परी कथा दिवस: परियों की कहानी बड़े होने पर कैसी आती है काम?

छुटपन में दादी-नानी से सुनी बाल कहानियों के ज़रिए ही मासूम बच्चे परियों की दुनिया के बारे में जानते हैं और वे अपने जीवन में उन्हें पहला दोस्त बनाते हैं। परियों की छवि बच्चों के मन-मस्तिष्क पर खास छाप छोड़ जाती हैं। ये परी कथाएं बच्चों को एक ऐसी जादुई दुनिया में ले जाती हैं, जहां उन्हें अपने सपनों का संसार नज़र आता है।

जब कभी परियों का ज़िक्र आता है, तो सबसे पहले हमारे मन-मस्तिष्क में रंग-बिरंगे कपड़े पहने, पक्षियों की तरह पंख लगे हुए, हाथों में जादुई छड़ी लिए और सिर पर मोतियों जैसे चमचमाते ताज पहने एक खूबसूरत-सी लड़की की काल्पनिक तस्वीर उभर कर आती है। परियों का झुंड जादुई दुनिया की सैर करता हुआ और खुशियां बिखेरता हुआ नज़र आता है। जब बात परी कथा की हो, तो उसकी बात ही निराली है। भला हो भी क्यों न, परियों की कथाएं शुरू से ही छोटे बच्चों और बड़ों के लिए ज्ञान और मनोरंजन का साधन जो रही हैं।

छुटपन में दादी-नानी से सुनी बाल कहानियों के ज़रिए ही मासूम बच्चे परियों की दुनिया के बारे में जानते हैं और वे अपने जीवन में उन्हें पहला दोस्त बनाते हैं। परियों की छवि बच्चों के मन-मस्तिष्क पर खास छाप छोड़ जाती हैं। ये परी कथाएं बच्चों को एक ऐसी जादुई दुनिया में ले जाती हैं, जहां उन्हें अपने सपनों का संसार नज़र आता है। इन परी कथाओं से बच्चों को जीवन जीने के तौर-तरीके सीखने के साथ-साथ अच्छाई और बुराई के बीच फर्क करने की सीख भी मिलती है। ये परी कथाएं छुटपन से ही उन्हें प्रेरित करती हैं और उनकी कल्पना को विकसित करती हैं।

आइए जानते हैं परी कथा दिवस (Pari Katha Divas) के बारे में थोड़ा विस्तार से।

परी कथा दिवस कब मनाते हैं? (Fairytale Day kab manate hain?)

हर साल परी कथा दिवस 26 फरवरी के दिन मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य है बच्चों को कहानियों की तरफ आकर्षित करना। ऐसा माना गया है कि परियों की कहानियां बच्चों की पहली किताब होती है। परियों की कहानियां बच्चों के मन को कैसे विकसित करती हैं और किस तरह से बड़े होने पर भी उनके काम आती हैं, हम आगे जानेंगे।

परी कथा कल्पनाशक्ति बढ़ाती है (Pari katha kalpanashakti badhati hai)

परियों की मनोहर कथाएं बच्चों की कल्पनाशक्ति विकसित करने में काफी मदद करती हैं। कल्पनाशक्ति की बदौलत ही बच्चे बड़े होने पर अपने भावों को बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाते हैं। खूबसूरत परियों की कल्पना छोटे बच्चों को हैरान कर देती हैं। इसकी मदद से बच्चे किसी चीज़ की कैसी छवि बनानी है, इसके बारे में सीखते हैं। वे सीखते हैं कि किसी कहानी के किरदार कैसे दिखेंगे, किस तरीके से चलेंगे और कैसा काम करेंगे। इस तरह अपनी कल्पना शक्ति के ज़रिए बच्चे अपने अंदर नई सोच और समझ विकसित कर पाते हैं। परियों की कथाएं कल्पना करने की क्षमता में बढ़ोतरी करने के साथ-साथ बच्चों का मानसिक विकास करती हैं, साथ ही शारीरिक रूप से भी परिपक्व बनाती हैं।

मनुष्य के गुणों को समझाती हैं (Manushya ke gunon ko samjhati hain)

आमतौर पर परियों की कथाओं में काफी किरदार होते हैं, जो बच्चों को अपनी ओर काफी आकर्षित करते हैं। परी कथाओं के विभिन्न पात्रों के स्वभाव और हाव-भाव के बारे में अलग-अलग माध्यम से छोटे बच्चों को जानकारी दी जाती है। इन पात्रों के स्वभाव बच्चों को एक निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद करते हैं।

अगर आपके घर में भी छोटे बच्चे आपको बार-बार परी की कथाएं सुनाने की ज़िद करते हैं, तो इसका मतलब है कि परी कथा ने उनके मन को भी प्रभावित किया है। बच्चों में एक तरह की कहानियों के प्रति गहरी समझ और रुचि विकसित हुई है। ऐसे में बड़ों को भी बच्चों में परी कथाओं के प्रति उत्सुकता को बरकरार रखनी चाहिए और उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।

शब्द भंडार में होती है बढ़ोतरी (Shabd bhandar mein hoti hai badhotari)

बच्चों को परियों की कहानियां सुनाने का सबसे अधिक फायदा यह है कि उनके शब्द भंडार में वृद्धि होती है। परियों की कथा सुनकर बच्चे रोजाना नए-नए शब्दों से अवगत होते हैं। परी कथाओं के माध्यम से जितने मनोरंजक ढंग से बच्चे नए-नए शब्द सीख सकते हैं, उस तरह का कोई दूसरा माध्यम मौजूद नहीं हैं।

कहानियों में इस्तेमाल होने वाले शब्द और वाक्य छोटे बच्चे पात्रों के बोलचाल और व्यवहार से आसानी से सीख और समझ लेते हैं। यही कारण है कि शब्द ज्ञान बढ़ाने के लिए आमतौर पर शिक्षाविद छोटे बच्चों को स्कूलों में परियों की कहानियां सुनाने की सलाह देते हैं। इस तरह बड़े होते-होते बच्चों के पास असंख्य शब्दों का भंडार जमा हो जाता है। इन शब्दों के माध्यम से बच्चे अपनी कम्युनिकेशन स्किल को भी मजबूत कर सकते हैं।

जीवन के सबक सिखाती हैं (Jivan ke sabak sikhati hain)

परी कथा में मौजूद अलग-अलग मनमोहक और डरावने किरदार अपनी प्रस्तुति के ज़रिए एक खास संदेश देने का काम करते हैं। परी कथाओं में अक्सर कुछ अच्छे और कुछ बुरे किरदार होते हैं। अगर कोई पात्र हमेशा दूसरों की मदद करता है और किसी की जान बचाता है, तो इससे पता चलता है कि वो अच्छा है। जबकि, वे पात्र जो दूसरों को तंग करते हैं और उनमें तमाम अवगुण मौजूद होते हैं, ऐसे स्वभाव वाले पात्रों को बुरे इंसान की संज्ञा दी जाती है। इन पात्रों के बारे में सुनकर बच्चे कभी डर जाते हैं, तो कभी काफी खुश हो जाते हैं। उनके कोमल मन में आने वाले ये भाव उन्हें भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं। ये कहानियां बच्चों के दिमाग में गहराई तक जड़ें जमा लेती हैं और बड़े होने पर समाज के प्रति उनके विचारों और दृष्टिकोण को असर डालती हैं। कहानियों से हम काफी कुछ सीखते हैं।

समस्याओं से निपटने का तरीका सिखाती हैं (Samsyaon se nipatne ka tarika sikhati hain)

कहानियों में मौजूद अलग-अलग पात्रों से छोटे बच्चे हों या बुजुर्ग, हर आयु वर्ग के लोग कुछ न कुछ ज़रूर सीखते हैं। परी कथा के पात्रों को हम अपने जीवन, सपनों और परेशानियों से जोड़कर देखते हैं। अक्सर, जब हम अपने मन में किसी पात्र की छवि बनाते हैं, तो उस दौरान सोचते हैं कि अगर हम उनकी जगह पर होते तो क्या करते। इस प्रकार परी कथाओं के पात्रों से हमें अलग-अलग परेशानियों को सुलझाने में मदद मिलती है। साथ ही परियों की कहानियां बच्चों को जीवन जीने का सलीका भी सिखाती हैं।

परी कथा सांस्कृतिक समझ बढ़ाती है (Pari katha sanskritik samjh badhati hai)

आमतौर पर परी कथाओं में अलग-अलग संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इन कहानियों में अलग-अलग जगहों की काल्पनिक बातें होती हैं। इससे बच्चों को अलग-अलग संस्कृतियों और वहां रहने वाले लोगों के स्वभाव के बारे में पता चलता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बच्चे जादुई लोगों के बारे में जानना और सुनना काफी पसंद करते हैं। इसलिए उनमें मनुष्यों के रहने के तौर-तरीके के बारे में जानने की रुचि विकसित होती है। इसके अलावा, परियों की कहानियों में अक्सर जंगल, गांव, पहाड़ इत्यादि की चर्चा होती है। इन सभी जगहों की सांस्कृतिक छवि भी अलग-अलग होती है। जैसे- राजस्थान में सुनी-सुनाई जाने वाली परियों की कहानियों में अक्सर परियों का अड्डा किसी बावड़ी या मरुस्थल में होता है, तो वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में सुनाई जाने वाली परी कथाओं के पात्र पहाड़ों और झरनों के आसपास रहते हैं। ये सभी चीजें बच्चों को उनके परिवेश की सांस्कृतिक पहचान कराती हैं।

जीव-जंतुओं के प्रति सहानुभूति (Jiv-jantu ke prati sahanbhuti)

अधिकतर परियों की कथाओं में अलग-अलग जानवरों की भी जानकारी होती है। कहानी में मौजूद पात्र अक्सर किसी न किसी जानवर के दोस्त या सारथी होते हैं। इन कहानियों के माध्यम से बच्चों को भी इस बात का आभास होता है कि जानवर भी इंसान के साथ घुल-मिल सकते हैं। इससे शुरू से ही बच्चों के कोमल मन में पालतू या जंगली जानवरों के लिए एक सॉफ्ट कोना बन जाता है। वे जीव-जंतुओं के प्रति सहानुभूति रखने लगते हैं।

तार्किक सोच विकसित करती है (Tarkik soch vikshit karti hai)

परियों की कथा सुनने से छोटे बच्चे में जीवन के प्रति एक खास दृष्टिकोण विकसित होता है। इन कहानियों के माध्यम से बच्चों को अपनी समझ बनाने में काफी मदद मिलती है। इससे उन्हें यह भी पता चलता है कि अगर हम कोई गलत काम करेंगे, तो उसका क्या परिणाम होगा। इस तरह की सीख बड़े होने पर भी जीवन में काम देती हैं। बच्चे कहानी में मौजूद पात्रों के स्थान पर खुद को रखकर नतीजों की भविष्यवाणी करने की कोशिश करेंगे। इससे उन्हें असल ज़िंदगी के कार्यों की तार्किक रूप से व्याख्या करने और नतीजों की कल्पना करने में भी मदद मिलती है।

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