दादी मां की कहानियां

नानी की कहानी, दादी का प्यार, क्यों बुलाता है बचपन हर बार?

रोज़ दादाजी का हाथ पकड़ कर टहलने जाना और आते वक्त दादाजी से चाकलेट की ज़िद्द करना बचपन में सबको पसंद था। दादी की प्यार वाली डांट और अपनी गोद में बिठा कर खूब सारा दुलार करना, तो आपको भी याद आता होगा न?

बचपन की बहुत सी धुंधली पड़ी यादों में आज भी नानी के घर की यादें बिल्कुल ऐसी ताज़ा हैं, जैसे कल ही की बात हो। गर्मियों में स्कूल की छुट्टियां इसलिए अच्छी लगती थीं, क्योंकि उन छुट्टियों को हम नानी के घर जाकर बिताते थे। सारा दिन मौज-मस्ती करने पर भी कोई डांटता नहीं था, और शाम होते ही घर के सारे बच्चे नानी की चारपाई के पास बैठकर उनसे उनकी जवानी के किस्से और कहानियां सुना करते थे।

नानी की कहानियां सुनना इतना दिलचस्प होता था कि कहानी खत्म होने तक घर के बड़े भी हमारे साथ बैठकर कहानी सुनते हुए दिखाई देते थे। मेरे बचपन की इन यादों ने आपको अपने बचपन की याद दिलाई या नहीं? मुझसे पूछो तो मैं तो यही कहूंगी कि हम सब के बचपन में नानी-दादी की कहानियां और उनके प्यार से जुड़ी यादें लगभग एक जैसी ही होती हैं। दादा-दादी और नाना-नानी के घर में खुशियां और सुकून हुआ करता था।

रोज़ दादाजी का हाथ पकड़ कर टहलने जाना और आते वक्त दादाजी से चाकलेट की ज़िद्द करना बचपन में सबको पसंद था। दादी की प्यार वाली डांट और अपनी गोद में बिठा कर खूब सारा दुलार करना, तो आपको भी याद आता होगा न? बचपन एक ऐसी चीज़ है, जिसे फिर से पाया तो नहीं जा सकता, पर उसकी यादों का हाथ पकड़ कर, वही बचपन वाला एहसास लिया जा सकता है। तो फिर चलिए मेरे साथ बचपन की गलियों की सैर पर।

दादा-दादी की कहानियां और बचपन (Dada-dadi ki kahaniyan aur bachpan)

एक वक्त था, जब बच्चे दादा-दादी की गोद में बैठ कर, दादी मां की कहानियां सुना करते थे, लेकिन अब दादी मां की कहानियों में छिपे अनोखे प्यार की जगह मोबाइल ने ले ली है। बच्चे अब दादा-दादी की कहानियां (Dada dadi ki kahaniyan) सुनने से ज़्यादा वक्त फोन के साथ बिताते हैं। कहते हैं, जिन घरों में बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहते हैं, वहां बच्चों में संस्कार और आदर्श भाव खुद व खुद आ जाते हैं।

हमें अपने बच्चों को किसी वीडियो गेम या मोबाइल की गंदी आदत की बजाय नानी या दादी मां की कहानियां सुनने की आदत डालनी चाहिए। क्योंकि दादी मां की कहानियां बच्चों को बहुत कुछ सिखाती हैं। नानी मां या दादी मां की कहानियां नैतिकता और ज्ञान से भरी हुई होती, जिनसे बच्चे ज़िंदगी के बहुत से सबक सीख जाते हैं। घर के बुजुर्गों से बच्चे जो कुछ सीखते हैं, वो बच्चों की बचपन की जड़ों में खाद और पानी का काम करता है, जैसे पेड़ अच्छा खाद और पानी पाकर, खूब बढ़ते हैं, उसी तरह बच्चे भी दादी-नानी या दादा जी-नाना जी के प्यार और आशीर्वाद से अपने जीवन में सकारात्मक शुरुआत करते हैं।

दादी-नानी के बिन है अधूरा बचपन (Dadi-Nani ke bin hai adhoora bachpan)

मैं बहुत छोटी थी, जब मेरी दादी गुज़र गई। उनके साथ बिताई बचपन की यादों में मुझे अब सिर्फ उनकी शक्ल ही याद है। हम सब में ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं, जो अपने बचपन को नानी-दादी के प्यार के साथ बिता पाते हैं, क्योंकि हमारे बड़े होते-होते उनकी उम्र हो जाती है।

सच यह भी है कि वो लोग बहुत खुशनसीब हैं, जिनके घर के बुजुर्ग आज भी उनके साथ हैं। घर के बच्चे और घर के बुजुर्ग दोनों ज़िंदगी के दो कोनों जैसे होते हैं, एक में जीवन की शुरुआत हो रही होती है और एक जीवन के आखिरी पड़ाव पर होते हैं। ज़िंदगी के इन दो कोनों का रिश्ता अटूट होता है। दादी-नानी बच्चों को संस्कार देती हैं और उन्हें एक अच्छा इंसान बनना सिखाती हैं। सच में, उनके बिना बचपन अधूरा है, वो घर की मजबूत नींव होते हैं।

क्या आपको भी बचपन बुलाता है? (Kya aapko bhi bachpan bulata hai?)

जब किसी पार्क में बच्चों को एक बॉल के लिए झगड़ते देखते हो, या कंधे पर भारी बस्ता टांग कर, छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल की तरफ भागते देखते हो, तब तुम्हारे अन्दर का बच्चा भी फिर से भागने की ज़िद करने लगता है न? बचपन निकल गया, लेकिन मन से उसका एहसास कभी नहीं जाता। हम सब के अंदर बैठा, वो मासूम सा बच्चा आज भी बाहर आने की तलाश में रहता है।

हमारे अंदर का बचपना कभी बच्चों को खेलता देखकर, उनके साथ खेलने को कहता है, तो कभी बारिश के पानी में बहती कागज की नावों को देखकर, खुद भी एक कागज की नाव बनाकर उस पानी में बहा देना चाहता है। हमारे अंदर का बचपना कभी किसी की गोद में सिर रखकर, बचपन की तरह सो जाना चाहता है, तो कभी सड़कों पर बिना किसी की परवाह किए बस दौड़ लगा देना चाहता है।

उम्र बढ़ गई तो क्या हुआ? हमारे अंदर के बच्चे और बचपने को ज़िंदा रखने और उसकी ख्वाहिशें पूरी करने की ज़िम्मेदारी तो हमारी है। कभी-कभी मौका मिले तो उसी बचपने को फिर से जीओ। दादी मां की कहानियां फिर से याद कर लो, या संभव हो दादी-नानी की कहानियां, उनकी ही जुबानी फिर से सुन लो। बचपन की तरह फिर खेलने निकल जाओ या दादी-नानी की गोद में सिर रखकर सुकून से सो जाओ। उनकी सुनो, अपनी कहो, उनसे दिल खोल कर बात करो। अपने अंदर बचपन संभाल कर रखो, और बचपन बुलाए तो फिर उन यादों को जीने बेझिझक चले जाओ।

अपने बचपन के सबसे प्यारी याद हमारे साथ कमेंट में शेयर ज़रूर करें। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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