वह अपना बैग पैक कर चुकी थी, उसने घर छोड़कर जाने का पूरा विचार बना लिया था। वह अपने रिलेशनशिप से थक चुकी थी, उसने अपनी शादी को बचाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। घर छोड़ने से पहले उसने बेडरूम की दीवार पर लगी एक तस्वीर को ध्यान से देखा। वह तस्वीर 5 साल पहले हुई शादी के समय की थी। उस तस्वीर में, वह और उसका पति दोनों कितने खुश दिख रहे थे, दोनों की आंखों में शादी कर के ज़िंदगी साथ बिताने की चमक साफ नज़र आ रही थी।
आखिर ऐसा क्या हुआ, जो आज उनका रिश्ता खत्म होने की कगार पर आ चुका था? यह सोचते हुए वह अपने बिस्तर पर गिरकर, तकिए से मुंह दबा कर फूट-फूट कर रोने लगी। एक दंपति होने के नाते वह अपने रिश्ते को इतनी आसानी से टूटता हुआ नहीं देख पा रही थी। उसे पता था कि दोनों ने अपने रिश्ते को बचाने के लिए क्या कुछ नहीं किया था। लेकिन, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में सच में खटास आ चुकी थी। लेकिन, फिर भी वह अपने रिश्ते पर और ज्यादा काम करना चाहती थी और उसे किसी भी हाल में टूटने से बचाना चाहती थी।
क्या आप इस स्थिति से खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं? अगर आपका जवाब ‘हां’ है, तो यह समझ लीजिए कि आप अकेले नहीं हैं। मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी ने क्या खूब लिखा है;
‘ये इश्क नहीं आसां, इतना ही समझ लीजे;
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।’
रिश्ते बनाना आसान होता है, लेकिन जब निभाने की बारी आती है, तो काफी मुश्किल होने लगती है। कोई भी रोमांटिक रिश्ता आसान नहीं होता है, प्रेम एक जटिल भावना है। जिसके शुरुआती दिन आसान लगते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वह कठिन होते जाते हैं। याद करिए, जब आपने पहली बार प्यार का अनुभव किया था। दिल की धड़कने तेज़ चलने लगी थी, वह सारी चीजें महसूस हो रही थी, जो असल में हैं भी और नहीं भी। प्यार के लिए आप खुद को भूलने तक के लिए तैयार होते हैं और इस तरह से प्रेम आपके जीवन के केंद्र में आ जाता है। आपके जीवन में एक साथी की तलाश पूरी हो जाती है और प्यार का रिश्ता उत्साह के साथ आगे बढ़ता है। लेकिन, ध्यान देने वाली बात यह होती है कि हर रिश्ते की ज्वाला एक दिन धीमी होने लगती है। इस ज्वाला को जीवित रखना खुद में एक बड़ा संघर्ष है।
आजकल ज्यादातर रिश्ते क्षणिक मात्र के आकर्षण से ही बन रहे हैं, जिससे रिश्ते शुरू होते ही खत्म हो जा रहे हैं। जैसे ही आकर्षण खत्म होता है, वैसे ही रिश्ता भी खत्म हो जाता है। एक वक्त गुजरने के बाद जब आप एक-दूसरे के प्रति आकर्षण खोने लगते हैं, तब आप कमियां तलाशते हैं। फिर आप निराश महसूस करते हैं और आप दोनों का अहंकार टकराने लगता है। आज कल लोगों में ‘वाइब’ मिलाने का ट्रेंड है। भले ही दो लोगों की वाइब मिल जाए, वे एक-दूसरे के साथ संतुष्ट भी हो जाए, लेकिन कुछ समय के बाद वे भी एक-दूसरे के साथ ऊब महसूस कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में वे किसी और के साथ रिलेशनशिप में आ सकते हैं और अपने वर्तमान साथी को धोखा दे सकते हैं। इसके अलावा अन्य कारण भी हैं, जैसे- कई रिश्ते परिवार के सदस्यों के दखलअंदाजी के कारण या वित्तीय समस्या के कारण भी प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा कई रिश्ते में शारीरिक समस्याएं भी आड़े आ जाती हैं, जैसे- बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होना, विकलांगता या किसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित होना।
जीवन में ऐसा कोई रिश्ता नहीं है, जिसमें समस्या न हो। लेकिन कपल्स के जीवन में ऐसे कई पल आते हैं, जो उनकी परीक्षा लेते हैं। जिसमें सफल होने के लिए दोनों को मेहनत करने की ज़रुरत होती है। विषम परिस्थितियों में भी मजबूत बने रहना और उलझनों को सुलझाने के कई तरीके होते हैं। उन्हीं रिश्तों का भविष्य होता है, जो एक दूसरे को संभालते हुए हर चुनौती का सामना करते हैं। सोलवेदा के इस लेख में आप जानेंगे कि प्रेम के दरिया को आप कैसे पर कर सकते हैं।
नकारात्मक भावनाओं को कहें ‘ना‘
जब तक सब ठीक चलता है, सब कुछ पॉजिटिव नज़र आता है। जैसे ही रिश्ते में कड़वाहट आती है, वैसे ही सारी निगेटिव चीजें हावी होती नज़र आती हैं, जिससे व्यक्ति के मन में डर, गुस्सा, उदासी और असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती हैं, जिसके बाद व्यक्ति तर्कसंगत बातें छोड़ कर, गलत दिशा ने फैसले लेने लगता है। साइकोलॉजिस्ट और इंफ्लुएंसर डॉ. टॉड हॉल ने नेगेटिव थॉट्स पर एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने जिक्र किया है कि “नकारात्मक भावना एक संक्रामक रोग है, जो किसी एक के कारण उपजता है और फिर दूसरों को अपनी जद में ले लेता है, जिससे रिश्तों में खटास आना लाजमी है।”
डॉ. हॉल इस समस्या का समाधान भी बताते हैं। उनका कहना है कि सबसे पहले लक्षणों की पहचान करें। जो चीजें आपके अंदर नेगेटिव थॉट्स को जन्म दे रही हैं, उनकी लिस्ट तैयार करें। इसके बाद उन भावनाओं को दूर करने का प्लान बनाएं। इसके अलावा अपने प्रति सहानुभूति की भावना रखें, जिससे आप अपनी नकारात्मक भावनाओं को कंट्रोल कर सकेंगे। इससे आप अपने रिश्ते में एक नई शुरुआत कर सकते हैं।
अपने रिश्ते का आंकलन करें
सभी रिश्ते खुद में अनोखे होते हैं और रिश्ते को देखने का हर कपल का अपना नज़रिया होता है। कोई भी रिश्ता पूरी तरह से परफेक्ट नहीं होता है। ऐसे रिश्तों के लिए कोई गणित नहीं है, जिससे यह तय किया जाए कि उसमें समय देना है या उसे ऐसे ही छोड़ देना है। इसलिए हमें वर्तमान समय में अपने रिश्ते का आंकलन करना चाहिए। आंकलन के दौरान आपको स्वयं के प्रति जागरूक रहना चाहिए कि आप इस रिश्ते में कितना योगदान दे रहे हैं। आंकलन के दौरान आप यह प्रश्न भी पूछ सकते हैं कि आपका रिश्ता जीवन में खुशियों को बढ़ा रहा है या उसे कम कर रहा है।
साइकोलॉजिस्ट कार्ल पिकहार्ट ने अपनी पुस्तक बूमरैंग किड्स में लिखा है कि रिश्तों का आंकलन करने के तरीके से संकेतों का पता चलता है। हमें अपने रिलेशनशिप में कुछ सवाल पूछने चाहिए कि क्या आप अपने रिश्ते में खुश है? क्या आप रिश्ते के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं? क्या रिश्ते में आपको अपनी सही जगह मिल रही है? क्या आपको अपनी बात रखने की आजादी है? क्या आपका साथी आपकी बात को ध्यान से सुनता है? क्या आप दोनों के बीच ईमानदारी और सच्चाई है? मतभेद होने पर दोनों ने एक दूसरे को मनाने के लिए कितना प्रयास किया? किसी भी जिम्मेदारी को निभाने में दोनों का परस्पर योगदान रहा या नहीं? टूटते रिश्ते को बचाने के लिए दोनों की प्रतिबद्धता कितनी रही? इन सवालों के जवाब के आधार पर आप तय कर सकते हैं कि आपका रिश्ता कहां पर है और उसे किस दिशा में ले जाना चाहिए।
एक–दूसरे के प्रति सहानुभूति रखें
अक्सर देखा गया है कि जब कभी एक जोड़े के बीच बहस होती है, तो दोनों स्वयं को पीड़ित समझते हैं और सामने वाले को दोषी मानते हैं। लेकिन, हमेशा याद रखें कि ताली दोनों हाथों से बजती है। इसलिए पूरी संभावना है कि गलतियां दोनों पक्षों की हो सकती है। रिलेशनशिप में हम अपनी कमियों को नज़रअंदाज करते हैं और अपने साथी की कमियां व तकलीफों के प्रति अंजान बने रहते हैं। यदि दोनों एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति पैदा कर लें, तो वे अपने साथी के कष्टों और समस्याओं को समझ सकते हैं। इससे आप उनके नज़रिए से दुनिया को देख और अपने रिश्ते को समझ पाएंगे। ऐसा करने से बात-बात पर आप अपने साथी को जज नहीं करेंगे। हमेशा याद रखें कि सहानुभूति से करुणा की उत्पत्ति होती है।
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और मैरिज व फैमिली थेरेपिस्ट कैरिन गोल्डस्टीन का कहना है कि “असल में सहानुभूति, रिश्ते में दिल का काम करती है, जो उसे जीवित रखने के लिए हमेशा धड़कता है। यदि दिल की धड़कने बंद हो जाए, तो रिश्ता दम तोड़ने लगता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि समानुभूति से मन में दया व करूणा की भावना का जन्म होता है। आप जितना अधिक दयालु होंगे, आपका रिश्ता उतना मज़बूत होगा।
दिल की बातें दिल से करें
रिश्तों की नींव का पहला पत्थर भरोसा होता है। भरोसा सबसे नाज़ुक चीज़ होती है, जिसे बहुत ही संभालना होता है। आपका एक छोटा सा झूठ आपके रिश्ते की नींव को हिला सकता है, जिससे आपके प्यार का महल कभी भी ढह सकता है। इसलिए रिश्तों में ईमानदारी होना सबसे ज़रूरी है। इसलिए जब आप रिश्ते में ईमानदार होते हैं, तो दिल की बातें दिल से करते हैं, जिससे आपके साथी पर इसका प्रभाव बना रहता है और वह रिश्ते में आपको अच्छे तरीके से समझ पाता है। इस तरह से आप अपने टूटते रिश्ते को भी संभाल पाएंगे।
मैरिज और फैमिली थेरेपिस्ट डार्लिन लांसर अपने ब्लॉग टू ट्रस्ट ऑर मिसट्रस्ट में लिखती हैं कि ईमानदार होने का मतलब यह नहीं है कि आप झूठ नहीं बोलते हैं। अपने साथी से किसी बात को छुपाना, किसी तरह की ज़रूरी बात को ना बताना और अपनी भावनाओं को रोकते हैं, यह भी धोखा देने जैसा ही है। जैसा कि धोखा कभी भी छुपाए नहीं छुपता है, जिससे अंत में रिश्ते अंत की कगार पर आ खड़े होते हैं। लांसर कहती हैं, “कोई भी रिश्ता हिम्मत मांगता है, सच कहने का साहस सभी में नहीं होता है। इसलिए रिश्ते को मज़बूत करने के लिए अपनी बातें खुल कर कहें।”
सच को स्वीकार करने की हिम्मत रखें
जब हम किसी के साथ अपना रिश्ता शुरू करते हैं, तो हमें अपने पार्टनर में कोई भी कमी नहीं दिखाई देती है। सबकुछ ठीक होता है। लेकिन, समय बीतने के साथ कुछ आदतें कष्ट देने लगती हैं। तब एक पार्टनर दूसरे को जबरदस्ती या बिना बताए बदलने की कोशिश करते हैं। लेकिन, कई प्रयासों के बाद भी उनके पार्टनर नहीं बदलना चाहते हैं। इस तरह से रिश्ते में खटास आ जाती है, जिससे वे एक-दूसरे की इज्जत करना कम कर देते हैं या छोड़ देते हैं। साथ ही जाने-अनजाने भावनात्मक तौर पर कटने लगते हैं।
ऐसी स्थिति में आपके पास मात्र एक ही विकल्प मौजूद होता है, अपने रिश्ते को बुरी स्थिति से निकालें और अपने साथी को वैसे ही स्वीकार करें, जैसा वह है। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रिक हैंसन अपने एक पॉडकास्ट में बात करते हुए कहती हैं कि, “किसी को कमियों के साथ स्वीकार करने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप उनके आगे झुक रहे हैं। बल्कि, स्वीकृति सच्चाई को अपनाने का एक सशक्त तरीका है। जो चीज़ें जैसी हैं, उन्हें वैसे ही देखने से समस्याओं का निदान हो जाता है। इसके विपरीत यदि कोई अपने साथी के बदलने की आशा करता है, तो यह तय है कि वह अंत में निराश ही होता है।”
रिश्तों में छूट दें
किसी रिश्ते में रहने के बाद बहुत सारे लोग सिंगल होने से डरते हैं, इसलिए वे अपने वर्तमान के रिश्ते को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वह अपनी कई चीज़ों से समझौता करने तक के बारे में सोचते हैं। लेकिन, समझौता समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है, रिश्ते के पहिए को सही ढंग से चलाने के लिए समझौता ग्रीस का काम करता है। खासतौर पर जब कोई रिश्ता खराब हो रहा हो, तब रिश्ते में आदान-प्रदान की भावना का विकसित होना ज़रूरी है। लेकिन, इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हम अपने साथी के सामने पूरी तरह से झुक जाएं। अपनी पहचान, पसंद, नैतिकता, उसूलों को दरकिनार कर दें या छोड़ दें, तो आप रिश्ते को पा तो ज़रूर लेंगे, लेकिन, पूरी उम्र के लिए खुद को खो देंगे। इसलिए बेहतर रिश्ता वही है, जो आपको छूट दें, ना कि समझौता करने के लिए मज़बूर करे।
डॉ. डेनिएल डाउलिंग, अपने ब्लॉग हाउ मच शुड यू कॉम्प्रोमाइज टू फिक्स रिलेशनशिप प्रॉबलम्स? में सलाह देते हैं कि “सिर्फ हमें एक बदलाव करने की ज़रुरत है और वह है स्वयं में बदलाव। अपने प्रति जागरूक रहें। जब आप अपने प्रति जागरूक रहेंगे, तो समझौते की नौबत शायद ही आए। इस तरह से आप दूसरे को खुश करने के लिए अपने अस्तित्व को नहीं छोड़ेंगे, ना ही अपने उसूलों के साथ समझौता करेंगे।” इस तरह से आप तय कर सकते हैं कि आपको रिश्ते में रहना या उससे बाहर निकल जाना है।