जानवर बोल नहीं सकते, पर हमारे सबसे अच्छे साथी बन जाते हैं। भगवान ने उन्हें भले ही ज़ुबान न दी हो, पर भावों को समझने में उनका कोई जवाब नहीं। कहते हैं, जानवर कभी एहसान फरामोश नहीं होते। वो ज़रूरत पड़ने पर, हमारी दी हुई आधी रोटी का कर्ज़ चुकाने भी चले आते हैं और जितना उनसे बन पड़ता है, हमारी उतनी मदद करने की कोशिश भी करते हैं। सच में, जानवर अगर एक बार हमारे घर आ जाते हैं, तो फिर वो परिवार के सबसे ज़रूरी सदस्य बन जाते हैं।
मेरे घर में कोई भी पालतू जानवर पालने की परमिशन नहीं थी। पर फिर भी घर में पालतू न सही, पर बिन बुलाई मेहमान की तरह एक बिल्ली रहा करती थी। वो अक्सर कभी दूध गिरा जाती, तो कभी किचन से रोटियां निकाल कर फर्श पर बिखेर जाया करती थी। मम्मी को उसकी इन सब हरकतों पर बहुत गुस्सा आता और फिर एक दिन उसके आने के सारे दरवाज़े बंद कर दिए गए। पर कुछ दिनों बाद हमें पता चला कि वो बिल्ली तो घर में ही एक कोने में छिपकर रह रही है, जहां उसने सुंदर और सफेद दो बच्चों को जन्म दिया था। हमें देखकर वो बिल्ली झट से भाग गयी। हालांकि, उसके बच्चे अब भी वही थे। सुबह से शाम तक बिल्ली का इंतज़ार किया गया कि वो आकर अपने बच्चों को ले जाए, पर जब वो नहीं आई तो मम्मी ने उन बच्चों को उठा कर, छत पर एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया।
अगले दिन सुबह देखा तो वो बिल्ली एक बच्चे को अपने साथ ले जा चुकी थी और दूसरा बेचारा वहीं पड़ा हुआ, अपनी मां का इंतज़ार कर रहा था। उसकी मां जब नहीं आई तो, मम्मी और मैं उसे फिर से नीचे ले आए, उसे रूई की मदद से दूध पिलाया और ऐसे ही धीरे-धीरे वो हमारे परिवार का एक ज़रूरी सदस्य बन गया। वो हमारे साथ सिर्फ दो महीने रहा, वो सब के कमरों में इधर से उधर घूमता रहता। मैं जहां जाती, वो मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में घूमता रहता। जब वो नहीं दिखता तो घर के सभी लोग मिलकर, उसे ढूंढने लग जाते और एक दिन सुबह जब वो नहीं दिखा, तो सब उसे ढूंढने लगे। लेकिन, आखिर में जब वो गमले के पीछे मिला तो उसे देखकर, मैं बुरी तरह रोने लगी क्योंकि पता नहीं कैसे, पर वो रात को ही मर चुका था। मेरे साथ-साथ घर के सभी लोग बहुत उदास थे। मगर, उसकी कमी पूरी करने के लिए, उसके जाने के कुछ महीनों बाद, हमारे घर में एक और नया मेहमान आ गया, वो है हमारा प्यारा कुत्ता, जो कि एक स्ट्रीट डॉग है।
पशुओं के प्रति हमारी ऐसे ही संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए एक खास दिन मनाया जाता है। उस दिन का नाम है नेशनल पेट डे। वैसे तो हम नेशनल पेट डे (National Pet Day) के दिन जानवरों से जुड़े कई पहलुओं पर चर्चा कर सकते हैं, मगर इस बार हम आपको पेट से प्यार करना सिखाएंगे बॉलीवुड अंदाज़ में। तो चलिए सोलवेदा के साथ जानते हैं, क्या है राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस और कौन-सी हैं वो फिल्में, जो जानवरों पर बनाई गईं हैं।
नेशनल पेट डे पर घर ले आएं एक साथी (National Pet Day par ghar le aayein ek sathi)
एक प्यारा और मासूम साथी कौन नहीं चाहता? और फिर पालतू जानवर हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी तो बहुत ज़रूरी होते हैं। वो हमारे साथ खेलते हैं, हमारी भावनाएं समझते हैं और हम उनके साथ खुशी महसूस करते हैं। तो फिर देर किस बात कि आप भी इस नेशनल पेट डे या राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस पर अपने लिए एक साथी घर ले आइए। इसके लिए आपको किसी दुकान पर जाने की ज़रूरत नहीं, आप अपने आस-पास से ही किसी भी पालतू जानवर को आप गोद ले सकते हैं। गोद लेने से पहले एक बार उसे डॉक्टर के पास ज़रूर ले जाएं ताकि अगर उसे कोई इन्फेक्शन को तो उसका इलाज हो सके।
पालतू पशु दिवस कब है? (Paltu Pashu Divas kab hai?)
हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस मनाया जाता है। इस दिन को उन अनाथ पालतू जानवरों के लिए मनाया जाता है, जो पालतू जानवर की श्रेणी में तो हैं, पर उन्हें अन्य पालतू जानवरों की तरह प्यार और घर नहीं मिल पाता। ऐसे में हम इस राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस पर किसी भी एक पालतू जानवर को गोद लेकर, उसे अपने परिवार का सदस्य बना लें, तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
जानवरों के दिवस की शुरुआत (Janwaron ke divas ki shuruaat)
जानवरों को पालने का चलन आज-कल का नहीं, बल्कि इंसान और जानवरों का रिश्ता सदियों पुराना है। लोग अपने पालतू साथी से बिल्कुल एक बच्चे की तरह प्यार करते हैं। ऐसा ही प्यार ‘कोलीन पेगे’ अपने पालतू जानवरों से किया करते थे। कोलीन एक सेलिब्रिटी पालतू जीवन शैली विशेषज्ञ और पशु कल्याण अधिवक्ता थे। उन्हें पशुओं से बहुत प्यार था और इसलिए उन्होंने 2005 में राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस की स्थापना की।
कोलीन पेज ने राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस की स्थापना, पालतू जानवरों को गोद लेने के महत्व के बारे में सभी लोगों में जागरूकता फैलाना के लिए की, ताकि सभी व्यक्ति पालतू जानवरों पर अपना प्यार और अपनापन लुटा सकें। और जिनके पास पहले से ही एक पालतू जानवर है, वो इस राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस पर अपने पालतू जानवर के साथ मिलकर, इस दिन को मना सकें। पालतू पशुओं की जरूरतों और ज़िम्मेदारियों को समझने के लिए राष्ट्रीय पालतू पशु दिवस मनाया जाता है।
पालतू जानवरों के प्यार पर बनी 5 फिल्में (Paltu janwaron ke pyar par bani 5 filmein)
हम आपके हैं कौन? (Hum Aapke Hain Kaun?)
1994 में सूरज बड़जात्या द्वारा निर्देशित फिल्म ‘हम आपके हैं कौन?’ में परिवार और प्यार का महत्व दिखाया गया है। साथ ही इसमें कुत्तों के प्रति घरवालों का प्यार भी दिखाया गया है। फिल्म में टफी नाम के कुत्ते की घर के हर ज़रूरी फैसले में मंजूरी ली जाती है, जिससे ये सीख मिलती है कि न केवल इंसान बल्कि जानवर भी परिवार का हिस्सा बन सकते हैं। इस फिल्म में मुख्य कलाकारों में सलमान खान, माधुरी दीक्षित, मोहनीश बहल, रेणुका शहाने और अनुपम खेर हैं।
परिवार (Parivaar)
शशिलाल के. नायर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘परिवार’ इंसान और बंदर के ऊपर बनी 1987 की सबसे बेहतरीन फिल्म है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक पालतू जानवर यानी एक बंदर आपके जीवन में आपकी मदद कर सकता है। इसमें बिरजू नाम के एक मदारी है, जो मुसीबत में फंसे जाता है और तब बंदर गुंडों को सबक सिखा कर, उसकी मदद करते हैं। इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, मीनाक्षी सेशाद्री और शक्ति कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं।
तेरी मेहरबानियां (Teri Meherbaniyan)
इस फिल्म में एक कुत्ते और इंसान का प्यार देखकर, हर किसी की आंखें भीग जाती हैं। विजय रेड्डी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘तेरी मेहरबानियां’ इंसान और कुत्ते के बीच के प्यार पर आधारित है। ये फिल्म एक ऐसे बहादुर कुत्ते की कहानी है, जो अपने मालिक की मौत के बाद उसे मारने वालों से बदला लेता है।
वैसे तो ये फिल्म कन्नड़ फिल्म ‘थालिया भाग्य’ का हिंदी रीमेक है, पर इतने सालों बाद भी इस मूवी ने बॉलीवुड पर अपना जादू बिखेर रखा है। इस फिल्म में जैकी श्रॉफ, पूनम ढिल्लोन, अमरीश पूरी और राज किरण मुख्य कलाकार हैं।
हाथी मेरे साथी (Hathi Mere Sathi)
एम. ए. थिरुमुगम के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ हाथी और इंसान के प्यार पर बनी है। फिल्म में राजू की जान चार हाथी बचाते हैं, उसके बाद राजू को हाथियों से लगाव हो जाता है। हाथी और राजू का ये लगाव हमेशा रहता है। इस फिल्म में राजेश खन्ना, तनुजा, सुजीत कुमार और ए. एन. सिंह मुख्य अभिनेताओं में हैं।
कुली (Kuli)
फ़िल्म ‘कुली’ में अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग था- ‘बचपन से सिर पर अल्लाह का हाथ है, अल्लाह रक्खा मेरे साथ है’। यहां अल्लाह रक्खा एक बाज़ है, जो अमिताभ बच्चन को दुश्मनों से बचाता है। इस कहानी में बाज़ का किरदार कितना अहम था, इसका अंदाज़ा तो आपको फ़िल्म का पोस्टर और पूरी फिल्म देखकर ही चलेगा। यह फिल्म इंसान और बाज के बीच एक गहरा संबंध दिखाती है।
आर्टिकल अच्छा लगा हो तो पेट लवर्स यानी पालतू प्रेमी लोगों के साथ शेयर करें। अपना फीडबैक हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।