फादर्स डे हर पिता के लिए काफी खास है। किसी भी दंपती के रिश्ते का सबसे ज्यादा भावुक पल वो होता है, जब वे माता-पिता बनते हैं। जब मां और पिता के गोद में नवजात को सौंपा जाता है, तो अक्सर खुशी के आंसू आंखों से छलक जाते हैं। अपने शिशु का स्वागत करने के साथ ही उनके जीवन में बड़े बदलाव की शुरुआत हो जाती है। जीवन की कल्पनाओं से भी परे ना सिर्फ मां का, बल्कि पिता का जीवन भी प्रभावित होता है। मानव जाति में पुरुष के अलावा सभी मैमलस में से मात्र 10 प्रतिशत पिता ही अपने संतान की देखभाल करते हैं। इनमें हाथी, बंदर, सील व अन्य शामिल हैं। हमेशा हमने सुना है कि पिता अपने बच्चों के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। लेकिन क्या आपने यह सुना है कि बच्चे भी अपने पिता के जीवन को प्रभावित करते हैं? कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पुरुषत्व के बारे में एक आदमी का विचार पिता बनने के बाद स्पष्ट होता है, जो संबंधों के बारे में उनकी समझ को और अधिक गहरा करता है।
प्रेग्नेंसी के दौरान और बाद में सिर्फ माताओं में ही नहीं, बल्कि पिता में भी बच्चे के जन्म के बाद हॉर्मोनल परिवर्तन होते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया कि नवजात शिशु के पिता में एस्ट्रोजन और ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क में संबंध, सतर्कता और प्रेरणा के विचारों का प्रसार होता है। इलिनोइस के शिकागो में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक अन्य अध्ययन से यह बात सामने आई है कि पिता बनने के बाद पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन (माचो हॉर्मोन) में तेज़ी से गिरावट आती है।
पिता के रूप में पुरुषों को सामाजिक तौर पर खुद के विचारों को जानने के लिए जाना जाता है। पिता अपने बच्चे की शारीरिक सुरक्षा, इमोशनल सपोर्ट और आर्थिक रूप से जीवनभर देखभाल करने के लिए तैयार होते हैं। ज्यादातर पुरुषों में पिता बनने के बाद अविश्वसनीय बदलाव देखने को मिलता है।
फादर्स डे (Father’s Day) के अवसर पर हमने कुछ पुरुषों से उनके पिता बनने के सफर के बारे में बात की। हमें उम्मीद है कि आपको भी उनका नज़रिया पिता होने की गहराई को समझाने में मदद करेगा। सभी सुपर डैड्स को सोलवेदा की तरफ से हैप्पी फादर्स डे!
पिता बनने के बाद आपमें कैसे बदलाव आए हैं?
आशीष सेसिल मुर्मू : फादर्स डे पर अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि मेरे लिए पिता बनने का सफर तभी शुरू हो गया था, जब मेरी पत्नी ने बताया कि वह प्रेग्नेंट है। जिस वक्त मैंने पहली बार अपने बच्चे को छुआ, तब मुझे जिम्मेदारी का अहसास हुआ। वह अनुभव ऐसा था कि जैसे मानो मैंने अपने जीवन के अहम हिस्से को पा लिया हो। धीरे-धीरे मेरे परिवार के लिए मेरा समय बढ़ता गया और उससे ज्यादा ज़रूरी बात यह है कि मेरा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रिश्ता और मज़बूत हो गया।
देबरूप दास : फादर्स डे हर पिता के लिए काफी खास है। मेरी बेटी के जन्म ने मेरे पूरे जीवन की संरचना ही बदल दी। जिस वक्त मैंने पहली बार अपनी बेटी को गोद में लिया, मुझे तभी यह अहसास हो गया कि इसमें ही मेरी पूरी दुनिया है। अपनी बेटी को बेस्ट देना मेरी प्राथमिकता में कब शुमार हो गया, मुझे पता ही नहीं चला। पिता बनने के साथ आप अपना एक नया जीवन शुरू करते हैं। इसमें आप गुजरते हुए हर दिन अपने बच्चे की नज़र में हीरो बनने के मजे लेते हैं।
रोहन चौधरी : फादर्स डे पर अपना विचार शेयर कर मुझे अच्छा लग रहा है। पिता बनने का अनुभव मेरे लिए ऐसा था, जैसे किसी बगीचे में बसंत का आना। पिता बनने के बाद मैं ना सिर्फ और अधिक जिम्मेदार हो गया, बल्कि मुझे सामाजिक मूल्यों का भी पता चला। बच्चे के जन्म के बाद से मेरे मन में सिर्फ एक ही विचार चलता है कि उसे अच्छे संस्कार और परवरिश किस तरह से देना है। पिता बनने के बाद से मैं ज्यादा धैर्य के साथ काम करने लगा। मुझे हर सुबह अपने बच्चे में प्रेम के नए अर्थ दिखाई देते हैं।
हृदयेश भट्टाचार्जी : मेरे हिसाब से जिम्मेदारी का दूसरा नाम पिता बनना है। जब आप सिर्फ एक बेटे या पति होते हैं, तो जीवन में रिस्क लेने से नहीं डरते हो। लेकिन पिता बनने के बाद कोई भी जोखिम लेने से पहले सोचते हैं। अब मैं छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढने लगा हूं, जैसे- बेटी के साथ खेलना, उससे गले मिलना, उसके साथ अधिक समय बिताना। मैं उसके कभी खत्म ना होने वाले सवालों की लंबी लिस्ट सुनता हूं और काफी धैर्य के साथ जवाब देने का प्रयास करता हूं। अब मुझमें पहले की तुलना में अधिक धैर्य और सहनशक्ति आ गई है।
आशीष एचपी : जब से जीवन ने मुझे पिता की जिम्मेदारी का एहसास कराया है, तब से जीवन में कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। दो वर्षों में मेरा हर फैसला मेरे बेटे के भविष्य के इर्द-गिर्द ही होता है। फादर्स डे पर मैं कहना चाहूंकि कि पितृत्व के अनुभव ने मेरे नज़रिए को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। पिता बनने के बाद जीवन में जो खुशी आई है, मैंने उसे अपने संपूर्ण जीवन में महसूस नहीं किया था।
पिता बनने के बाद आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
आशीष सेसिल मुर्मू : बतौर पिता मेरे लिए बाहर से ज्यादा आंतरिक चुनौतियां थीं। मेरे लिए सबसे मुश्किल काम अपने बच्चे के अनकहे शब्दों और भावनाओं को समझना था। मुझे खुद में वह अहम बदलाव लाने पड़े, जिसका मेरे बच्चे के आचरण पर नकारात्मक असर पड़ सकता था। मेरा काम ऐसा है कि मुझे अक्सर बाहर अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है। आपको जान कर हंसी आएगी कि मुझे हमेशा अपनी बच्ची को याद दिलाना पड़ता है कि मैं उसका पिता हूं और यह किसी चुनौती से कम नहीं है।
देबरूप दास : एक पिता के लिए अपने निजी जीवन और पेशेवर जीवन के बीच संतुलन बनाना सबसे मुश्किल काम है। जब मैं पिता बना और अपनी नई जिम्मेदारी को बेहतर तरीके समझा, तो दोनों के बीच में तालमेल बिठाना आसान हो गया। इस चुनौती का सामना करने के बाद मैं तनावमुक्त रहने लगा।
रोहन चौधरी : मेरे हिसाब से सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बच्चे के साथ किस समय किस तरह का व्यवहार करना है। कब बच्चे की हरकतों पर नर्म रूख करना है, जिससे उसकी बातों को नज़रअंदाज किया जा सके। कब उसके गलत आदतों पर उसके साथ सख्त शब्दों का इस्तेमाल करना है। इस सामंजस्य को स्थापित करने की प्रक्रिया मैं अभी सीख रहा हूं। वहीं, मेरे लिए दूसरी चुनौती वर्क-लाइफ बैलेंस है। जहां पर मुझे काम और परिवार दोनों को बराबर समय देना पड़ता है, यह मेरे बच्चे के परवरिश के लिए बहुत ज़रूरी है।
हृदयेश भट्टाचार्जी : एक पुरुष होने के नाते मुझे मेरा “मी टाइम” पहुत पसंद है। लेकिन अपने पसंद को दरकिनार करना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। कई बार ऐसा होता है कि मैं टेलीविजन पर अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख रहा हूं और मुझे अपने बेटी का पसंदीदा कार्टून देखना पड़ता है। अब मुझे उसकी खुशी में अपनी खुशी नज़र आती है। अब मेरा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित रहता है कि मैं अपनी लाडली का रोल मॉडल कैसे बनूं। मैं उसके लिए एक सही उदाहरण के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहता हूं।
आशीष एचपी : टाइम मैनेजमेंट मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पिता बनने के शुरुआती कुछ महीनों में मुझे ऑफिस और घर के बीच संतुलन बिठाने में बड़ी मुश्किल हुई। मैं कहीं भी होता हूं, तो मेरा मन मेरे बेटे के पास होता है। मैं हमेशा उसके साथ समय बिताने के बारे में सोचता रहता हूं। मैं उसके सभी विशेष अवसरों पर उसके साथ रहना चाहता हूं, वो चाहे उसका टीकाकरण कराना हो या उसका नामकरण कराना या फिर उसका पहला जन्मदिन हो। मैं अपने परिवार का शुक्रगुज़ार हूं, जिन्होंने मुझे समझा। महामारी के बीच भी मैंने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई है।
आप अपने बच्चे के साथ संबंधों को मज़बूत और उनकी देखभाल कैसे करते हैं?
आशीष सेसिल मुर्मू : मेरा मानना है कि अपने बच्चे के साथ समय बिताने के लिए हमें घड़ी की ज़रूरत नहीं है। मुझे जब भी समय मिलता है, मैं उसके साथ अपने रिश्ते को और गहराइयों में ले जाने का प्रयास करता हूं। मुझे अपने बच्चे से बात करना, उसके साथ खेलना, उसे घुमाने ले जाना व उसे अपने हाथों से खिलाना हमारे रिश्ते को और मज़बूत करने में मदद करता है। जब कभी भी मैं अपने बच्चे से दूर होता हूं, तो मैं हमारे बीच नज़दिकियां बनाए रखने के लिए उससे वीडियो कॉल पर बात करता हूं।
देबरूप दास : हर रिश्ता समय मांगता है। ठीक वैसे ही बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने से बच्चे के साथ बंधन और प्रगाढ़ होता है। मैं मेरी बेटी की दिनचर्या में शामिल होने का प्रयास करता हूं, जैसे- उसे नहलाना, उसके कपड़े धोना, खाना खिलाना, उसके साथ खेलना आदि। इसके अलावा मैं अपनी बेटी के साथ एक अजीब, लेकिन दिलचस्प काम करता हूं। पूरे दिने मेरे साथ कौन सी घटनाएं हुई वह सब उसे सुनाता हूं, लेकिन वह अभी महज़ 6 माह की ही है।
रोहन चौधरी : पिता होने का मतलब सिर्फ आर्थिक रूप से समर्थित करना नहीं है। बल्कि बच्चे की मां के कामों को साझा करना भी है। मैं वो सभी काम करता हूं, जो एक मां करती है, जैसे- उसकी नैपी बदलना, उसे ब्रश कराना, उसे नहलाना, खाना खिलाना, उसे बिस्तर पर सुलाना। हम साथ में गानों पर डांस भी करते हैं, जिससे हमारी बॉन्डिंग और मज़बूत हो रही है। इन कामों ने मेरे और बच्चे के बीच में एक प्राकृतिक बंधन विकसित कर दिया है और यह समय के साथ मज़बूत हो रहा है।
हृदयेश भट्टाचार्जी : मेरा मानना है कि मैं जो दूंगा, मुझे वही वापस मिलेगा। इसलिए मैं अपने बच्चे के साथ अधिक समय बिताने की कोशिश करता हूं। मैं उसकी सभी एक्टिविटी में रुचि लेता हूं, जो हमारे बीच भावनाओं को विकसित कर रहा है। मैं हमेशा अपनी बेटी को “आई लव यू” कहता हूं। हम दोनों बाप-बेटी कभी-कभी एक दूसरे के साथ डेट पर भी जाते हैं। जितना हो सकता है मैं अपनी बच्ची के साथ क्वालिटी टाइम बिताने की कोशिश करता हूं।
आशीष एचपी : मेरा बच्चा सुपर एक्टिव है। मैं उसकी सभी एक्टिविटी में शामिल होता हूं। यूं कह लीजिए कि मेरा बच्चा मेरी छोटी सी दुनिया है। मैं उसके साथ टीवी देखता हूं, खेलता हूं, यह करने में मुझे एक अजीब सी खुशी मिलती है। मेरा मानना है कि अगर आप बच्चे को बच्चा बन कर समझते हैं, तो आप उसका पालन-पोषण आसानी से कर सकते हैं। मैंने अपने बच्चे को सब कुछ करने की आज़ादी दे रखी है, सिर्फ उसे गलत आदतों के लिए रोका-टोका है। मैं अपने बच्चे के साथ एक हेल्दी रिलेशनशिप को विकसित करने में लगा हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि मैं इसमें आने वाले समय में सफल रहूंगा।