पीपल प्लैज़र संतुष्ट करना

सबको संतुष्ट करने से बचने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्स

आप सोचते हैं कि किसी की खुशामद करके आप उसके चहेते बन जाएंगे, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि सबको खुश करने के चक्कर में अंतत: आप खुद को असहाय और बेकार महसूस करने लगेंगे।

मुझे किसी काम को करने के लिए दूसरे व्यक्ति की इजाजत क्यों लेनी पड़ती है या जिस चीज़ से मेरा वास्ता नहीं है, उसके लिए खुद को ढालने की कोशिश क्यों करता हूं? जिस काम को मैं नहीं करना चाहता हूं, उसे मना क्यों नहीं कर पाता हूं? किसी काम को प्रमाणित करने के लिए हमेशा मुझे दूसरों की ज़रूरत क्यों महसूस होती है? अगर आपके मन में भी इस तरह के ख्याल आ रहे हैं, तो यह खुद पर विचार करने का वक्त है। हर किसी को संतुष्ट करने की अपनी आदतों पर रोक लगाएं।

जिन लोगों के साथ आप उठते-बैठते हैं, उन लोगों को खुश रखने में आपको कुछ भी गलत नहीं लगता, जब तक यह उत्साह दूसरे के लिए बना रहता है। लेकिन, जब खुद की ज़रूरतों को प्राथमिकता देने का वक्त आता है, तब आपको परेशानी समझ में आने लगती है।

साल 2017 में कॉन्फिडेंस कोच डैन मुनरो की ओर से किए गए एक अध्ययन से पता चला कि पीपल प्लीजर वाले दो तरह के इंसान होते हैं। दूसरों को संतुष्ट करने वाले पहले वे लोग होते हैं जो पीपल प्लीजर को किसी काम को करने से पहले उन्हें दूसरे लोगों की सहमति चाहिए। जबकि, दूसरे पीपल प्लीजर वाले व्यक्ति किसी असम्मति से बचने वाले होते हैं। डैन मुनरो ने बताया है कि सम्मति लेने वाले लोगों में इस चीज़ की भूख रहती है कि उनकी तरफ हर किसी का ध्यान रहे। जबकि, असम्मति से बचने वाले इंसान, लोगों से कतराते रहते हैं।

जब आप दूसरों को संतुष्ट करने के लिए कोई काम करते हैं, तो उन लोगों की भी यही इच्छा रहती है कि आप यूं ही उन्हें खुश रखें। आप भी पूरी एकाग्रता से खुश करने में लगे रहते हैं। वह आपका ऑफिस हो सकता, दोस्तों का सर्किल या कोई संबंधी हो सकता है। जो दूसरों को संतुष्ट करने के चक्कर में आप अपना अधिकतर वक्त पीपल प्लीजर (People Pleaser) में गवां देते हैं। आप सोचते हैं कि किसी की खुशामद करके आप उसके चहेते बन जाएंगे, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि सबको खुश करने के चक्कर में अंतत: आप खुद को असहाय व बेकार महसूस करने लगेंगे। जाने-माने लेखक पाउलो कोएल्हो ने कहा है कि “अगर आप दूसरों के लिए हां कहते हैं, तो ये भी तय करें कि आप खुद को ना नहीं कह रहे हैं।”

दूसरों को संतुष्ट करने की आदत इस बात की ओर इशारा है कि कहीं न कहीं आपका स्वाभिमान का स्तर कम हो रहा है। इसके अलावा दूसरे को खुश करने में आप अपनी एनर्जी और समय भी बर्बाद करते हैं। अगर आप इन आदतों से बचना चाहते हैं, तो यहां कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप अपनी सीमाएं तय कर सकते हैं। साथ ही इन आदतों से छुटकारा पा सकते हैं।

कभी-कभी ‘नहीं’ कहना बेहतर होता है और ओईस डोरमैट बनना बंद कर देते हैं।” अपने लेख में लोगों को सुखी होने से कैसे रोकें, वह आगे जोर देती है, “हालांकि हम सोच सकते हैं कि दूसरों को खुश करके, हम ‘गो-टू पर्सन’ हैं, एक समय के बाद, दूसरे हमें हल्के में लेते हैं और यह संभावना है कि हमारे साथ ऑफिस के डोरमैट जैसा व्यवहार किया जाता है।”

अहसमत होना भी ज़रूरी है (Asahamat hona bhi jaruri hai)

अक्सर, दूसरों को संतुष्ट करने की कोशिश के दौरान चल रहीं बातों में हम अपनी सहमति जता देते हैं। लेकिन, दूसरे को संतुष्ट करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान कहीं न कहीं आप भीड़ में अपनी आवाज़ या विचारों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। जब आप दूसरों की राय के मुताबिक अपने विचारों को अपना लेते हैं, तो ऐसा करके आप अस्वभाविक तौर पर अपने विश्वास और खुद की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हैं। डबलिन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एनेट क्लैंसी का मानना है कि पीपल प्लीजर दरवाजे पर पड़े रहने वाले पायदान से कम नहीं हैं। वे कहती हैं कि सभी को खुश रखने वाले लोग खुद के आत्मसम्मान को यूं ही लुटाता रहता है। साथ ही इस विचार को मज़बूत करने की कोशिश करते हैं कि ‘अच्छा’ होने का अर्थ सहायक होना होता है। ज़िंदगी में कभी-कभार किसी काम के लिए ना कहना काफी फायदेमंद होता है। इसलिए आप अपने ऑफिस का डोरमैट बनना छोड़ दें। दूसरे को खुश करने की आदत से कैसे बचें, इस बारे में उन्होंने अपने लेख में काफी ज़ोर दिया है। हालांकि, हमारे मन में यह ख्याल आ सकता है कि दूसरे को खुश करके हम गो-टू-पर्सन यानी हर स्थिति में मदद करने वाले इंसान का तमगा हासिल कर सकते हैं, लेकिन एक समय के बाद आप महसूस करेंगे कि आपकी इन आदतों को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। संभवत: आपको लगने लगेगा कि आपके साथ ऑफिस के पायदान के जैसा बर्ताव किया जा रहा है।

इसलिए दूसरों को संतुष्ट करने वाला बनने से रोकने के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि आपकी ओपिनियन आपके लिए कितनी खास है। भले ही आपकी सहमति किसी को पंसद आए या ना आए, लेकिन दूसरे लोगों की तरह आपके विचार और किसी चीज़ को देखने का नजरिया भी काफी अहम है। यह बात अपने जेहन में बैठा लें कि ज़िंदगी में कभी-कभार असहमति भी ज़रूरी है। अगर दूसरे लोग आपके विचारों और सहमति का सम्मान नहीं कर सकते हैं, तो खुद से सवाल करना ज़रूरी हो जाता है कि क्या सच में वे आपके समय और ध्यान देने के काबिल हैं।

कुछ भी करने से पहले विचार करें (Kuch bhi karne se pahle vichar karen)

जब कोई व्यक्ति आपसे मदद मांगता है, तो दूसरों को संतुष्ट करने वाले लोगों का एक स्वाभाविक गुण है, वे तुरंत ‘हां’ कह देते हैं। लेकिन, किसी की मदद के लिए आगे आने से पहले अपनी स्थिति से भी भली भांति परिचित होना ज़रूरी है। अगर आप अपनी ज़रूरतों पर विचार किए बिना ही पहले किसी की मदद करने के लिए हामी भर देते हैं, तो आपको परेशानी भरी स्थिति में फंसने से कोई नहीं रोक सकता। अगर चाहते हैं कि आप इस तरह की परेशानी में न फंसे, तो किसी की मदद करने से पहले अपने वर्तमान हालातों पर आप ज़रूर विचार करें। कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर टोबियास टीचर्ट का मानना है कि अगर आप कोई फैसला लेने से पहले पुनर्विचार के लिए 50 से 100 मिली सेकंड लगाते हैं, तो उस दौरान आपका मन-मस्तिष्क नए सूचनाओं को ग्रहण करने के लिए पूरी तरह तैयार रहता है। साथ ही आपका ध्यान भंग करने वाले अनावश्यक विचारों को भी रोकता है। इसलिए आगे से जब भी कोई आपसे मदद मांगने के लिए आए, तो अपनी स्थिति के बारे में ज़रूर सोंचे। ऐसा करके आप खुद के लिए सुनिश्चित कर पाएंगे कि आप मदद के लिए खाली हैं या नहीं और आपके पास समय है या नहीं। इस तरह आप दूसरों को संतुष्ट करने की बजाय अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देंगे।

खुद जज करें कि क्या अच्छा है और क्या बुरा (Khud judge karne ki kya achha hai aur kya bura)

दूसरों की उम्मीदों के अनुरूप जीवन में कोई फैसला लेना ठीक आदत नहीं है। जब आप इस बात पर सोचने-समझने पर समय लगाते हैं कि आपके विचारों के प्रति दूसरे लोग क्या राय रखते हैं, तो आप कभी भी किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेंगे। मान लीजिए कि अगर समाज के सभी अनुसंधानकर्ता, साइंटिस्ट और थींकर्स अपने आलोचकों पर ही अपना पूरा ध्यान देते, तो शायद हम लोग आज भी पाषाणयुगीन जीवन ही जी रहे होते। इसलिए यह न सोचें कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं। अपने आपको खुद जज करें और आलोचना करें। आपके आसपास रहने वाले लोगों को प्रभावित करने की बजाय खुद को इंप्रेस करें। आप ऐसी कोई भी राय न दें, जिससे लगे कि आप दूसरों को संतुष्ट करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।

अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहें (Apne lakshya ke prati sajag rahen)

ज़िंदगी में एक समय ऐसा भी आता है, जब आप खुद को जान पाते हैं कि आप कौन हैं और आपके जीवन का मकसद क्या है। यही वह मौका होता है जब आपका पुनर्जन्म होता है। अगर आपके जीवन में ऐसा वक्त नहीं आया है, तो आप उसकी तलाश में लगे रहें। आप अपने जीवन के मकसद और बेहतर मौके की हमेशा तलाश करते रहें और अपना एक लक्ष्य बनाएं। जीवन में आप क्या करना चाहते हैं, इस बात का पता एक बार आपको चल जाएगा, तो आपको इसके अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा। सारी चीज़ें आपको फीकी लगने लगेंगी। इसलिए आप दूसरों को संतुष्ट करने की बजाय अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना समय और एनर्जी लगाना शुरू कर दें।

आलोचनाओं को नेक भावना से लेना सीखें (Alochnao ko nek bhavna se lena sikhen)

आमतौर पर कई बार लोगों के मन में आलोचना के प्रति एक अजीब तरह का डर पैदा हो जाता है। इसके चलते दूसरों को संतुष्ट करने का भाव दिलो-दिमाग में उत्पन्न हो जाता है। यह तब और खतरनाक हो जाता है, जब आप आलोचनाओं से बचने के लिए अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ना चाहते हैं। एक पल के लिए यह सकारात्मक पहल लग सकता है, लेकिन इस तरह की आदत आपके आत्मविश्वास को काफी नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसा करके आप हमेशा दूसरे पर निर्भर रहेंगे और आपकी विश्वसनीयता भी कम हो जाएगी। आलोचना ज़िंदगी में इस तरह रच-बस गया है कि उससे कोई भी अलग नहीं रह सकता। जब आप कामयाबी की बुलंदियों को छुएंगे, तो बहुत सारे लोग आपकी आलोचना भी करेंगे। आलोचना से डरने और दूसरों को संतुष्ट करने की बजाय आप इसे अपने जीवन में स्वीकार करें और आगे बढ़ने के लिए इसे सकारात्मक रूप में लें।

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