स्त्री पुरुष समानता

सही मायने में महिला-पुरुष समानता का अर्थ क्या है?

कानूनी तौर पर भले ही महिलाओं ने बहुत से समानता अधिकार पा लिए हों, पर समाजिक और पारिवारिक स्तर पर आज भी बहुत सी ऐसी स्त्रियां हैं, जो समान अधिकार पाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हैं।

हम एक पुरुष प्रधान देश रहते हैं, यहां आज भी महिलाएं समान अधिकारों के लिए लगातार लड़ रही हैं। जिसमें उन्होंने बहुत हद तक सफलता भी पाई है। उनकी और पूरे विश्व की औरतों की सफलता का सबसे बड़ा सबूत है, उन्हें भी मतदान का अधिकार और पुरुषों के बराबर वेतन मिलना।

कानूनी तौर पर भले ही महिलाओं ने बहुत से समान अधिकार पा लिए हों, पर समाजिक और पारिवारिक स्तर पर आज भी बहुत सी ऐसी स्त्रियां हैं, जो समान अधिकार पाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हैं। वे इस कोशिश में कई बार फेल होती हैं, पर कभी हिम्मत नहीं हारतीं। अपने अधिकारों को पाने की लड़ाई वो आज भी लड़ रहीं हैं।

1971 से महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई, पर तब से लेकर आज तक महिलाएं इस दिन का सही और असली मतलब पूरे समाज को समझाने में लगी हैं, पर फिर भी बहुत हद तक उन्हें सफलता नहीं मिल पाई है। तो चलिए मैं और आप मिलकर सोलवेदा के साथ इस महिला समानता दिवस (Women’s Equality Day) पर स्त्री-पुरुष समानता का सही मायने में अर्थ समझने की कोशिश करते हैं।

कब है महिला समानता दिवस? (Kab hai Mahila Samanta Divas?)

हर साल 26 अगस्त को स्त्री-पुरुष समानता के लिए और महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए, महिला समानता दिवस मनाया जाता है।

महिला समानता दिवस को मनाने का मकसद (Mahila Samanta Divas ko manane ka maksad)

एक समय था, जब महिलाओं को मतदान का भी अधिकार नहीं था, और तो और पुरुषों की तुलना में एक जैसा ही काम करने के बाद भी उन्हें कम वेतन दिया जाता था। स्त्री-पुरुष समानता को लेकर ऐसे ही बहुत से मुद्दे थे, जहां महिलाओं को कम आंका जाता था। इन्हीं असमानताओं को मद्देनज़र रखते हुए, 1970 में अमेरिकी संविधान में 19वें संशोधन के पारित होने की 50वीं सालगिरह मनाई गई।

राष्ट्रीय महिला संगठन (NOW) ने महिलाओं से समान अधिकारों के लिए पूरे विश्व में “समानता के लिए हड़ताल” करने को कहा। कई प्रदर्शनकारियों ने स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के मुकुट पर दो, बड़े 40-फुट के बैनर लटकाए, जबकि अन्य लोगों ने अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में टिकट को रोककर हड़ताल की। यह आंदोलन महिलाओं ने अपने समान अधिकारों के लिए किए, और‌ बहुत हद तक उसमें सफल भी रहीं। फिर 1971 में इस दिन को महिला समानता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था।

महिलाओं को कितने समान अधिकार मिले हैं? (Mahilaon ko kitne saman adhikar mile hain?)

हम कहते हैं कि स्त्री देवी का रूप होती है, और दूसरी ओर उसी देवी के साथ दुष्कर्म की खबरों से हमारे शहर के अखबार भरे रहते हैं। समाज में महिलाओं के समान अधिकार सिर्फ दिखावे के न रह जाए, इस बात पर हम में से कई लोग ध्यान नहीं देते।

आज भी कई महिलाओं को अपनी मर्ज़ी से बाहर निकलकर, अपने सपने पूरे करने की आज़ादी नहीं है। बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें परिवार और समाज के दबाव में आकर, अपने सपनों को पंख लगने से पहले ही, मार देना पड़ता है। समाज का एक बड़े हिस्से के द्वारा महिलाओं को सिर्फ किचन तक ही सीमित माना जाता है। अगर वो बाहर जाकर नौकरी या बिजनेस भी कर रही हैं, फिर भी घर संभालने की ज़िम्मेदारी हमेशा से ही उनकी ही रहती है। नौकरी में अच्छा प्रदर्शन करने की बात हो, या पदोन्नति, उनकी तरक्की के पीछे उनकी मेहनत नहीं बल्कि उनका एक महिला होना देखा जाता है। महिलाएं जब हर रोज़ ऐसी परेशानियां झेल रही हैं, तो फिर क्या महिला समानता दिवस का कोई मतलब रह जाता है?

अगर हम सही मायने में महिला-पुरुष समानता चाहते हैं तो हमें सच में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने होंगे। हमें समझना होगा कि महिलाएं भी मेहनत करती हैं और वो भी अपने काम में तरक्की की हकदार हैं। उन्हें भी अपने सपने पूरे करने का हक है, और वे केवल किचन तक सीमित नहीं हैं। स्त्रियों में जब परिवार संभालने की कुशलता है, तो उसी स्त्री में हवाई जहाज़ उड़ाने की शक्ति भी मौजूद है। जब हम सब महिलाओं के लिए खुले विचार रखना सीख लेंगे, तभी महिलाएं खुशियों (Happiness) भरा जीवन जी पाएंगी।

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