आवाज़ की दुनिया में रेडिया जैसा कोई और नहीं है। रेडियो ने गीत-संगीत से लेकर सूचनाओं को घर-घर तक पहुंचाया है। आवाज़ की दुनिया में रेडियो नायक की भूमिका में रहा है और आज भी कहीं न कहीं किसी ने किसी ने रूप में रेडियो अपनी भूमिका निभा रहा है। सूचना क्रांति आने के बाद रेडियो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अगर ये कहा जाए कि इंसान की ज़िंदगी का अहम अंग रेडियो रहा है, तो इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
रेडिया तमाम उतार-चढ़ाव को झेलते हुए भी आज के दौर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। ये इसकी ताकत ही है, जो इंटरनेट की दुनिया में भी रेडिया कायम ही नहीं है बल्कि सूचना का प्रमुख वाहक भी बना हुआ है। रेडियो सूचना का उन दिनों से माध्यम बना हुआ है, जब न तो इंटरनेट का विकास हुआ था और न ही सभी लोगों के हाथ में मोबाइल था। उस समय से आज तक रेडियो सिर्फ मनोरंजन का ही साधन नहीं है बल्कि ये लोगों को शिक्षित भी कर रहा है।
तो चलिए इस विश्व रेडिया दिवस (World Radio Day) के अवसर पर सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम जानते हैं कि इंटरनेट के ज़माने में रेडिया क्या पीछे रह गया है या फिर नहीं। हम आपको विश्व रेडियो दिवस के बारे में भी बताएंगे। साथ ही रेडियो का महत्व भी हम आपको समझाएंगे।
क्या है रेडियो का इतिहास? (Kya hai Radio ka itihas?)
रेडियो का इतिहास लगभग 113 साल पुराना है। रेडियो पर प्रसारण सबसे पहले 24 दिसंबर 1906 को किया गया था, जब कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने अपना वायलिन बजाया था। इसे उस समय अटलांटिक महासागर में तैर रहे सभी जहाज के रेडियो ऑपरेटरों ने सुना था। वहीं, 1918 में अमेरिका के न्यूयार्क के हाइब्रिज इलाके में ली द फोरेस्ट ने रेडिया का पहला स्टेशन शुरू किया था। हालांकि, रेडियो को सबसे पहले कानूनी रूप से मान्यता 1920 में मिली। वहीं रेडियो पर सबसे पहले विज्ञापन की शुरुआत 1932 में हुई।
भारत में रेडियो ब्रॉडकास्ट की शुरुआत साल 1932 में हुई थी। भारत सरकार ने 1936 में इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया की शुरुआत की थी। अंग्रेजों से आज़ादी के बाद ये ऑल इंडिया रेडिया या आकाशवाणी बन गया। अभी भारत में आकाशवाणी के लगभग 420 स्टेशन हैं। इन स्टेशनों से 23 भाषाओं और 14 बोलियों में कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। वहीं, देश में 214 कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन भी हैं।
विश्व रेडियो दिवस मनाने की कब हुई शुरुआत? (Vishv Radio Divas manane ki kab hui shuruaat?)
विश्व रेडियो दिवस हर साल 13 फरवरी को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। 29 सितंबर 2011 को विश्व रेडियो दिवस मनाने का निर्णय यूनेस्को ने लिया था, जिसके बाद से हर साल यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन यूनेस्को की ओर से पूरी दुनिया के ब्रॉडकास्टर्स के साथ मिलकर अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
रेडियो की खास पहचान है सिग्नेचर ट्यून्स (Radio ki khaas pahchan hai Signature Tunes)
शुरुआत से ही रेडियो की खास पहचान इसकी सिग्नेचर ट्यून्स रही है। रेडियो पर कोई भी कार्यक्रम की शुरुआत हो या फिर अंत, सिग्नेचर ट्यून्स ज़रूर बजता है। ये बजते ही लोग समझ जाते हैं कि अभी कौन-सा चैनल चल रहा है। स्पेशल ट्यून्स इसलिए खास रखा जाता था कि क्योंकि रेडियो सुनने का मीडियम है और यहां नहीं दिखता है कि कौन-सा चैनल या कौन-सा प्रोग्राम चल रहा है। लेकिन, ट्यून्स को सुनते ही लोग आज भी पहचान लेते हैं कि कौन-सा प्रोग्राम या चैनल ब्रॉडकास्ट हो रहा है।
क्या इंटरनेट के ज़माने में पीछे रह गया है रेडियो? (Kya Internet ke zamane mein peeche rah gaya hai Radio?)
बचपन के दिन हम सभी को याद हैं, जब टेलीविजन भी बहुत कम ही हुआ करते थे। उस पर भी बहुत कम ही कार्यक्रम आते थे, लेकिन रेडियो एक ऐसा मीडियम था, जो उस समय भी मौजूद था और आज इंटरनेट के समय में भी। आज प्रधानमंत्री को अगर मन की बात करनी होती है, तो वो रेडियो को चुनते हैं। क्योंकि रेडियो की पहुंच शहर से लेकर गांव और कस्बों तक है। जहां बिजली नहीं है या फिर रोड नहीं है, वहां भी रेडियो है।
समय बदला, तो रेडियो प्रसारण के तरीके भी बदले। टीवी का ज़माना आया, तो रेडियो ने भी अपने आप में बदलाव किया और एफएम का दौर शुरू हो गया। इसने रेडियो से दूर हो रहे लोगों को फिर से जोड़ा और अपना महत्व बताया। इसके बाद दौर आया इंटरनेट का, तो रेडियो ने यहां भी अपनी उपयोगिता को साबित कर रहा है। हालांकि, रेडियो का स्वरूप थोड़ा बदला है, लेकिन वो कायम है।
रेडियो आज के दौर में एक छोटे से डब्बे से निकलकर बड़े स्तर पर छा गया है। रेडियो प्रोग्राम ने आज के समय में पॉडकास्ट का रूप ले लिया है। इसे लोगों का काफी प्यार भी मिल रहा है। इंटरनेट के इस ज़माने में लोग अपने शेड्यूल में कुछ समय निकाल कर पॉडकास्ट पर कहानी से लेकर अन्य कार्यक्रम सुन रहे हैं। इसके लेकर अलग-अलग प्लेटफॉर्म चालू हो गये हैं। तो हम ये कह सकते हैं कि इंटरनेट के कारण रेडियो पीछे तो नहीं छूटा है, मगर इसके काम करने का तरीका ज़रूर बदला है। रेडियो के इस बदले हुए स्वरूप को भी लोगों का काफी प्यार मिलता रहता है।
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