ये 6 फिल्में देती हैं महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा से लड़ने का सबक

महिला पर हिंसा कई घरों में आम है और लोगों को इसमें कोई परेशानी नज़र नहीं आती। पर महिलाओं पर हाथ उठाना कोई आम बात नहीं है, जिसे चुपचाप सह लिया जाए।

दुनिया में आए-दिन महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म और हिंसा की खबरें, अब तो आम सी हो गई हैं। पर‌ क्या कभी आपने सोचा है कि महिलाओं के साथ हिंसा की इन खबरों का आम हो जाना, हम सबके लिए कितनी दुख की बात है।

जाने कितने कैंडल मार्च होते हैं और जाने कितने लोग सड़कों पर उतरते हैं, पर फिर भी महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। मैंने बचपन में एक कहानी सुनी थी, जिसमें एक रानी ने अपने दुश्मनों से अकेले लड़ाई लड़ी थी, और तब से मैं यही सोचती आई कि क्यों ना हर महिला इतनी ताकतवर हो जाए कि वो इस रानी की तरह अपने दुश्मनों से अकेले लड़ लें और अपने साथ होने वाले अत्याचारों का मुंहतोड़ जवाब दे सकें।

मैंने टीवी पर ऐसी बहुत सी ऐसी फिल्में भी देखीं हैं, जिनमें महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए समाज के खिलाफ खुद आवाज़ उठाती हैं, और जीत हासिल करती हैं। सच में, वे महिलाएं बाकी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो आज भी घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पा रही है।

तो चलिए आपके साथ आज उन्हीं फिल्मों के बारे में बात करूं ताकि आप भी उनसे सबक और प्रेरणा लें सकें।

6 फिल्में जो महिलाएं की हिंसा को रोकने का सबक देती हैं (6 filmein jo mahilaon ki hinsa ko rokne ka sabak deti hain)

आइए उन फिल्मों के बारे में जानते हैं, जिनमें महिला किरदार के हिम्मत और जज़्बे से हम सभी को प्रेरणा मिलती है:

थप्पड़, 2020 (Thappad, 2020)

भारतीय सिनेमा में यह फिल्म बाकी सभी फिल्मों से अलग इसलिए भी है, क्योंकि इसमें घरेलू हिस्सा जैसे मुद्दे को बहुत साफ और सरल तरीके से दिखाया गया है।

फिल्म थप्पड़ में अमू की कहानी है, जिसकी हाल ही में शादी हुई है। वह अपने पति और नए घर से प्यार करती है। वह अपनी खुशी से परिवार की देखभाल करने, खाना बनाने, सफाई करने और अपने पति की ज़रूरतें पूरे करने के लिए उसके आगे-पीछे घूमती है। पर‌ एक दिन जब लोगों से भरे कमरे में उसका पति सबके सामने उस पर हाथ उठाता है, तो चीज़ें बदल जाती हैं।

महिला पर हिंसा कई घरों में आम है और लोगों को इसमें कोई परेशानी नज़र नहीं आती। पर महिलाओं पर हाथ उठाना कोई आम बात नहीं है, जिसे चुपचाप सह लिया जाए, यही बात समझाने के लिए यह फिल्म बनाई गई है।

अग्नि साक्षी, 1996 (Agni Sakshi, 1996)

यह फिल्म एक साहसी महिला की कहानी है, जिसमें शुभांगी की शादी एक हिंसक और पागल पति, विश्वनाथ से होती है, जो उसकी ज़िंदगी को नर्क बना देता है। जान बचाने के लिए शुभांगी अपनी मौत का नाटक करती है और नई ज़िंदगी शुरू करने की कोशिश करती है। लेकिन विश्वनाथ उसे फिर भी ढूंढ निकालता है। आखिर में, शुभांगी हिम्मत दिखाते हुए खुद को उससे आज़ाद करती है। यह कहानी उन महिलाओं की हिम्मत को दर्शाती है, जो बहुत सारी परेशानियां सहने के बाद भी खुद को बचाने का दम रखती है। हिम्मत और जज़्बे का सबक लेने के लिए ये फिल्म आपको ज़रूर देखनी चाहिए।

दमन, 2001 (Daman, 2001)

सन् 2001 में आई फिल्म दमन महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने की ज़रूरत पर ज़ोर देती है। इस फिल्म में रवीना टंडन ने दुर्गा का किरदार निभाया है, जो अपने पति की घरेलू हिंसा और उसके अत्याचार झेलती है। इस फिल्म में लाजबाव किरदार और रवीना टंडन की बेहतरीन अदाकारी के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।

यह फिल्म महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों और रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ आवाज़ उठाती है, और महिलाओं की सुरक्षा पर ज़ोर देती है।

लज्जा, 2001 (Lajja, 2021)

यह फिल्म महिलाओं की सुरक्षा की अनदेखी और महिलाओं पर हो रहे लगातार शोषण और अन्याय की कहानी दिखाती है। यहां वैदेही अपने पति के बुरे व्यवहार और अत्याचारों से बचपन में भाग जाती है, वहीं उसे अपनी यात्रा के दौरान ऐसी और भी महिलाएं मिलती है, जो समाज में किसी ना किसी रूप में शोषण और अत्याचारों का सामना कर रही हैं। यह फिल्म महिला हिंसा के खिलाफ महिलाओं के साहस और आत्म-सम्मान की लड़ाई को दिखाती है।

मिर्च मसाला, 1987 (Mirch Masala, 1987)

मिर्च मसाला फिल्म में भारत के एक छोटे से गांव की कहानी है, जहां एक दुष्ट सूबेदार ना केवल गरीबों से कर वसूलता है, बल्कि गांव की महिलाओं का शोषण भी करता है। जब वह सोनबाई (स्मिता पाटिल) से भी गलत मांगें करता है, तो सोनबाई उसका डटकर विरोध करती है, और उसके सामने हार नहीं मानती। इस फिल्म में सुबेदार का किरदार नसीरूद्दीन शाह ने निभाया है। इस फिल्म में गांव के सारे आदमी सूबेदार से डरते हैं, और अपनी महिलाओं की सुरक्षा भी नहीं कर सकते हैं, और तब गांव का एक बुजुर्ग चौकीदार (ओम पुरी) सोनबाई और अन्य महिलाओं की रक्षा करता है।

फिल्म के आखिरी में कैसे सारी महिलाएं मिलकर उस सुबेदार को हराती हैं, यह तो आपको पूरी फिल्म देखकर ही जानना पड़ेगा।

प्रोवोक्ड, 2007 (Provoked, 2007)

2007 में आई ऐश्वर्या राय की यह फिल्म पूरी तरह से महिला सुरक्षा पर आधारित है। इस फिल्म की नायिका निर्मला का पति उसके साथ बहुत अत्याचार करता है। वो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, जिससे तंग आकर वो अपने पति को मार देती है, और जेल चली जाती है। वहां पहुंच कर भी वो लगातार अपने हक और सुरक्षा के लिए लड़ाई करती रहती है।

आपने इनमें से कौन-सी फिल्में देखी हैं। हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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