ग्रेजुएशन की पहली साल में ही शैली की शादी हो गई। उसका पति कुनाल और परिवार के सभी लोग बड़े प्यारे और खुले विचारों के थे।
जब शैली की शादी तय हुई थी, तभी उसकी सास ने खुल के कह दिया था, “बेटा! शादी भले ही हो जाये, पर तुम अपनी पढ़ाई-लिखाई कभी मत छोड़ना। जितना चाहो उतना आगे बढ़ना।”
ससुराल में पहले दिन से ही सब उससे ऐसे बर्ताव करते, जैसे वो यहां जाने कितने सालों से रह रही है। हर चीज़ में उसकी राय ली जाती और उसकी पसंद को महत्व दिया जाता। सच कहूं तो शैली का ससुराल ऐसा था, जैसे ससुराल का सपना हर लड़की देखती है, पर हकीकत में सबकी किस्मत शैली जैसी नहीं होती।
ससुराल वालों का ऐसा प्यार और अपनापन देखकर, शैली जल्दी ही सबसे घुल-मिल गई। पर घर में बस एक शख्स था, जिससे बात करना या बोलना शैली के लिए बहुत मुश्किल था। वो शख्स था नीरज। नीरज रिश्ते में शैली का जेठ यानी पति का बड़ा भाई था।
वैसे तो नीरज पूरे ही दिन अपने कमरे में अकेला रहता, पर कुछ ज़रूरत पड़ने पर बाहर आता तो शैली को देखकर झिझक जाता।
शैली पहले से आगे बढ़कर उससे पूछती, “भईया! कुछ चाहिए आपको?” तो नीरज उसकी बात को अनसुना करके, अपनी मां से ज़रूरत की चीज़ मांगता, और फिर से अपने कमरे चला जाता।
नीरज का ऐसा व्यवहार शैली को बड़ा अटपटा लगता। उसे लगता जैसे नीरज उसे पसंद नहीं करता या नीरज की उससे कोई निजी दुश्मनी है।
“शैली बेटा! तुम इतना मत सोचो, बेचारे ने कुछ वक्त पहले ही अपनी पत्नी और बच्चे को खोया है। उसे थोड़ा वक्त दो, उसे शायद अभी तुम्हें परिवार का सदस्य मानने में देर लगे।” नीरज के शैली के साथ अजीब बर्ताव की सफाई देते हुए शैली की सास ने उसे समझा दिया।
नीरज की शादी, कुनाल और शैली की शादी से एक साल पहले ही हुई थी। उसकी पत्नी प्रेगनेंट थी और प्रेग्नेंसी में कुछ परेशानियां थी, जिसकी वजह से पांचवें महीने में ही बेचारी की जान चली गई। घर में इतना कुछ होने से गम का माहौल था, उसी माहौल को ठीक करने के लिए कुनाल और शैली की शादी कराई गई थी। पर नीरज बेचारा अब भी उस तकलीफ से बाहर नहीं निकल पाया था, इसलिए हमेशा अकेला अपने कमरे में ही रहा करता था।
एक दिन दोपहर के वक्त शैली अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी। कुनाल ऑफिस गया हुआ था, बाकी सब किसी न किसी काम से बाहर थे और शैली की सास भी घर पर नहीं थी। नीरज को कॉफी चाहिए थी, मां घर पर नहीं थी, इसलिए वो खुद ही किचन में जाकर कॉफी बनाने के लिए समान ढूंढने लगा। खटर-पटर की आवाज़ सुनकर शैली किचन में गई और नीरज से पूछा, “ भईया! कुछ चाहिए आपको? बताइए मैं निकाल देती हूं।”
शैली के पूछने में नीरज झिझकते हुए बोला, “हां…वो कॉफी!… बना मैं लूंगा, बस बर्तन दे दो।”
शैली ने बर्तन निकाल कर कॉफी चढ़ा दी।
“अ…आई एम सॉरी!” नीरज ने अटकते हुए कहा तो शैली ने पूछा, “क्यों?”
“वो तुमसे…ऐसे…रूढ़ सा बर्ताव किया मैंने…।” नीरज की बात में पश्चाताप था, जिसपर शैली बोली, “ओह! कोई बात नहीं। मां ने बताया मुझे आपकी पत्नी…आई एम सॉरी।”
कॉफी बन गई थी। शैली ने कप नीरज की तरफ बढ़ाया और जाने लगी, तभी नीरज ने पीछे से कहा, “बी.ए के एक्जाम है तुम्हारे? मुझसे इंग्लिश पढ़ोगी? कमजोर हो तुम उसमें।” नीरज की बात सुनकर शैली ने हैरानी से मुड़कर देखा।
“वो तुम अपने कमरे में ज़ोर-ज़ोर से पढ़ती हो…तब सुना मैंने।” नीरज ने सफाई देते हुए कहा तो शैली बोली, “हां यूपी बोर्ड से हूं ना तो इंग्लिश समझ नहीं आती जल्दी।”
“तो पढ़ोगी मुझसे? ये भाई तुम्हारे इतने काम तो आ ही सकता है।” नीरज ने फिर से पूछा।
शैली ने नीरज को पहले कभी इतना बोलते हुए नहीं देखा था, वो हैरान भी थी और खुश भी की शायद अब नीरज ने उसे इस परिवार का सदस्य मान लिया है। वो यह सब सोच ही रही थी कि तभी नीरज बोला, “कोई बात नहीं! मैं चलता हूं” और अपने कमरे में जाने लगा। तभी शैली ने कुछ मज़ाक़िया ढंग से कहा, “इस ट्यूशन के लिए कोई फीस तो नहीं लेंगे न भईया? इस पर नीरज ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां लूंगा न…रोज़ ऐसी ही एक बढ़िया-सी कॉफी।”
और फिर दोनों हंसने लगे।