मजदूर दिवस के कारण आया था 8 घंटे काम करने का नियम

मजदूरों की सुरक्षा और अधिकार की रक्षा के लिए हर साल पूरी दुनिया में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। भारत में इस दिवस की मनाने की शुरुआत एक मई 1923 को चेन्नई (मद्रास) से हुई थी। हालांकि, उस समय इस दिवस को मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था।

मजदूर और मजदूरी दोनों में, आज के दौर में काफी बदलाव आए हैं। मजदूरों के काम करने के तरीके में भी काफी बदलाव हुए हैं, साथ ही स्वरूप भी बदले हैं। दुनिया के हर देश में मजदूरों की काफी आबादी है, जो दिन-रात मेहनत करके परिवार और खुद का जीवन-यापन करते हैं। इन्हीं मजदूरों की और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हर साल पूरी दुनिया में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। भारत में इस दिवस को मनाने की शुरुआत 1 मई 1923 को चेन्नई (मद्रास) से हुई थी। हालांकि, उस समय इस दिवस को मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था। लेकिन, धीरे-धीरे इसे विश्व मजदूर दिवस (International Labour Day) के रूप में मनाया जाने लगा। मजदूर दिवस को मई दिवस (May Day) के रूप में भी जाना जाता है।

मजदूर दिवस के दिन भारत सहित 80 देशों में छुट्टी रहती है। भारत में यह दिन कामकाजी लोगों के सम्मान में मनाया जाता है। तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में जानेंगे कि मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत कब हुई। साथ ही हम जानेंगे कि कैसे इस दिवस के कारण 8 घंटे काम करने का नियम बना।

मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई? (Majdoor Divas manane ki shuruaat kab aur kaise hui?)

वैश्विक स्तर पर लेबर डे मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई। अमेरिका के मजदूर संघों ने एक साथ मिलकर फैसला किया था कि वो आठ घंटे से ज़्यादा काम नहीं करेंगे। क्योंकि इससे पहले मजदूरों का काम करने का तय समय नहीं था और वे ज़्यादातर 15-16 घंटे भी काम करते थे। इसको लेकर मजदूरों ने हड़ताल कर दिया और सभी काम धंधे बंद कर दिए। इसी हड़ताल के दौरान शिकागो के हेमर्केट में एक बम विस्फोट हो गया। इससे निपटने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें कई मजदूर घायल हो गए, तो कईयों की मौत हो गई।

इस घटना के बाद 1889 में हेमार्केट में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिसमें घोषणा की गई कि जिन मजदूरों की मौत हुई, उनकी याद में 1 मई को विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह भी घोषणा की गई कि इस दिन कामगारों और श्रमिकों की छुट्टी रहेगी। इसके बाद से पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जाने लगा। इस फैसले से पूरी दुनिया के मजदूरों के बीच खुशियां छा गईं।

मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य (Majdoor Divas manane ka uddeshya)

हर साल पूरी दुनिया में मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि मजदूरों को समाज में सही अधिकार और सम्मान मिले। साथ ही इस दिन का उद्देश्य उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित करना और समाज में उनके योगदान को याद करना, उनके हक के लिए आवाज़ उठाना और उनके साथ होने वाले शोषण को रोकना भी है।

सबसे पहले फोर्ड कंपनी ने उठाया कदम (Sabse pahle Ford Company ne uthaya kadam)

सम्मेलन में तो तय हो गया था कि अब मजदूर सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे, लेकिन यह फैसला इतनी जल्दी ज़मीन पर नहीं उतर पाया। 25 सितंबर 1926 को अमेरिका की फोर्ड कंपनी ने कर्मचारियों के हित में कदम उठाया। कंपनी ने तय किया कि अब उनके कर्मचारी सिर्फ 8 घंटे ही काम करेंगे। धीरे-धीरे पूरे विश्व ने इसे अपना लिया और काम करने का समय तय हो गया। इसके बाद सभी जगहों पर कर्मचारियों से 8 घंटे काम लिया जाने लगा। साथ ही काम करने के दिन को भी 5 कर दिया गया। इसका रिज़ल्ट यह रहा है कि फोर्ड की उत्पादकता काफी बढ़ गई। दो साल के अंदर फोर्ड कंपनी के मुनाफे का मार्जिन दोगुना हो गया। इससे और कंपनियां भी 8 घंटे ड्यूटी करने के नियम को अपनाने के लिए प्रेरित हुईं।

रॉबर्ट ओवन ने की थी सबसे पहली मांग (Robert Owen ne ki thi sabse pahli maang)

रॉबर्ट ओवन इंग्लैंड के रहने वाले थे। वो समाज सुधारक होने के साथ-साथ उद्योगपति भी थे। उन्होंने 1810 ईस्वी में काम करने का समय तय करने की मांग की। उन्होंने 1817 ईस्वी में आठ घंटे काम, आठ घंटे मनोरंजन, आठ घंटे आराम का नारा दिया था। यही नारा आगे चलकर मजदूरों के आंदोलन में मूलमंत्र बना और काम करने समय निर्धारित किया गया।

सबसे पहले उरुग्वे में लागू हुआ नियम (Sabse pahle Uruguay mein lagu hua niyam)

साउथ अमेरिका के देश उरुग्वे में इस नियम को लागू किया गया कि मजदूर सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे। यह नियम वहां पर 17 नवंबर 1915 को लागू हुआ। इसके बाद वहां राष्ट्रीय स्तर पर मजदूरों से 8 घंटे काम लिया जाने लगा। इसके बाद धीरे-धीरे सभी देशों ने इस नियम को माना और कानून बनाकर इसे अपने यहां लागू किया।

भारत में एक दिन में 9 घंटे से ज़्यादा नहीं कराया जा सकता है काम (Bharat mein ek din me 9 ghante se zyada nahi karaya ja sakta hai kaam)

पूरी दुनिया में जब काम करने का समय तय किया गया, तो इसका असर भारत पर भी पड़ा। भारत में फैक्ट्रीज एक्ट 1948 के अनुसार 18 साल से ऊपर के लोगों से एक हफ्ते में सिर्फ 48 घंटे काम करवाया जा सकता है। वहीं, एक दिन में सिर्फ 9 घंटे ही काम करवाया जा सकता है। हालांकि, भारत में अलग-अलग सेक्टर के लिए अलग-अलग तरह के नियम हैं, जिन्हें सुविधानुसार अपनाया जाता है। आज भी विश्वभर के ज़्यादातर देशों में 8 से लेकर 9 घंटे काम करने का ही नियम है।

इस आर्टिकल में हमने मजदूर दिवस के बारे में बताया। साथ ही यह भी बताया कि कैसे काम करने का समय 8 घंटे तय हुआ। यह आर्टिकल पढ़कर आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। इसी तरह के और भी ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।