हमने बचपन में दादी और नानी से जो किस्से और कहानिया सुनी हैं, उनमें वो बताती थीं कि हमारे सबसे सच्चे दोस्त आस-पास के पशु और पक्षी होते हैं। इनसे दोस्ती का व्यवहार और अनुभव केवल किस्से और कहानियों तक ही सीमित नहीं है। जब हम देखते हैं, तो पाते हैं कि जानवर सही में घर के सदस्य की तरह होते हैं। हम इनसे इतना घुल और मिल जाते हैं कि उनके बिना हमारा जीवन अधूरा से लगता है।
जानवरों के पास इंसानों की तरह जुबान नहीं होती है। लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि वो कुछ समझ नहीं सकते हैं या फिर उन्हें तकलीफ नहीं होती है। इंसान तो किसी ना किसी तरह से अपनी बातों को लोगों के सामने रख लेते हैं, लेकिन बेजुबान जानवर जो कुछ बोल नहीं पाते हैं, वे बस इतनी उम्मीद करते हैं कि उनकी बातों और इमोशन को इंसान समझ पाए और उनकी मदद कर पाए या फिर साथ दे पाए।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको विश्व पशु कल्याण दिवस (World Animal Welfare Day) के अवसर पर बताएंगे कि कैसे सुन सकते हैं हम बेज़ुबानों का कहा और फिर दे सकते हैं उनका साथ। साथ ही हम आपको विश्व पशु कल्याण दिवस के बारे में भी जानकारी देंगे जैसे ये क्यों और कब मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है।
विश्व पशु कल्याण दिवस कब मनाया जाता है? (Vishv Pashu Kalyan Divas kab manaya jata hai?)
पूरी दुनिया में 4 अक्टूबर को विश्व पशु कल्याण दिवस मनाया जाता है। इस दिन को पारिस्थितिकी और पशुओं के संरक्षक संत, सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी के पर्व दिवस यानी उनके जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है, जो पशु प्रेमी होने के साथ ही उनके संरक्षक भी थे। पहली बार विश्व पशु कल्याण दिवस 25 मार्च 1925 को जर्मनी के बर्लिन में मनाया गया था। इसके बाद 1929 से इसे 4 अक्टूबर से मनाया जाने लगा।
विश्व पशु कल्याण दिवस का महत्व और उद्देश्य (Vishv Pashu Kalyan Divas ka mahatv aur uddyeshya)
विश्व पशु कल्याण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण है। साथ ही पशुओं और पशुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए भी इस दिवस को मनाया जाता है। लोगों को पशुओं के प्रति जागरूक करने और उनमें प्यार जगाने के लिए भी इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई थी। इसके अलावा जानवरों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सही देखरेख की वकालत भी इस दिवस को मनाकर की जाती है।
चलिए अब जानते हैं कि हम मासूम और बेज़ुबान जानवरों का कहा कैसे सुन और समझ सकते हैं।
इन 8 तरीकों से हम समझ सकते हैं बेजुबानों की बातें (In 8 tarikon se hum samjh salte hain bezubanon ki baatein)
आई कांटेक्ट
बेजुबान जानवरों की आंखें बहुत कुछ बयां करती हैं। अगर वो शांति से आंखें खोल रहें हैं, तो इसका मतलब है कि वे सहज हैं। वहीं, अगर आंखें बार-बार इधर-उधर कर रहें हैं, तो इसका मतलब है कि वे किसी चीज़ से डर रहें हैं।
सांस लेने की गति
जानवरों की सांस लेने की गति भी उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति का संकेत देती है। तेजी से सांस लेना या हांफना तनाव, दर्द या उत्साह का संकेत हो सकता है। शांति में धीमी और स्थिर सांसें सामान्य स्थिति का प्रतीक है।
कान और पूंछ की स्थिति
कुत्तों और बिल्लियों जैसे जानवर अपने कान और पूंछ से अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। ऊपर उठे कान जिज्ञासा या सतर्कता का संकेत देते हैं, जबकि झुके हुए कान डर या असहजता का प्रतीक हो सकते हैं।
खेलने का व्यवहार
खेलते समय पशुओं का व्यवहार देखना बेहद उपयोगी है। खेल में आक्रामकता दिखाना ताकत का प्रतीक हो सकता है, लेकिन लगातार पीछे हटना या छिपना तनाव या असुविधा का संकेत हो सकता है। पशुओं के साथ खेले जाने वाले खेल उनके मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करने में मददगार हो सकते हैं।
सोने के पैटर्न
जानवरों की नींद की आदतें उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को प्रकट करती है। अचानक नींद में बदलाव, जैसे ज़रूरत से ज़्यादा सोना या बहुत कम सोना, किसी समस्या का संकेत हो सकता है। अगर कोई पालतू जानवर ज़्यादा सो रहा है, तो वह थकान, बीमारी या फिर तनाव से जूझ रहा हो सकता है।
सामाजिक व्यवहार
कुछ पशु, जैसे कुत्ते और बिल्लियां अपने साथियों के साथ सोशल तरीके से भावनाएं व्यक्त करते हैं। इसलिए अगर आपको लगे कि उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आया है, तो तुरंत उस पर ध्यान दें।
बॉडी टच करने पर प्रतिक्रिया
अगर आप किसी जानवर को उसकी पीठ, पेट या पैर जैसी जगहों पर छूते हैं, तो वे प्रतिक्रिया देते है। लेकिन ऐसा करने पर अगर वो गुर्रााते हैं या फिर भागते हैं, तो इसका मतलब है कि वो किसी ना किसी समस्या से गुज़र रहें हैं।
छोटे-छोटे सिग्नल्स पर ध्यान दें
कभी-कभी छोटे बदलाव, जैसे कि पंजा उठाना, हड़बड़ाना जानवारों के अंदर चल रहे भावनात्मक संघर्ष या मानसिक स्थिति को बताता है। इन छोटे संकेतों पर ध्यान देने से उनकी भावनाओं को समझना आसान हो सकता है।
कैसे बनाएं बेजुबानों की ज़िंदगी आसान? (Kaise banayein bezubanon ki zindagi aasan?)
अक्सर जब हम पालतू जानवर पर बनी फिल्म देख लेते हैं, या किसी दोस्त के घर पेट देख लेते हैं या फिर रास्ते में किसी बहुत प्यारे डॉग या कैट को देख लेते हैं तो खुद भी एक पेट खरीदने का फैसला कर लेते हैं। हां, बहुत आसान है किसी पेट शॉप से किसी नए पेट को खरीद लेना और फिर उसे बेहद प्यार देना। लेकिन, क्या इतना मुश्किल है किसी अडॉप्शन सेंटर से उन्हें गोद लेना और फिर उन्हें उतना ही प्यार देना? नहीं, दोनों बराबर ही हैं लेकिन इससे आप उनकी दो तरह से मदद करेंगे, एक आप किसी पशु के बच्चे को उसकी मां से अलग नहीं करेंगे और दूसरी तरफ आप किसी बेघर को घर, परिवार और प्यार देंगे। जिनकी ज़िंदगी में छत, रोटी और साथी की कमी है, उनकी ज़िंदगी में इन कमियों को पूरा करके हमें भी आत्म-संतुष्टि मिलेगी।
यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।