लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है,
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी।
फिराक गोरखपुरी ने इन दो पंक्तियों के माध्यम से बताया था कि कैसे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना हमें आज़ादी दिलाई। आज हम जिस आज़ाद भारत में रहते हैं, उसके लिए उन वीरों ने कितना संघर्ष किया था। उनके साहस और बलिदान को हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं।
अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराने का संघर्ष सिर्फ 15 अगस्त या 1947 तक सीमित नहीं है। यह संघर्ष देश के उन स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से भी जाना जाता है। जिन्होंने करीब 200 सालों तक चलने वाले ब्रिटिश राज के खिलाफ सिर्फ जंग ही नहीं लड़ी बल्कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, भारत के स्वतंत्रता में लाखों लोगों ने भाग लिया था। ये कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा कि आज़ादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का त्याग किया और इन्हीं लोगों के कारण हम आज एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं। इन वीर जांबाजों के लिए जीवन, परिवार और भावनाओं से भी बढ़कर महत्वपूर्ण थी भारत की आज़ादी।
भारत में अंग्रेजों का पहला कदम सबसे पहले 1608 में पड़ा था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी का जहाज कैप्टन विलियम हॉकिन्स के नेतृत्व में सूरत में पहुंचा था। इसके बाद से 1947 तक अंग्रेज भारत में टिके रहे और शासन किया।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको भारत के स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के बारे में बताएंगे। साथ ही उन जांबाजों के बारे में भी बताएंगे, जिनके बिना हम स्वतंत्रता दिवस कभी नहीं मना पाते।
स्वतंत्रता दिवस का महत्व और इतिहास (Swatantrata Divas ka mahtva aur itihaas)
भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से आज़ादी मिली थी। इसी खुशी में हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। 15 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ फहराया था। इसके बाद से हर साल प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किले के ऊपर तिरंगा फहराते आ रहें हैं।
स्वतंत्रता दिवस हर भारतीय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह स्वशासन, संप्रभुता और लोकतंत्र के नए युग का प्रतीक है। इस दिन पूरे देश में नेशनल हॉलिडे होता है। हालांकि, स्कूलों, कॉलेजों और ऑफिसों के अलावा पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर ध्वजारोहण भी किया जाता है। यह दिन आज़ादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले लोगों को सम्मान देने और उन्हें याद करने का दिन है।
जान देकर जांबाज़ों ने दी हमें स्वतंत्रता की भेंट (Jaan dekar janbazon ne di humein swatantrata ki bhent)
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्हें उनकी स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका के लिए ‘राष्ट्रपिता’ भी कहा जाता है। उन्हें भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अहिंसा के सबसे बड़े समर्थक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने विचार से दुनिया को नई दिशा दी। उनके सिद्धांत थे सच्चाई, अहिंसा और राष्ट्रवाद। उन्होंने सत्याग्रह का नेतृत्व किया, हिंसा के खिलाफ आंदोलन किया, जिससे भारत को आज़ादी मिली। वे पूरे जीवन छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने सत्याग्रह, शांति और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, दुखद है कि 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी।
भगत सिंह (Bhagat Singh)
भगत सिंह का जन्म आज के पाकिस्तान के बंगा जिले के लायलपुर में 28 सितंबर 1907 को हुआ था। वे भारत के सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें मात्र 23 साल की उम्र में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। लाला लाजपत राय की मौत ने उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने इसका बदला ब्रिटिश अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या करके ली थी। भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केंद्रीय विधान सभा में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी नारे लगाए थे। इसी कारण उन्हें 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई थी।
चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad)
मध्यप्रदेश के अलीराजपुर के भाबरा में 23 जुलाई 1906 को चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म हुआ था। उन्हें ‘आज़ाद’ के नाम से भी जाना जाता था, लेकिन उनका पूरा नाम पंडित चंद्रशेखर तिवारी था। 14 साल की उम्र में वो संस्कृत पढ़ने बनारस आ गए थे, जहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में भाग लिया। उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 1920-21 में वो गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। इसके बाद वो काकोरी ट्रेन डकैती, वायसराय की ट्रेन उड़ाने का प्रयास, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की। वो जब जेल गए, तो उन्होंने अपना नाम आज़ाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और जेल को घर बताया था। उनकी मौत 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी।
सुभाष चंद्र बोस (Shubhash Chandra Bose)
सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने सेकेंड वर्ल्ड वॉर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वो 1938 और 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसके बाद उन्होंने ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ नाम की पार्टी बनाई। वहीं, सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय उन्होंने जापान की मदद से आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की। उन्होंने सिंगापुर में आज़ाद हिंद फौज के सदस्यों के सामने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था। उनका निधन 1945 में हवाई दुर्घटना में ताइवान के समीप हो गया था, लेकिन, शव नहीं मिलने के कारण आज भी उनकी मौत एक रहस्य है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru)
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 14 नवंबर 1889 को हुआ था। उन्हें ‘चाचा नेहरू’ के नाम से भी जाना जाता है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ पूरी ताकत से लड़े। वे असहयोग आंदोलन का भी हिस्सा रहे और आगे चलकर राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। वो भारत की स्वतंत्रता के लिए लगभग 35 सालों तक लड़े और 9 साल जेल में रहे। स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और 1947 से 1964 तक लगातार प्रधानमंत्री रहे।
मंगल पांडे (Mangal Pandey)
मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में 19 जुलाई 1827 को हुआ था। वे 22 साल की उम्र में 1849 में ब्रिटिश आर्मी में शामिल हुए। वह बंगाल के बैरकपुर छावनी में थे। यहां उन्होंने 9 फरवरी 1857 को कारतूस उपयोग करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने अंग्रेज अफसरों की हत्या कर दी। यहीं से भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई, जिसे 1857 को विद्रोह भी कहा जाता है। इस विद्रोह के नेता के तौर पर मंडल पांडे उभरे। इसके कारण उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटका दिया गया था।
बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak)
बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 23 जुलाई 1856 को हुआ था। वह स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ समाज सुधारक और नेता भी थे। पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले वह पहले नेता थे। उनका नारा ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ ने उस समय लाखों भारतीय को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया था। उन्हें ‘लोकमान्य’ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, उन्हें ब्रिटिश अधिकारी अशांति का जनक मानते थे। वो आंदोलन करने के कारण कई बार जेल भी गए। केसरी में उनका लेख प्रमुखता से छपता था, जिससे देश के लोगों में देशभक्ति जगी।
इन स्वतंत्रता सेनानियों के अलावा भी लाखों लोगों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों की आहूति देने के साथ-साथ सबकुछ न्योछावर कर दिया। इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी। आप सभी को सोलवेदा हिंदी की ओर से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।