वह कब से अपने छोटे भाई आदित्य पर चिल्ला रहा था, लेकिन जवाब में उसे सिर्फ उसकी हंसी सुनाई दे रही थी। इससे वह और भी चिढ़ रहा था।
यह आदत बन चुकी थी। जब भी माता-पिता बाहर जाते वह उस पर चिल्लाता और उसे पीटता था। बदले में उसे हमेशा एक प्यारी मुस्कान और खिलखिलाहट सुनाई देती।
वह आदित्य से नफरत करता था। उसके हिसाब से आदित्य विचित्र, नालायक और परिवार के नाम पर धब्बा था। उसे समझ में नहीं आता था कि मां और पापा उसे इतना प्यार क्यों करते थे। समय के साथ वह अपने परिवार से दूर हो गया। लेकिन वह हमेशा के लिए उनसे अलग नहीं हो पाया। 25 वर्षों के बाद एक दिन उसने खुद को एक अस्पताल में पाया। उसके माता-पिता उसके बिस्तर के पास बैठे हुए थे।
उसकी आंखों ने जब रोशनी को देखा तो वह चौंधिया गई। उसने नज़र के एक कोने से मां को देखा। उसे लगा कि मां न जाने कब से रो रही है। उसके पिता ने धीरे से उसके हाथ में एक पत्र रख दिया। यह पत्र आदित्य ने उसके लिए छोड़ा था। उसमें लिखा था, ‘भाई, मैं अपनी आंख तुम्हारे लिए छोड़े जा रहा हूं। उम्मीद है तुम इससे दुनिया को वैसे ही देखोगे जैसे मैं देखा करता था’। यह पूरे जीवन का उपहार (Gift of Life) ही था।
वह अब सामने की सफेद दीवार को एक खालीपन के साथ देख रहा था। उसे अपने ऑटिस्टिक भाई के साथ गुजारा हुआ वक्त और उसकी प्यारी मुस्कान याद आ रही थी। जो उसे जीवन का उपहार (Jeevan ka uphar) देकर चला गया था।