विश्व सामाजिक न्याय दिवस पर समझें सामाजिक न्याय की आवश्यकता

सामाजिक न्याय को लेकर कहा जाता है कि एक इंसान जो खुद के लिए व्यवस्था या फिर सुविधा चाहता है, वो दूसरों के लिए भी हो, वही सामाजिक न्याय कहा जाता है।

सामाजिक न्याय या यूं कहें कि सोशल जस्टिस मॉडर्न वर्ल्ड की देन है। इसकी शुरुआत वेलफेयर स्टेट बनने के बाद हुई है। वेलफेयर स्टेट का जो मुख्य कार्य है, उसमें सामाजिक न्याय को बनाए रखना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। इसी के तहत समाज के सभी वर्ग और धर्म के अलावा रंग और रूप के बिना सामाज के सभी व्यक्ति को बराबरी का हक देना भी सामाजिक न्याय का हिस्सा है।

सामाजिक न्याय को लेकर कहा जाता है कि एक इंसान जो खुद के लिए व्यवस्था या फिर सुविधा चाहता है, वो दूसरों के लिए भी हो। सोशल जस्टिस को एक उदाहरण के तौर पर इस तरह देख सकते हैं कि अगर एक ही घर में दो बच्चे हैं, जिसमें से एक लंच बॉक्स लेकर स्कूल जाने की तैयारी कर रहा है। वहीं, दूसरा घर का काम कर रहा है, तो यहां सामाजिक न्याय नहीं है।

भारतीय संविधान में सभी को बराबर का अधिकार दिया गया है। यहां रहने वाले हर एक व्यक्ति को सामान राइट्स हैं। तो सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) के अवसर पर बताएंगे कि सामाजिक न्याय क्यों ज़रूरी है। साथ ही इसका महत्व क्या है और इसे कैसे पाया जा सकता है।

विश्व सामाजिक न्याय दिवस कब मनाया जाता है? (Vishv Samajik Nyay divas kab manaya jata hai?)

वर्ल्ड सोशल जस्टिस डे सबसे पहले 20 फरवरी को 2009 में मनाया गया था। हालांकि, इस दिवस को मनाने की घोषणा 26 नवंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 63वें सत्र में की थी। इसके बाद से इस दिवस को हर साल मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना, शारीरिक भेदभाव, अशिक्षा का अंधकार, धार्मिक भेदभाव को खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर सभी समुदायों को एक साथ लाना है। इस अवसर पर स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को जागरूक किया जाता है।

भारतीय समाज में सामाजिक न्याय (Bharatiya samaj main samajik nyay)

भारत में जब हम सोशल जस्टिस को देखते हैं, तो पता चलता है कि यहां महात्मा गांधी, महावीर स्वामी से लेकर कई समाज सुधारक हुए। इन्होंने सामाजिक न्याय को सही करने को लेकर काम किया। इन्होंने समाज में भेदभाव, ऊंच-नीच पर आधारित सामाजिक ढांचे को सुधारने की कोशिश की।

अंग्रेजों के जाने के बाद भारत जब 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ, तो इसके बाद संविधान लिखा गया, जिसे 26 जनवरी 1952 को लागू किया गया। इसमें सामाजिक सोशल जस्टिस को सबसे महत्वपूर्ण जगह दिया गया। भारत में सोशल जस्टिस को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर में आज भी कमी कहीं न कहीं दिखती है, जिसे सही करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

सामाजिक न्याय की ज़रूरत क्यों है? (Samajik nyay ki jarurat kyun hai?)

आज भी हम देखें, तो पता चलता है कि सामज में भेदभाव बरकरार है। कहीं जाति के नाम पर, तो कहीं धर्म के नाम पर और कहीं रंग और रूप के तौर पर। ऐसी स्थिति में किसी पूरे विश्व के लोगों को सामान अधिकार या यूं कहें कि सामान सुविधा नहीं मिल पाती है। इसी कारण से सभी को एकजुट करने के लिए, सामाजिक न्याय बहुत ज़रूरी हो जाता है। सामाजिक न्याय के बिना किसी भी वेलफेयर स्टेट के सही रूप के बारे में सोचा नहीं जा सकता है। साथ ही मानव समाज का सही दिशा में विकास नहीं हो सकता है।

सोशल जस्टिस को लेकर भारत सरकार के कदम (Social Justice ko lekar Bharat sarkar ke kadam)

भारत के संविधान में सोशल जस्टिस को बहुत ही महत्व दिया गया है। इसलिए यहां सोशल जस्टिस पर प्रभावी ढंग से काम किया जा रहा है। हमारे संविधान में सामाजिक दूरियों को खत्म करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। भारत सरकार ने इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर भी कई प्रभावी कदम उठा रही है।

इस आर्टिकल में हमने सोशल जस्टिस के बारे में बताया। साथ ही इसके महत्व के बारे में भी बताया। इसी तरह के और भी ज्ञानवर्द्धक कंटेंट पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़ें रहें।

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