्मत की और अपने पिता से जाकर बोली, “अब्बा मैं जानती हूं, मैं आप सब के लिए हमेशा से दुख की वजह रही हूं, पर अब यूं अपने भाइयों और भाभियों को मेरी शादी के लिए लड़ता देख, मुझसे रहा नहीं जाता। आप मेरी शादी का ख्याल ही छोड़ दीजिए।”
बेटी की बात सुनकर पिता का सालों पुराना प्यार एक दम बाहर आ गया “ना बेटा, ऐसा नहीं कहते। जब तेरे सारे भाई-बहनों के घर बसे हैं, तो मैं तेरा भी ज़रूर बसाऊंगा। उसके लिए मेरे पास एक तरीका है, सुन तू अपने भाइयों के लाए हुए सारे रिश्तों के लिए मना कर दे। जब तेरी शादी उन चारों के आए हुए रिश्तों से नहीं होगी, तो लड़ाई खुद व खुद सुलझ जाएगी। और मै तेरे लिए खुद अपनी पसंद का रिश्ता लेकर आऊंगा, फिर इन बूढ़ी हड्डियों को चाहे जितना भी भटकना पड़े!” पिता ने अपनी बेटी को गले लगाते हुए कहा।
शबाना पहली बार अपने पिता के गले गली थी और बहुत खुश भी थी। इसी खुशी के बीच शबाना ने अपने अब्बू को उस लड़के के बारे में बता दिया, “अब्बू! मैं आपकी मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जाना चाहती। आप चाहें तो उससे मेरी शादी की बात चला सकते हैं, या चाहे तो मुझे इस बात के लिए सज़ा भी दे सकते हैं।”
शबाना की बात सुनकर पिता पहले से ज़्यादा भावुक हो गए। उन्होंने शबाना के माथे को चूमते हुए कहा, “पगली! बचपन से सज़ा भुगतती आई है, और अब भी सज़ा की बात करती है? चल जा तेरी सज़ा ये है कि तेरी शादी उसी से होगी, जिससे तू चाहती है।”
एक साथ इतनी खुशी देखकर, शबाना रो पड़ी और अपने अब्बू के गले लग गई। शबाना के लिए अब तक की ये सबसे खास सज़ा थी, जिससे उसकी ज़िंदगी बदलने वाली थी।